देवेन्द्रराज सुथारदुनिया भर में ब्रजवासियों और ब्रज को गौ-सेवा के लिए जाना जाता है, लेकिन गौ समाधि स्थल के लिए जर्मन महिला फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग लंबी लड़ाई लड़ रही हैं। इससे पहले ब्रज में इस तरह की मांग शायद ही किसी ने की होगी। उनके द्वारा छह महीने पहले जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया गया था। जिसमें मृत गायों के लिए भूमि आवंटन का प्रस्ताव रखा गया था। जिलाधिकारी ने इस प्रस्ताव पर विचार का आश्वासन दिया था लेकिन अभीतक किसी तरह की प्रगति नहीं हुई है।
बूढ़ी होने के बाद गाय जब दूध देना बंद कर देती है, तब लोग उसे छोड़ देते हैं। ऐसे में फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग गायों को एक जगह लाकर उनकी सेवा करती हैं। वह बीमार और घायल गायों का उपचार करती हैं और उन्हें अपनी गौशाला में रखती हैं। उन्हें दूरदराज से फोन आते हैं। वह बीमार और घायल गायों को ले आती हैं अगर वह किसी तरह उन्हें बचा नहीं पातीं और गाय मर जाती है तो गाय को समाधि देने का संकट खड़ा हो जाता है। वह पास में वन विभाग की जमीन पर गायों को समाधि देती हैं। लोग इसपर नाराजगी जताते हैं। उनके झगड़े होते हैं, केस हो जाते हैं। यहां तक कि उन्हें हाईकोर्ट में भी इसके लिए मुकदमे का सामना करना पड़ रहा है। वह चाहती हैं कि गायों की समाधि के लिए स्थान तय किया जाए।
उल्लेखनीय है कि फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग का जन्म 2 मार्च, 1958 को जर्मनी के बर्लिन शहर में हुआ था। इनके प्रेरणादायी कार्यों के लिए लोग इन्हें ‘बछड़ों की मां’ कहते हैं और ब्रज समेत पूरे भारतवर्ष में ‘सुदेवी दासी’ या ‘सुदेवी माता’ के नाम से पुकारी जाती है। 1978 में महज 20 साल की उम्र में फ्रेडरिक भारत आईं थीं। उस वक्त वह थाईलैंड, सिंगापुर, इंडोनेशिया और नेपाल की सैर पर निकली थीं। उन्हें कोई अंदाजा नहीं था कि भारत आकर वह यहीं की होकर रह जाएंगी। वह भारत यात्रा के दौरान ब्रज आईं और यहीं रहने लगीं। यहां उन्होंने गाय खरीदी। ब्रज आने के बाद से उनकी जिंदगी बदल गई। उन्होंने न केवल गायों पर आधारित कई किताबें पढ़ीं बल्कि हिंदी भी सीखी। ब्रज में उन्होंने एक गौशाला की शुरुआत की थी। 41 सालों में उन्होंने दस-बीस नहीं बल्कि लाखों गायों की सेवा की है।
फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग ने अपने देश से 7000 किमी दूर मथुरा में नया धर्म अपना लिया है। वे संन्यासियों-सा जीवन जीती हैं। भगवान का भजन करती हैं और गायों की सेवा। इसके लिए उन्होंने कौन्हाई गांव में 3 एकड़ जमीन किराए पर ली है। सुरभि गौसेवा निकेतन में आसपास कई जिलों से चोटिल, बीमार गाय और बछड़े और गोवंश लाए जाते हैं। डॉक्टरों और सेवकों की टीम उनका इलाज करती है। उन्होंने गोवर्धन के राधाकुंड में राधा सुरभि गोशाला ट्रस्ट में गायों की देखभाल और वहां उनके उपचार का काम करती हैं। वह राधा सुरभि गोशाला ट्रस्ट की अध्यक्ष भी हैं। उनका नाम वर्ष 2019 की शुरुआत में एकबार सुर्खियों में तब आया जब भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में एक पद्म पुरस्कार की सूची में उनका नाम शामिल किया। गायों की सेवा के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया गया है।
वर्तमान में फ्रेडरिक के पास 1200 गाये हैं, जो दूध नहीं देतीं। वह गौ सेवा के काम में हर महीने 25 लाख रुपये खर्च करती हैं। कुछ पैसा उन्हें दान से मिल जाता है, तो कुछ पैसा वह अपनी पुश्तैनी संपत्ति से इस्तेमाल करती हैं। उनकी गौशाला में करीब 60 लोग काम करते हैं। लोग भी गाय की सेवा के लिए दान करते हैं। फ्रेडरिक की संपत्ति बर्लिन में स्थित है। वहां से आने वाले किराए के पैसों से वह गौशाला का खर्चा निकालती हैं। फ्रेडरिक के पिता जर्मनी के एक बड़े अधिकारी भी रहे थे। उनके पिता ने दिल्ली स्थित जर्मन दूतावास में भी कार्य किया। वो भी लगातार राधाकुंड में गौसेवा के लिए आते रहे।
भारत में माता कही जाने वाली गाय आज तिल-तिल मरने को मजबूर है। सड़क हादसे में रोजाना पांच से छह गौवंश चोटिल हो रहे हैं, लेकिन उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। गोशालाओं में लावारिस गायों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इनमें ज्यादातर वे हैं जो रात के समय सड़कों पर दुर्घटना में घायल हो रही हैं। इलाज के अभाव में ये गायें दम तोड़ रही हैं। ऐसे में गौसेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाली फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग नजीर हैं।
2021-03-24