न्यूयॉर्क, 01 मार्च (हि.स.)। म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट कर सैन्य शासन लागू करने की पूरी दुनिया में तीखी आलोचना हो रही है। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में इस अत्याचार की गूंज फिर सुनाई पड़ी, जब म्यांमार के संयुक्त राष्ट्र में राजदूत ने ही अपने यहां हुए सैन्य तख्तापलट का जबर्दस्त विरोध कर दिया। उन्होंने विश्व समुदाय से सैन्य शासन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था को तत्काल बहाल करने की मांग की।
म्यांमार के राजदूत क्याव मो तुन ने कहा कि वह आंग सान सू की के नेतृत्व वाली नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के प्रतिनिधि हैं। उनकी पार्टी ने लोकतांत्रिक तरीके से जनता के चुनाव के बाद सैन्य शासन को समाप्त करने के लिए सरकार बनाई थी। उन्होंने सभी देशों से अपील की कि वे सैन्य तख्तापलट की निंदा करें और मान्यता देने से इनकाप कर दें। सैन्य शासन के नेताओं से कहें कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करें।
म्यांमार के राजदूत के इस बयान ने पूरी सभा का ध्यान खींचा और उनके साहस की यूरोपियन यूनियन के राजदूतों, इस्लामिक सहयोगी संगठन और अमेरिका की राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने प्रशंसा की। अमेरिकी की राजदूत लिंडा ने कहा कि अमेरिका म्यांमार की जनता के साथ है, जो सड़कों पर सैन्य शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है। इधर म्यांमार में जनता के विरोध का दमन करने के लिए सैन्य शासन ने और सख्ती शुरू कर दी है।
शनिवार को मोनव्या शहर में पुलिस ने फायरिंग करते हुए एक महिला को गोली मार दी, कई लोग घायल हुए हैं। यहां पर जनता का विरोध संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के राजदूत के सैन्य शासन के खिलाफ कार्रवाई के बयान के बाद बढ़ गया। पुलिस ने जनता पर वाटर कैनन ने पानी की बौछार भी की। पुलिस ने और अधिक सख्ती दिखाने के साथ यंगून और मंडाले में व्यापक पैमाने पर गिरफ्तारियां भी कीं। डवे में भी सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन किया।
म्यांमार में सभी पक्ष लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करें: भारत संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि म्यांमार में सभी पक्षों की प्राथमिकता लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करने की होनी चाहिए। गिरफ्तार नेताओं को रिहा किया जाना चाहिए। तिरुमूर्ति ने कहा कि बांग्लादेश गए रोहिंग्याओं को भी वापस म्यांमार भेजा जाना चाहिए। भारत की सीमाएं म्यामांर से लगी हुई हैं, इसलिए यहां पर शांति और स्थायित्व आवश्यक है।