प्रमोद भार्गव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रसायन मुक्त और पर्यावरण हितैषी खिलौने बनाने का आह्वान व्यापारियों से किया है। उन्होंने भारतीय खिलौना मेले में कहा कि ‘अगर देश के खिलौना उत्पादकों को वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी बढ़ानी है तो उन्हें पर्यावरण-अनुकूल पदार्थों का अधिक से अधिक उपयोग करना होगा। खिलौनों के क्षेत्र में देश के पास परंपरा, तकनीक, विचार और प्रतिस्पर्धा है। गोया हम आसानी से रसायन-युक्त खिलौनों से छुटकारा पा सकते हैं। देश में फिलहाल खिलौना उद्योग करीब 7.20 लाख करोड़ का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी नगण्य है। देश में खिलौनों की कुल मांग का करीब 85 प्रतिशत आयात किया जाता है। इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। इससे हम आत्मनिर्भर बनने के साथ-साथ दुनिया भर की जरूरतों को भी पूरा कर सकते हैं, क्योंकि हमारे पास देशज तकनीक के साथ-साथ ऐसे सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, जो कंप्युटर खेलों के माध्यम से भारत की कथा-कहानियों को दुनियाभर में पहुंचा सकते हैं।’
खिलौना शब्द स्मरण में आते ही, अनेक आकार-प्रकार के खिलौने स्मृति में स्वरूप ग्रहण करने लगते हैं। खिलौनों को बच्चों के खेलने की वस्तु भले ही माना जाता हो, लेकिन ये सभी आयुवर्ग के लोगों को आकर्षित करते हैं। खिलौने जहां, बालमन में जिज्ञासा, रहस्य और रोमांच जगाते हैं, वहीं मन के चित्त को प्रसन्न भी रखते हैं। बच्चे या किशोर एकाकीपन की गिरफ्त में आकर अवसाद के घेरे में आ रहे हों, तो इस अवसाद को समाप्त करने के खिलौने प्रमुख उपकरण हैं। मूक, बघिर व मंदबुद्धि बच्चों को खिलौनों से ही शिक्षा दी जाती है। स्वस्थ छोटे बच्चों के लिए तो समूचे देश में खेल-विद्यालय अर्थत ‘प्ले-स्कूल’ खुल गए हैं। कामकाजी दंपत्तियों के बच्चों का लालन-पालन इन्हीं शालाओं में हो रहा है। साफ है, बच्चों के शैशव से किशोर होने तक खिलौने उनकी परवरिश के साथ, उनमें रचनात्मक विकास में भी सहायक हैं। खिलौनों की यही महिमा, इन्हें सार्वभौमिक व सर्वदेशीय बनाती है। परंतु बिडंवना है कि इन स्कूलों में प्लास्टिक व इलेक्ट्रोनिक खिलौने और पॉलिस्टर पालने बच्चों को दिए जाते हैं, जो अनजाने में बच्चों के शरीर में जहर घोलने का काम कर रहे हैं।
भारत में खिलौना निर्माण का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। मोहन-जोदड़ो और हड़प्पा के उत्खनन में अनेक प्रकार के खिलौने मिले हैं। ये मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, धातु, चमड़ा, कपड़े, मूंज, वन्य जीवों की हड्डियों व सींगों और बहुमूल्य रत्नों से निर्मित हैं। जानवरों की असंख्य प्रतिकृतियां भी खिलौनों के रूप में मिली हैं। खिलौनों की अत्यंत प्राचीन समय से उपलब्धता इस तथ्य का प्रतीक है कि भारत में खिलौना निर्माण लाखों लोगों की आजीविका का प्रमुख साधन था और ये कागज, धातु व लकड़ी से स्थानीय व घरेलू संसाधनों से बनाए जाते थे। मानव जाति के विकास के साथ-साथ खिलौनों के स्वरूप व तकनीक में भी परिवर्तन होता रहा है। इसीलिए जब रबर और प्लास्टिक का आविष्कार हो गया तो इनके खिलौने भी बनने लगे। ऑटो-इंजीनियरिंग अस्तित्व में आई तो चाबी और बैटरी से चलने वाले खिलौने बनने लग गए। नवें दशक में जब कंप्युटर व डिजीटल क्रांति हुई तो एकबार फिर खिलौनों का रूप परिवर्तन हो गया। अब कंप्युटर व मोबाइल स्क्रीन पर लाखों प्रकार के डिजीटल खेल अवतरित होने लगे हैं। हालांकि इनमें अनेक खेल ऐसे भी हैं, जो बाल-मनों में हिंसा और यौन मनोविकार भी पैदा कर रहे हैं। चीन से इनका सबसे ज्यादा आयात होता है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने भारतीय लोक-कथाओं व धार्मिक प्रसंगों पर डिजीटल लघु फिल्में बनाने की बात कही है।
