नई दिल्ली, 22 मार्च (हि.स.)। मास्टर दा यानी मास्टर सूर्यसेन। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी, जिन्होंने सशस्त्र विद्रोह कर अंग्रेजी हुकूमत को कड़ी चुनौती दी। इस घटनाक्रम को इतिहास में चटगांव विद्रोह के नाम से जाना जाता है। इसकी अगुवाई करने वाले मास्टर सूर्यसेन का जन्म 22 मार्च 1894 को चटगांव (अब बांग्लादेश) के नवापाड़ा में हुआ था।
मास्टर सूर्यसेन ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ निजी सेना तैयार की जिसका नाम रखा- इंडियन रिपब्लिक आर्मी। इसमें युवक-युवतियां, दोनों बड़ी संख्या में शामिल थे। अपनी आर्मी के लिए जब हथियारों की जरूरत पड़ी तो मास्टर सूर्यसेन ने 18 अप्रैल 1930 की रात चटगांव के दो शस्त्रागारों को लूटने की योजना बनायी। लूट को अंजाम देने से पहले रेल पटरियों को उखाड़ दिया गया और संचार व्यवस्था पूरी तरह नष्ट कर दी गयी। इसके बाद शस्त्रागारों से हथियार लूटे गए। ब्रिटिश हुकूमत के जिन कर्मचारियों ने लूट का विरोध किया, उन्हें गोली मार दी गयी।
घटना को अंजाम देकर क्रांतिकारी जलालाबाद की पहाड़ी में जा पहुंचे। संचार व्यवस्था ठप होने के कारण अगले चार दिनों तक चटगांव का प्रशासन मास्टर सूर्यसेन की आर्मी के हाथों ही रहा। चार दिनों बाद अंग्रेजों ने पहाड़ी को घेर लिया और दोनों तरफ से गोलीबारी हुई। कई क्रांतिकारी शहीद हुए और कुछ पकड़े गए। बड़ी संख्या में ब्रिटिश सैनिक भी मारे गए। लेकिन मास्टर सूर्यसेन सहित संगठन के कुछ शीर्ष नेता वहां से निकलने में सफल हो गए।
तीन साल बाद 16 फरवरी को वे गिरफ्तार कर लिये गए। उनपर मुकदमा चला और 12 जनवरी 1934 को मेदिनीपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गयी। फांसी दिये जाने से पहले कहते हैं कि बर्रबरता की तमाम हदों को पार करते हुए उन्हें यातनाएं दी गयीं। उनके साथ एक अन्य क्रांतिकारी तारकेश्वर दस्तीदार को भी फांसी दी गयी।
आख़िरी ख़त में उन्होंने अपने दोस्तों को लिखा- `मौत मेरे दरवाजे पर दस्तक दे रही है। मेरा मन अनंतकाल की ओर उड़ रहा है। ऐसे सुखद समय पर, ऐसे गंभीर क्षण में, मैं तुम सबके पास क्या छोड़ जाऊंगा? केवल एक चीज, यह मेरा सपना है, एक सुनहरा सपना- स्वतंत्र भारत का सपना। कभी चटगांव विद्रोह को मत भूलना। अपने दिल पर देशभक्तों के नाम को स्वर्णिम अक्षरों में लिखना, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता की वेदी पर अपना जीवन बलिदान किया है।’
अन्य अहम घटनाएंः
1739- ईरान के बादशाह नादिर शाह ने अपनी फौज को दिल्ली में नरसंहार का हुक्म दिया। इतिहास में इसे कत्लेआम के नाम से जाना जाता है।1783- लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल और बिहार के बीच अंतिम समझौते का ऐलान किया।1890- रामचंद्र चटर्जी पैराशूट से उतरने वाले पहले भारतीय बने।1947- लॉर्ड माउंटबेटन आखिरी वायसराय के रूप में भारत आए।1964- कलकत्ता में पहली विंटेज कार रैली का आयोजन।1977- आपातकाल के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंपा।1993- पहली बार विश्व जल दिवस मनाया गया।
2021-03-22