डॉ. प्रभात ओझा
केरल में भारतीय जनता पार्टी का भी अस्तित्व हो, यह शेष भारत के पार्टी समर्थकों के लिए कल्पना का विषय हो सकता है। दक्षिण भारत में भाजपा के बारे में कभी इसी तरह की बात थी। इस धारणा को बहुत पहले देश की सबसे बड़ी पार्टी ने कर्नाटक में तोड़ दिया। वहां एक से अधिक बार भाजपा की सरकार बन चुकी और इस समय भी वीएस येदुयुरप्पा वहां के मुख्यमंत्री हैं। अब बात केरल की, जहां इस समय विधानसभा के चुनाव हैं। पिछली बार भी बीजेपी वहां चुनाव मैदान में थी। 140 सदस्यों वाले केरल विधानसभा में भाजपा सिर्फ एक सीट जीत पायी लेकिन इसके साथ ही राज्य में उसका खाता खुल गया।
इस चुनाव में भाजपा दूसरी बार भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के साथ हाथ मिलाकर मैदान में उतरी है। पिछले, 2016 के चुनाव से बीजेपी ने बीडीजेएस के साथ मिलकर राज्य में पैठ बनायी। इस बार तो उसके पास मेट्रोमैन ई श्रीधरन का चेहरा भी है। श्रीधरन के भाजपा में आने से केरल के पार्टी कार्यकर्ता उत्साह में हैं और पहली बार केरल में देश की सबसे बड़ी पार्टी की अहमियत भी दिखने लगी है। श्रीधरन खुद पल्लकड़ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी का मानना है कि केरल के कोच्चि और दिल्ली में मेट्रो लाइन के शिल्पकार श्रीधरन अब अपने गृह राज्य में विकास का शिल्प गढ़ेंगे। फिर मालप्पुरम लोकसभा सीट से उपचुनाव में भाजपा उम्मीदावार ए. पी. अब्दुल्लाकुट्टी भी पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित कर रहे हैं। माकपा नेता रहे अब्दुल्लाकुट्टी को 2009 में पार्टी से निकाल दिया गया, जब उन्होंने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी। वे कांग्रेस में चले गये और फिर 2019 में पीएम मोदी की प्रशंसा करने पर उन्हें वहां से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। खास बात यह कि इस बीच वे विधानसभा का हर चुनाव जीतते रहे। अब लोकसभा के चुनाव में उनके कमाल करने की उम्मीद जतायी जा रही है। अब्दुल्लाकुट्टी इस समय भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। राज्य में उनकी छवि का लाभ भाजपा को मिल सकता है।
अब्दुल्लाकुट्टी और ई. श्रीधरन के भाजपा में आने से दक्षिण में कर्नाटक से अपना विजय अभियान शुरू करने वाली पार्टी को केरल में भी उम्मीदें जगी है। निश्चित ही वह पहले से बेहतर करेगी। यह बेहतरी जिस सीमा तक जायेगी, उसी पर राज्य का राजनीतिक भविष्य निर्भर करेगा। इससे एकबार लेफ्ट और दूसरी बार कांग्रेस वाला इतिहास बदलेगा, ऐसा कहना अभी मुश्किल है। हाल के प्रदर्शनों से तो लेफ्ट ही उत्साहित है। स्थानीय निकाय चुनाव को आधार मानें तो कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ के लिए विधानसभा का यह चुनाव आसान नहीं होगा। इस तरह दोनों गठबंधनों के बीच सत्ता रहने का मिथक टूट सकता है।
भाजपा वाले छोटे गठबंधन से ही सही, राज्य में सिर्फ दो गठबंधनों के बीच की लड़ाई का परिदृश्य बदला है। हालांकि वह दोनों बड़े गठबंधनों से काफी पीछे है। लेकिन मेट्रोमैन श्रीधरन को केरल में पार्टी का चेहरा बताए जाने से पार्टी का जनाधार बढ़ने की उम्मीद है। शहरी मध्यमवर्गीय वर्ग में श्रीधरन को बखूबी पहचाना जाता है। फिर 2016 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव बताते हैं कि भाजपा को बीडीजेएस के साथ मिलकर 15 फीसदी वोट मिले थे। साल 2016 में तिरुअनंतपुरम की नेमोम सीट भी भाजपा ने जीती। माना कि जीतने वाले गठबंधनों के 47 और 42 प्रतिशत वोट के आगे ये 15 फीसदी वोट शेयर बहुत कम हैं। फिर भी सोचा जा सकता है कि इसमें थोड़ी-सी वृद्धि भी केरल के चुनावी गणित को बदल सकती है।
एक सर्वे से पता चलता है कि केरल में नायर जैसी उच्च जातियों के साथ कुछ पिछड़ी जाति के समुदायों, खासतौर पर एझावस का झुकाव भाजपा की ओर है। पार्टी ने कुछ अन्य समुदायों में भी जगह बना ली तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि दो बड़े गठबंधनों पर असर पड़ सकता है।