यदि खिलौनों के निर्माण में हमारे युवा लग जाएं तो ग्रामीण व कस्बाई स्तर पर हम ज्ञान-परंपरा से विकसित हुए खिलौनों के व्यवसाय को पुनजीर्वित कर सकते हैं। ये खिलौने हमारे लोक-जीवन, संस्कृति-पर्व और रीति-रिवाजों से जुड़े होंगे। इससे हमारे बच्चे खेल-खेल में भारतीय लोक में उपलब्ध ज्ञान और संस्कृति के महत्व से भी परिचित होंगे। दूसरी तरफ रबर, प्लास्टिक व डिजीटल तकनीक से जुड़े खिलौनों का निर्माण स्टार्टअप के माध्यम से इंजीनियर व प्रबंधन से जुड़े युवा कर सकते हैं। खिलौना उद्योग से जुड़े परंपरागत उद्योगपति अत्यंत प्रतिभाशाली व अनुभवी है, इसलिए वे इस विशाल व्यवसाय में कुछ नवाचार भी कर सकते हैं। इससे हम एक साथ तीन चुनौतियों का सामना कर सकेंगे। एक चीन के वर्चस्व को चुनौती देते हुए, उससे खिलौनों का आयात कम करते चले जाएंगे। दो, खिलौने निर्माण में कुशल-अकुशल व शिक्षित-अशिक्षित दोनों ही वर्गों से उद्यमी आगे आएंगे, इससे ग्रामीण और शहरी दोनों ही स्तर पर आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। यदि हम उत्तम किस्म के डिजीटल-गेम्स बनाने में सफल होते हैं तो इन्हें दुनिया की विभिन्न भाषाओं में डब करके निर्यात के नए द्वार खुलेंगे और खिलौनों के वैश्विक व्यापार में हमारी भागीदारी सुनिश्चित होगी।
इस व्यापार में अनंत संभावनाएं हैं। वर्तमान में देश में खिलौनों का बजार 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर का है। जिसमें से हम 1.2 अरब डॉलर के खिलौने आयात करते हैं। देश में चार हजार से ज्यादा खिलौने बनाने की इकाईया हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में आती है। 2024 तक इस उद्योग के 147-221 अरब रुपए के हो जाने की उम्मीद है। दरअसल दुनिया में खिलौनों की मांग हर साल औसत करीब पांच फीसदी बढ़ रही हैं, वहीं भारत में खिलौनों की मांग 10 से 15 प्रतिशत इजाफे की उम्मीद है।
भारत में संगठित खिलौना बाजार शुरुआती चरण में है। फन स्कूल इंडिया कंपनी की इस बाजार में प्रमुख भागीदारी है। यह कंपनी विदेशी खिलौनों का वितरण भी भारत में करती है। इनमें हेसब्रो, लोगो, डिज्नी, वार्नर ब्रदर्स, टाकरा-टोमी और रेवेंसबर्ग ब्रांडस शामिल हैं। फिलहाल भारत में संगठित खिलौना बाजार खुदरा मूल्यों के आधार पर करीब तीन हजार करोड़ रुपए का है। खिलौना बाजार में पाठशाला जाने वाले बच्चों के लिए रोल-प्ले ट्वॉयज, सुपरमैन, बैटमेन, बेबी आॅल गॉन डॉल उपलब्ध हैं। बड़े बच्चों के लिए डिज्नी डॉल, आरसी कार, न्यू ब्राइट, रिमोट कंट्रोल कार और स्कॉटलैंड यार्ड जैसे खेल हैं। ये सभी खिलौने निर्माण की किसी विशेष तकनीक से नहीं जुड़े, इसलिए हमारे तकनीकीशियन इनका निर्माण भारत में आसानी से कर सकते हैं। इनमें हम भारत में बने परंपरगत रंगों का उपयोग कर फ्लेम रिटार्डेंट जैसे खतरनाक रसायन से बच सकते हैं।
भारतीय गुणवत्ता परिषद् (क्यूसीआई) की एक रिपोर्ट ने खिलौनों में जहर की आशंका जताई है। इस रिपोर्ट के अनुसार अनुसार भारत में आयात होने वाले 66.90 प्रतिशत खिलौने बच्चों के लिए खतरनाक हैं। एक अध्ययन में क्यूसीआई ने पाया कि अनेक खिलौनों में मौजूद मैकेनिकल और केमिकल जांचों में गुणवत्ता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बैटरी से चलने वाली खिलौनों की बैटरियां भी उच्च गुणवत्ता की नहीं पाई गई। यदि खिलौने के ऊपरी हिस्सों में रसायन की परत गीलेपन से गलने लगती है और बच्चा इसे मुंह में लगा लेता है तो जहर शरीर में चला जाता है, जो कई बीमारियों को पैदा कर सकता है। फिजेट स्पिनर नामक खिलौना दुनिया में ऑनलाइन कंपनी ईबे द्वारा बेचा जा रहा है। यह खिलौना ऑटिज्म बीमारी के शिकार बच्चों को रोग से लड़ने के लिए बनाया गया था। ऐसे बच्चे तनावग्रस्त रहते हैं। इसे तनाव से मुक्ति का उपाय बताया गया था। लेकिन यह खिलौना बच्चों में सनक पैदा करने के साथ उनकी खाल को भी नुकसान पहुंचा रहा है। बीबीसी की टीम ने इसे बाल सुरक्षा के मानकों पर खरा नहीं पाए जाने पर इसकी बिक्री प्रतिबंधित किए जाने की मांग की थी। अब इसे वेबसाइट से हटा दिया गया है। भारत में भी इसकी बिक्री बड़े पैमाने पर हुई है।
सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरने के बाद भारत ने फिलहाल चीनी खिलौना कंपनियों के निर्यात पर फिलहाल पाबंदी लगाई हुई है। यह प्रतिबंध बच्चों के स्वास्थ्य और सार्वजनिक सुरक्षा की दृष्टि से लगाई गई है। इस रोक को हटवाने के लिए चीनी कंपनियों ने विश्व व्यापार संगठन का भी दरवाजा खटखटाया है। भारत सरकार वाकई चीनी उद्योग और उद्योगपतियों को पछाड़ना चाहती है और देसी उद्योगपतियों व नवाचारियों को प्रोत्साहित करना चाहती है तो नीतियों को उदार बनाने के साथ प्रशासन की जो बाधाएं पैदा करने की मानसिकता है, उसपर भी अंकुश लगाना होगा। तभी उद्यमिता विकसित होगी और जहरीले खिलौनों से मुक्ति मिलेगी।
2021-03-09