भारतीय साहित्य जगत का अक्षत दीप स्तंभ है विप्लवी पुस्तकालय गोदरगावां

सुरेन्द्र कुमार किशोरी
91 साल पहले 1930-31 का कालखंड, स्वतंत्रता संग्राम की आंच पर सुलगता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का इलाका, भगत सिंह की फांसी, चंद्रशेखर आजाद का बलिदान एवं बेगूसराय में आजादी के दीवाने छह युवकों की मौत से आक्रोशित, उद्वेलित और प्रेरित युवकों की टोली ने आजादी का अलख जगाने के लिए केन्द्रस्वरुप गोदरगावां ठाकुरबाड़ी में 23 मार्च को महावीर पुस्तकालय की स्थापना की थी। धार्मिक एवं जातीय भेद मिट गए, ठाकुरबाड़ी भारत माता का मंदिर बन गया, देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना बलवती हो गई तथा स्तरीय पुस्तकें पत्र-पत्रिकाएं जमा होने लगे।
बदलते समय के साथ उस पुस्तकालय का नाम हो गया विप्लवी पुस्तकालय और 32 हजार से अधिक पुस्तकों के साथ जिला, बिहार ही नहीं, यह देश के चर्चित पुस्तकालयों में शुमार हो गया। आज यह पुस्तकालय राष्ट्रीय साहित्य जगत का दीप स्तंभ माना जाता है। आधुनिक हॉल, प्रोजेक्टर से युक्त इस पुस्तकालय के 22 सौ से अधिक सदस्य हैं तथा हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू कि 32 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। सिन्हा लाइब्रेरी पटना के बाद यह बिहार का दूसरा सबसे बड़ा पुस्तकालय है। गंगा के कछार पर बसे गोदरगावां के इस इस पुस्तकालय में राष्ट्रीय स्तर के करीब-करीब तमाम कवि और साहित्यकार आ चुके हैं।
बेगूसराय जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर मटिहानी प्रखंड में गोदरगावां गांव के प्रवेश द्वार पर विशालकाय चन्द्रशेखर आजाद, पुस्तकालय परिसर में भगत सिंह, महात्मा गांधी, प्रेमचंद, मीराबाई, कबीर एवं डॉ. पी. गुप्ता की प्रतिमा इतिहास एवं संस्कृति का बोध कराती है। 1942 के आंदोलन में आस-पास के गांव के लोगों ने भी में भाग लिया तथा बरौनी-कटिहार रेल खंड के लाखो स्टेशन पर रेल की पटरी उखाड़ी, स्टेशन जला दिया तो अंग्रेजों ने सामूहिक जुर्माना वसूला था। 1946 में डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में गठित अंतरिम सरकार ने अंग्रेजों द्वारा वसूली गई जुर्माना की राशि आठ सौ रूपया वापस करवा दिया तो लोगों ने स्मारक स्वरूप पुस्तकालय भवन निर्माण का निर्णय लिया।15 अगस्त 1947 को आजादी मिली और उसी दिन से स्थानीय सत्यनारायण शर्मा द्वारा दान की गई जमीन पर पुस्तकालय भवन का निर्माण शुरू कर दिया गया। जो आज भी पुस्तकालय के रूप में अंधकार में जीवन का अलौकिक प्रकाश विखेर रहा है तथा 1986 में तत्कालीन डीएमएवं अन्य के सहयोग से बने आधुनिक भवन में संचालित है। प्रत्येक वर्ष वार्षिकोत्सव 23 मार्च को भगत सिंह के बलिदान दिवस पर यहां दो दिवसीय साहित्य का मेला लगता है, जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों की भीड़ जुटती है। पुस्तकालय के वार्षिक समारोह में राज्यपाल डॉ. ए.आर. किदवई, नामवर सिंह, कमलेश्वर, प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, हबीब तनवर, डॉ. रामजी सिंह, रेखा अवस्थी जैसे सैकड़ों साहित्यकार, कवि, पत्रकार, जनप्रतिनिधि, अधिकारी यहां आकर संस्कृत-शिक्षा-संस्कृति एवं संस्कार को परिभाषित कर चुके हैं।
कई बार यहां आ चुके कमलेश्वर के शब्दों में ‘यहां आता हूं तो लगता है घर- परिवार आया हूं। यहां आते ही बलिदानी भगत सिंह मिल जाते हैं, राहुल जी, दिनकर जी, नागार्जुन, यशपाल, निराला जी, प्रेमचंद, रेणू आदि से एक साथ मुलाकात हो जाती है। प्राचीन नालंदा अब नहीं रहा पर हमारे पास शब्द संस्कृति का आधुनिक गोदरगावां तो है।’ 24 मई 2017 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यहां आए तो, भव्यता एवं व्यवस्था देख विशिष्ट पुस्तकालय दर्जा दिया। इस वर्ष वार्षिकोत्सव के अवसर पर विमर्श के साथ-साथ अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के पदाधिकारियों और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति की महत्त्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई है।
जिसमें लघु भारत का दर्शन होगा, कश्मीर से कन्याकुमारी तक, बिहार से लेकर महाराष्ट्र तक के लेखक-कवि जुटेंगे। कार्यक्रम में लोक संस्कृति संरक्षक, भाषाविद और साहित्य समालोचक पद्मश्री गणेश नारायण दास देवी, वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक रामशरण जोशी, कवि और लेखक नरेश सक्सेना, जेएनयू के समाजशास्त्री प्रो. मणिन्द्र नाथ ठाकुर, राज्यसभा सदस्य प्रो. मनोज झा, प्रलेस के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. अली जावेद एवं प्रलेस के महासचिव डॉ. सुखदेव सिंह सिरसा समेत कई अन्य साहित्यकार शामिल होंगे। इस अवसर पर सीधी भाषा और वैज्ञानिक तथ्यों का विलक्षण प्रयोग काव्य के माध्यम से करने वाले हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवि तथा निर्देशन के लिए 1992 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित नरेश सक्सेना को द्वितीय नामवर सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। कुल मिलाकर कहें तो उत्कृष्ट एवं जन सहयोग से खड़ी की गई यह संस्कृति की इमारत, बिहार ही नहीं देश के लिए उदाहरण है। इस पुस्तकालय में साहित्य-संस्कृती-इतिहास एवं समाज का अद्भुत समावेश देखा जा सकता है। जिसने यह नहीं देखा, समझो उसने कुछ नहीं देखा।

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