नई दिल्ली, 16 फरवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को एक बार फिर पर्यावरण संरक्षण और विकास कार्यों के बीच संतुलन बनाने की केंद्र सरकार की नीति को दोहराते हुए कहा कि अगले 20 वर्षों में भारतीयों की ऊर्जा जरूरत दोगुनी हो जाएगी और उन्हें इनसे वंचित रखना लाखों लोगों को जीने का अधिकार नहीं देने के बराबर है।
विकसित देशों से अपील करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में प्रभावी कदम उठाने के लिए उन्हें विकासशील देशों की वित्तीय और प्रौद्योगिकी जरूरतों को पूरा करना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने ऊर्जा और संसाधन संस्थान (टेरी) के विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन को वीडियो संदेश के माध्यम से आज संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि गरीबों तक समान ऊर्जा पहुंच सुनिश्चित करना भारत की पर्यावरण नीति की आधारशिला है। भारत 9 करोड़ लोगों को उज्जवला योजना से पकाने का स्वच्छ ईंधन और पीएम कुसुम योजना से किसानों को अक्षय ऊर्जा पहुंचा रहा है।
प्रधानमंत्री ने इस दौरान पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत की ओर से की जा रही पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि भारतीय पहल अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का उद्देश्य ‘एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड’ है। एक वैश्विक ग्रिड से हमें दुनियाभर में हर समय स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए। यह दृष्टिकोण भारतीय मूल्यों पर आधारित है।
प्रधानमंत्री ने ‘लाइफ- लाइफस्टाइल फॉर इन्वायरमेंट’ का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारतीय हमेशा से प्रकृति के साथ सद्भाव में रहे हैं। हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, दैनिक गतिविधियां और उत्सव प्रकृति के साथ हमारे मजबूत बंधन को प्रदर्शित करते हैं। रिड्यूस, रीयूज, रीसाइकिल, रिकवर, री-डिजाइन और री-मैन्युफैक्चरिंग भारत के सांस्कृतिक लोकाचार का हिस्सा रहा है।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर हर्ष व्यक्त किया कि भारत के दो और आर्द्रभूमियों को हाल ही में रामसर स्थलों के रूप में मान्यता मिली है। भारत में अब 49 रामसर स्थल हैं जो 1 मिलियन हेक्टेयर से अधिक में फैले हुए हैं।
उन्होंने कहा कि गुजरात राज्य में और अब राष्ट्रीय स्तर पर अपने 20 वर्षों के कार्यकाल के दौरान उन्होंने पर्यावरण और सतत विकास के लिए प्रमुख फोकस क्षेत्र रहे हैं।