करंज एस-21 ने ही 1971 के युद्ध में पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी घेरा था
-पीएनएस गाजी की समुद्र में ही कब्र खुदने के बाद भारत ने जीता था युद्ध
नई दिल्ली, 10 मार्च (हि.स.)। तीन साल पहले बॉलीवुड फिल्म ‘द गाजी अटैक’ में दिखाई गई पनडुब्बी आईएनएस करंज ने 18 साल बाद आज नौसेना में शामिल होकर नया अवतार लिया है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी के रहस्यमय तरीके से डूबने की घटना पर भले ही फिल्म बन चुकी हो लेकिन इस कहानी का सच भारत और पाकिस्तान दोनों नहीं बताते, इसलिए यह रहस्य अभी भी बरकरार है।
स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बी करंज को आज नौसेना में पूर्व अध्यक्ष एडमिरल विजई सिंह शेखावत के हाथों भारतीय नौसेना में क्यों शामिल कराया गया, इसकी भी कहानी दिलचस्प है। इसे आज उस समय नौसेना का हिस्सा बनाया गया है जब पाकिस्तान से युद्ध के 50 साल पूरे होने पर इस साल को भारत ‘स्वर्णिम विजय वर्ष’ के तौर पर मना रहा है।
यह बॉलीवुड फिल्म 2017 में रिलीज हुई थी जिसमें भारतीय पनडुब्बी आईएनएस करंज एस-21 पर सवार भारतीय नौसेना अधिकारी कैप्टन इंद्र सिंह और उनकी टीम की देशभक्ति को दिखाया है। यह नौसैनिक पाकिस्तान से युद्ध के दौरान 18 दिनों तक पानी के नीचे छिपे रहे थे। फिल्म में उन रहस्यमय परिस्थितियों को भी दिखाया गया है जिसमें भारतीय युद्धपोत आईएनएस विक्रांत को नष्ट करने के लिए आई पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी ने किस तरह विशाखापत्तनम के तट पर डूबकर जल समाधि ले ली थी। फिल्मी कलाकारों में राणा दग्गुबाती, तापसी पन्नू, केके मेनन और अतुल कुलकर्णी शामिल हैं। फिल्म के हिन्दी संस्करण में अमिताभ बच्चन ने और तेलुगू संस्करण के लिए चिरंजीवी ने अपनी आवाज दी है।
दरअसल 1971 के युद्ध में आईएनएस विक्रांत भारतीय नौसेना का वह जहाज था, जिससे पाकिस्तान के पसीने छूट गए थे। आईएनएस विक्रांत के सिर्फ नाम से ही पाकिस्तान की सेना में इस कदर खौफ था कि वह किसी भी हाल में इस विमान वाहक पोत को नष्ट करना चाहती थी। पाकिस्तान ने इसके लिए अपनी अत्याधुनिक सबमरीन पीएनएस गाजी को 14 नवम्बर, 1971 को रवाना किया। 27 नवम्बर को गाजी विशाखापटनम पहुंच गया और माइंस बिछाकर विक्रांत को खोजने के लिए आगे बढ़ गया। भारतीय नौसेना ने भी पाकिस्तान को चकमा देने के लिए आईएनएस विक्रांत को अंडमान निकोबार रवाना कर दिया और उसकी जगह आईएनएस राजपूत को ‘विक्रांत’ बनाकर पेश किया। साथ ही गाजी का सामना करने के लिए भारतीय सबमरीन करंज एस-21 को भेजा गया।
करंज एस-21 समुद्र की ज्यादा गहराई में नहीं जा सकती थी। इसके अलावा उसको सांस लेने के लिए एक नियत समय पर समुद्र की सतह पर आना होता था जो किसी खतरे से कम नहीं था। यही वजह रही कि गाजी की तरफ से छोड़े गए टारपिडो ने भारतीय सबमरीन के पिछले हिस्से को काफी नुकसान पहुंचाया। ऐसे में वह अपनी लोकेशन बदलने में पूरी तरह से असमर्थ साबित हो रही थी। दूसरी तरफ गाजी लगातार टारपिडो से करंज पर हमला कर रही थी। ऐसे में गाजी ने करंज पर पीछे से हमला करने की योजना बनाई लेकिन यही उसके लिए घातक साबित हुआ। 4 दिसम्बर, 1971 की रात को करंज के पीछे आने पर आईएनएस राजपूत के कैप्टन भारतीय नौसेना अधिकारी कैप्टन इंद्र सिंह और उनकी टीम ने तुरंत टारपिडो से उस पर निशाना लगाया।
इसी बीच अपनी खुद की माइनफील्ड में हुए अचानक विस्फोट ने पीएनएस गाजी की समुद्र में ही कब्र खोद दी। इस लड़ाई में गाजी की कब्र खुदने के साथ भारत ने 1971 के युद्ध में पाकिस्तान से जीत हासिल कर ली। एक रिपोर्ट के मुताबिक गाजी अटैक से जुड़े सारे दस्तावेज 1980 में ही मिटा दिये गये थे। युद्धपोत निर्माता मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने परियोजना पी-75 की तीसरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस करंज का निर्माण किया है। पुरानी पनडुब्बी करंज एस-21 को जब 4 सितम्बर, 1969 को भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था तो उस समय शेखावत उसके कमीशनिंग क्रू का हिस्सा थे।
आईएनएस करंज के नए अवतार को आज नौसेना के बेड़े में शामिल करने वाले वीएस शेखावत की कमान के तहत ही करंज एस-21 ने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 34 साल की शानदार सेवा के बाद करंज पनडुब्बी 01 अगस्त, 2003 को नौसेना से रिटायर की गई थी। एडमिरल शेखावत बाद में 30 सितम्बर, 1993 को 14वें नौसेनाध्यक्ष भी बने और 30 सितम्बर, 1996 तक नौसेना प्रमुख के रूप में कार्य किया। इस पनडुब्बी को नया अवतार देने के लिए मझगांव डॉक लिमिटेड (एमडीएल) ने 10 साल और पांच महीने पहले इसका निर्माण शुरू किया था।