कोलकाता/ नई दिल्ली, 06 मार्च (हि.स.)। प. बंगाल की मुख्मयमंत्री ममता बनर्जी के कभी भरोसेमंद रहे पूर्व रेल मंत्री और राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी का सफर आखिरकार तृणमूल कांग्रेस पार्टी (तृणमूल) के साथ आज खत्म हो गया।
शनिवार को दिनेश त्रिवेदी ने दिल्ली जाकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में पार्टी की सदस्यता ले ली। इसके साथ ही उन्होंने तृणमूल पर हमला बोला। त्रिवेदी ने पार्टी को प्राइवेट कंपनी की तरह चलाने का आरोप मुख्यमंत्री पर लगाते हुए इशारे-इशारे में इस बात के भी संकेत दिए कि मुख्यमंत्री ने अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी को भविष्य के नेतृत्व के लिए तैयार करने हेतु सभी वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया है।
त्रिवेदी ने कहा कि पार्टी हिंसा की संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। छोटे से लेकर ऊंचे ओहदे तक भ्रष्टाचार का बोलबाला है और वह जनता से कट गई है। जेपी नड्डा से भाजपा का झंडा लेते हुए दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में इस बार बदलाव का माहौल है और लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखकर वोट करेंगे।
उल्लेखनीय है कि गत 12 फरवरी को अभूतपूर्व तरीके से राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान पटल पर उन्होंने इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा था कि तृणमूल में उनका घर दम घुट रहा है। उनके करीबी सूत्रों के अनुसार टैक्सास यूनिवर्सिटी से स्नातक करने वाले दिनेश त्रिवेदी लम्बे समय से तृणमूल में उपेक्षित महसूस कर रहे थे। इसकी वजह यह थी कि वह हिंदी भाषी थे। मुख्यमंत्री के शासनकाल में जबरन वसूली, हिंसा और भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात रही तृणमूल की संस्कृति के मुताबिक उनका व्यवहार नहीं रहा है। वह आदर्श की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं।
2012 में जब वह रेल मंत्री थे और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए रेल किराए में बढ़ोतरी की घोषणा तमाम आलोचनाओं के बात भी की, तब खुद मुख्यमंत्री उनसे नाराज हो गई थीं। खुद ममता ने मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्हीं की पार्टी के एक दूसरे नेता मुकुल रॉय (अब भाजपा में हैं) को रेल मंत्री बनाने की अनुशंसा की थी, जिसकी वजह से दिनेश त्रिवेदी को बिना किसी आयोजन रेल मंत्रालय से विदा कर दिया गया था। उसके बाद से ममता और दिनेश के रिश्ते कभी सामन्य नहीं रहे। उन्होंने जब जब पार्टी की अनैतिक गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाई तब तब उनका पद और कद छोटा कर दिया गया।
2014 के लोकसभा चुनाव में भले ही ममता बनर्जी ने उन्हें बैरकपुर लोकसभा केंद्र से टिकट दिया लेकिन दोनों के बीच औपचारिक बातचीत नहीं होती थी। ममता दिनेश के फोन का जवाब नहीं देती थी और अगर वह मिलने की कोशिश करते थे तो पार्टी के नेता बाधा बनकर खड़े होते थे। इसीलिए 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद जुलाई में जब ममता ने उन्हें हुगली रिवर ब्रिज कमिश्नर के अध्यक्ष के पद की पेशकश की तो उन्होंने ठुकरा दिया था। वह पार्टी में अपनी नाराजगी का इजहार ही था लेकिन ममता ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद राज्यसभा के लिए नामित किया गया तब भी उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलने की कोशिश की। हालांकि उस दौरान तृणमूल के नेता बाधा बन गए थे।
पीएम मोदी और शाह के खिलाफ अपशब्दों के लिए बनाया गया था दबाव
हाल के दौर में उन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के खिलाफ बयानबाजी के लिए दबाव बनाए गए थे, जिससे उन्होंने साफ इनकार कर दिया था। इसलिए उन्हें उपेक्षित किया गया। पार्टी में कई महत्वपूर्ण फैसलों और बैठकों के कार्यक्रमों में उन्हें सिर्फ इसलिए दरकिनार किया गया, क्योंकि वह हिंदी भाषी थे। इसलिए वह काफी पहले से पार्टी छोड़ने का मन बना चुके थे। अब जबकि वह भाजपा में शामिल हो गए हैं तो खबर है कि भाजपा प्रदेश में चुनाव के समय चुनाव प्रचार से लेकर रणनीति बनाने में उनका बखूबी इस्तेमाल करने वाली है।