डॉ. प्रभात ओझा
यह टिप्पणी करने तक आधिकारिक पुष्टि का इंतजार था। खबर थी कि भारत की ओर से अन्य देशों को भेजे जाने वाली वैक्सीन फिलहाल नहीं पहुंच सकेगी। हालांकि यह भी कहा गया कि वैक्सीन भेजने पर रोक की जगह अपने यहां की जरूरतों को प्राथमिकता देने का फैसला किया गया है। ऐसा भारत में ही अप्रैल की पहली तारीख से 45 साल की उम्र से अधिक सभी लोगों के लिए भी वैक्सीनेशन कैंपेन के चलते किया जा रहा है। इस अभियान में देश के लिए पर्याप्त संख्या में वैक्सीन की जरूरत होगी। वैक्सीन बनाने वाली भारत में मौजूद दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन को यूके, ब्राजील, सऊदी अरब और मोरक्को भेजना बंद भी कर दिया है। अभी हाल में ब्रिटेन ने भारत से वैक्सीन के 50 लाख डोज कम मिलने की संभावना जतायी थी। हालांकि उसने जोड़ा था कि इसके लिए कोई देश अथवा कंपनी जिम्मेदार नहीं है। यह परिस्थितिजन्य स्थिति है।
उम्मीद है कि नई परिस्थितियों के चलते ही नया फैसला भी लिया गया होगा। जिस दिन अन्य देशों को वैक्सीन भेजने की जगह स्वदेश को बढ़ावा देने का निर्णय लिया गया, देश में एक ही दिन संक्रमण के 47 हजार नए मामले सामने आए। कोरोना के कारण एकदिन में 275 लोगों की मौत तक हो गई। नए साल के करीब तीन महीनों में संक्रमण का यह रिकॉर्ड है। स्वाभाविक है कि केंद्र सरकार को कुछ और एहतियाती कदम उठाने ही थे। इसके कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों की बैठक में कतिपय सावधानियों पर बात की थी। कुछ राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए प्रधानमंत्री ने सम्बंधित मुख्यमंत्रियों को सचेत किया था। इस बैठक के बाद महाराष्ट्र, पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों में चिंता और अधिक बढ़ी है। मध्य प्रदेश और गुजरात से भी होली जैसे त्योहार के पहले ही लोग अपने गृह जनपदों की ओर रुख करने लगे थे। समझा जाता है कि यह कोरोना और उसके कारण कई शहरों में लॉकडाउन के कारण भी हो रहा है।
ज्ञातव्य है कि इस नई महामारी के प्रारम्भ होते ही भारत ने दुनिया के कुछ देशों को जरूरी दवाएं दी थीं। भारत से यह सुविधा पाने वाले देशों में अमेरिका भी शामिल था। जहां तक कोरोना वैक्सीन की बात है, भारत 76 देशों को करीब छह करोड़ डोज भेज चुका है। भारत ने पड़ोसी देशों श्रीलंका, भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार और सेशेल्स को करीब 56 लाख वैक्सीन मुफ्त में दी हैं। सभी देशों को कोरोना वैक्सीन मिलना सुनिश्चित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के नेतृत्व में कोवैक्स योजना चलाई जा रही है। इसी के तहत भारत भी अपना योगदान कर रहा है।
स्वयं भारत में 16 जनवरी से शुरू कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम के तहत चार करोड़ 70 लाख से अधिक लोगों को टीके लगाये जा चुके हैं। उस दिन हेल्थकेयर वर्कर्स को वैक्सीन देने के साथ टीकाकरण की शुरुआत हुई थी। फिर 2 फरवरी से फ्रंटलाइन वर्कर्स को भी वैक्सीन देना शुरू हुआ। अगले चरण में 13 फरवरी से हेल्थकेयर वर्कर्स को दूसरा डोज भी मिलने लगा। अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स को दूसरा डोज देने की शुरुआत 2 मार्च को हुई। इसके एक दिन पहले फेज 1 मार्च से आमजन के लिए भी दूसरा दूसरा शुरू हुआ, जिसमें 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के साथ 45 से 60 की उम्र के ऐसे लोगों को भी वैक्सीन लगनी शुरू हुई, जो गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। अब अगले सात महीनों में देश के 60 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा गया है। ऐसे में भारत के वैक्सीन नहीं भेजे जाने का असर पहले से लाभान्वित 76 देशों सहित 190 देशों पर पड़ेगा।
इन परिस्थितियों के उत्पन्न होने का कारण निश्चित ही कुछ अन्य देशों की तरह भारत में भी कोरोना के दोबारा बढ़ते खतरे हैं। अभी 24 मार्च को ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से देश में कोरोना के ‘डबल म्यूटेंट वैरिएंट’ का पता चला है। वैरिएंट से मतलब कोरोना के प्रकार से है। यह नया वैरिएंट पहले के मुकाबले दोहरा होने के कारण अधिक खतरनाक भी हो सकता है। पहले से ही हमारे कई प्रदेशों में कोरोना के नये वैरिएंट्स मिले हैं। इनमें ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के कोरोना वैरिएंट शामिल हैं। अब नया ‘डबल म्यूटेंट वैरिएंट’ हमारी चिंता बढ़ाता है। यह वैरिएंट शरीर के इम्यून सिस्टम से बचा रह सकता है। ऐसे में इससे संक्रमण बढ़ सकता है। कोरोना मरीजों में लिए गये नमूनों में 15 से 20 प्रतिशत लोगों में मिला नया म्यूटेंट वैरिएंट परेशानिया बढ़ा सकता है।
स्वाभाविक है कि कोई भी कल्याणकारी राज्य अपने नागरिकों की चिंता पहले करे। भारत भी यही कर रहा है। उसके सामने यह चुनौती भी जरूर है कि अपनी जरूरतें पूरी कर वह कैसे विश्व भर के लोगों की मदद कर सके। उम्मीद है कि बहुत कम अंतर के बाद यह सुखद स्थिति फिर से बन सकेगी।