नई दिल्ली, 19 अगस्त: भारत की वायु शक्ति में क्रांति लाने के लिए यूरोप का छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान प्रोजेक्ट एससीएएफ / एफसीएएस एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। यदि भारत इस परियोजना में, जो फ्रांस, जर्मनी और स्पेन के संयुक्त प्रयास से बन रही है, ‘पार्टनर कंट्री’ के रूप में शामिल होता है, तो देश की रक्षा क्षमता नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह साझेदारी भारत के लिए रणनीतिक और तकनीकी दोनों ही पहलुओं से बेहद महत्वपूर्ण है।
एससीएएफ / एफसीएएस परियोजना सिर्फ एक नए पीढ़ी का लड़ाकू विमान नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण युद्ध प्रणाली या “सिस्टम ऑफ सिस्टम्स” है। इस प्रणाली का मुख्य घटक न्यू जनरेशन फाइटर (एनजीएफ) है, जो एआई-संचालित ड्रोन या रिमोट कैरियर से जुड़ा होगा। ये सभी एक कॉम्बैट क्लाउड के माध्यम से जुड़े रहेंगे, जिससे वास्तविक समय में डेटा का आदान-प्रदान संभव होगा। इस तरह, यह लड़ाकू विमान अकेले नहीं, बल्कि एक एकीकृत शक्ति के रूप में कार्य करेगा।
यह छठी पीढ़ी का लड़ाकू विमान मैच 5 या उससे अधिक की गति से उड़ान भरने में सक्षम होगा। इसमें उन्नत स्टील्थ तकनीक होगी, जिससे यह दुश्मन के रडार से बच पाएगा। इसके अलावा, इसमें लेजर हथियार, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर तकनीक और हाइपरसोनिक मिसाइलें होंगी, जो कुछ ही सेकंड में लक्ष्य को नष्ट कर सकती हैं।
फ्रांस के साथ भारत के लंबे समय से चले आ रहे रक्षा सहयोग को देखते हुए, भारत के इस परियोजना में ‘ऑब्जर्वर स्टेट’ के रूप में शामिल होने की संभावना बढ़ गई है। इससे भारत के अपने एएमसीए (एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट) प्रोजेक्ट को भी तकनीकी लाभ मिलेगा। साथ ही, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत भारतीय रक्षा उद्योग को यूरोपीय आपूर्ति श्रृंखला में शामिल होने का मौका मिलेगा।
इस संदर्भ में, पाकिस्तान की चिंता बढ़ रही है। पाकिस्तान का वर्तमान लड़ाकू विमान बेड़ा मुख्य रूप से पुरानी तकनीक पर आधारित है, जो भारत के राफेल और सुखोई का भी मुकाबला करने में असमर्थ है। अगर भारत के पास एससीएएफ / एफसीएएस जैसा अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म आता है, तो पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी। विशेषज्ञों के अनुसार, एआई और ड्रोन तकनीक के संयोजन से बनी यह युद्ध प्रणाली दक्षिण एशिया के आसमान में भारत का वर्चस्व सुनिश्चित कर सकती है।
कुल मिलाकर, एससीएएफ / एफसीएएस परियोजना में भारत का संभावित प्रवेश न केवल रक्षा के क्षेत्र में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और तकनीकी उत्कृष्टता के मामले में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।
