​वायुसेना से रूसी लड़ाकू मिग की विदाई नजदीक

नई दिल्ली, 01 जनवरी (हि.स.)। साठ साल की उम्र पूरी करने के बाद अब भारतीय वायुसेना से रूसी लड़ाकू विमान मिग वेरिएंट की विदाई का वक्त करीब आ गया है। वैसे तो भारत को पाकिस्तान से तीन युद्ध जिताने वाले इस ‘लड़ाकू’ मिग-21 को 50 वर्षों तक देश की सेवा करने के बाद रिटायर कर दिया गया था लेकिन भारत के पास बचे 54 ‘सेनानियों’ को रूसी कम्पनी ने अपग्रेड करके मिग-बाइसन बना दिया। अब ​एयरो इंडिया-2021 के दौरान 83 लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके-1ए की डील ​फाइनल होने के बाद ​यह ‘योद्धा’ वायुसेना से रिटायर ​हो जायेगा। लड़ाकू विमानों की इस पीढ़ी के विदा होने के बाद इनकी जगह स्वदेशी ‘तेजस’ लेगा जिसे एचएएल कई वेरिएंट में बना रहा है।​​’टू फ्रंट वार’ की तैयारियां कर रही भारतीय वायुसेना के लिए 83 लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) तेजस एमके-1ए की डील एयरो इंडिया-2021 के दौरान पूरी होगी। वायुसेना ने 2030 तक अपनी मौजूदा 30 स्क्वाड्रन को बढ़ाकर 38 करने का फैसला लिया है। वायुसेना नई बनने वाली 8 स्क्वाड्रन का 75 प्रतिशत हिस्सा स्वदेशी एलसीए और पांचवीं पीढ़ी के एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट से पूरा करना चाहती है। रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने भारतीय वायुसेना के लिए 83 स्‍वदेशी तेजस लड़ाकू विमान के एमके-1ए वर्जन की खरीद के लिए मार्च में मंजूरी दी थी। रक्षा मंत्रालय की लागत समिति ने इस सौदे का अंतिम मूल्य 45 हजार करोड़ रुपये सभी प्रतिष्ठानों और लॉजिस्टिक पैकेजों समेत निर्धारित किया है। इसे हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने निर्मित कर रही है। भविष्य में यह भारतीय वायुसेना का रीढ़ साबित होगा।


भारतीय वायुसेना ने 1960 में कई अन्य पश्चिमी प्रतिस्पर्धियों के बीच मिग-21 खरीदने का विकल्प चुना। इस सौदे के बदले में सोवियत संघ ने भारत को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की। 1963 तक वायुसेना ने अपने बेड़े में 1,200 से अधिक विमानों को अपनी सेवा में लिया। 1964 में मिग-21 भारतीय वायुसेना के साथ पहला सुपरसोनिक फाइटर जेट बन गया। इस बीच सोवियत संघ की सहायता से नासिक में विमान के लिए, हैदराबाद में एविओनिक्स के लिए और कोरापुट में इंजन के कारखाने स्थापित किए गए। रूसी कंपनी ने कुल 11,496 मिग-21 का निर्माण किया, जिसमें से भारत में 840 विमान बनाये गए। इस विमान का पहली बार 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत ने इस्तेमाल किया। हालांकि 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में मिग-21 ने इसलिए सीमित भूमिका निभाई, क्योंकि उस समय तक वायुसेना में इनकी संख्या सीमित थी और प्रशिक्षित पायलट भी नहीं थे। 


पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान मिग-21 का संचालन करते हुए भारतीय वायुसेना को काफी बहुमूल्य अनुभव मिले। वायुसेना के पायलटों की ‘पॉजिटिव रिपोर्ट’ पर भारत को इस लड़ाकू जेट पर भरोसा बढ़ा। इसीलिए मिग-21 के रखरखाव, बुनियादी ढांचे और पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रमों के निर्माण में भी भारी निवेश किया गया। मिग-21 की क्षमताओं को एक बार फिर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान परखा गया। मिग-21 ने संघर्ष के दौरान पश्चिमी थिएटर में महत्वपूर्ण बिंदुओं और क्षेत्रों पर भारतीय वायुसेना को श्रेष्ठता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1971 के इस युद्ध में उपमहाद्वीप में पहली सुपरसोनिक हवाई लड़ाई देखी गई जब भारतीय मिग-21 ने पाकिस्तानी 104ए स्टारफाइटर का मुकाबला किया।


एक पश्चिमी सैन्य विश्लेषक के अनुसार 1965 के युद्ध में मिग-21 ने पाकिस्तानी 104ए स्टारफाइटर के बीच बहुप्रतीक्षित हवाई मुकाबला ‘जीत’ लिया था। युद्ध खत्म होने तक आईएएफ मिग-21 ने पाकिस्तानी वायुसेना के चार एफ-104, दो शेनयांग एफ-6 और एक लॉकहीड सी-130 हरक्यूलिस को मार गिराने का दावा किया था। इस दौरान पूर्वी क्षेत्र में मिग-21 ने डक्का में गवर्नर हाउस पर अंतिम हमला करके सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। इस युद्ध में भारत के मिग-21 का प्रदर्शन इस कदर शानदार रहा कि बाद में इराक सहित कई राष्ट्रों ने मिग-21 पायलट प्रशिक्षण के लिए भारत से संपर्क किया। 1970 के दशक तक आईएएफ ने 120 से अधिक इराकी पायलटों को प्रशिक्षित दिया।


हालांकि 1970 के बाद से मिग-21 सुरक्षा के मुद्दों से इस कदर त्रस्त हो चुका था कि दुर्घटनाओं में 170 से अधिक भारतीय पायलट और 40 नागरिक मारे गए। 1966 से 1984 के बीच निर्मित 840 विमानों में से लगभग आधे दुर्घटनाओं में क्रैश हो गए। दुर्घटनाग्रस्त हुए विमानों में से अधिकांश के इंजनों में आग लग गई या फिर छोटे पक्षियों से टकराकर नष्ट हुए। मिग-21 के लगातार दुर्घटनाग्रस्त होने पर इसे ‘उड़ता ताबूत’ कहा जाने लगा था। कारगिल युद्ध के दौरान एक मिग-21 पाकिस्तानी सैनिक की ‘कन्धा मिसाइल’ से मारा गया। 10 अगस्त, 1999 को भारतीय वायुसेना के दो मिग-21 विमानों ने पाकिस्तानी नौसेना के अटलांटिक समुद्री गश्ती विमान को उस समय मार गिराया जब उसने आर-60 मिसाइल के साथ भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश किया था।


आखिरकार 50 वर्षों तक वायुसेना की सेवा में रहने के बाद 11 दिसम्बर, 2013 को इसे रिटायर कर दिया गया। उस समय तक 110 से अधिक मिग-21 बचे थे। इसके बाद मिग-21 तब सुर्ख़ियों में आया जब भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान ने 27 फरवरी, 2019 को बालाकोट स्ट्राइक के दौरान इसी विमान से पाकिस्तानी एफ-16 को मार गिराया लेकिन पाकिस्तान इससे इनकार करता है। हालांकि इसी दौरान उनके मिग-21 को भी गोली मार दी गई जिसकी वजह से विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान पैराशूट से नीचे उतरे। पाकिस्तानी क्षेत्र में लैंड करने के कारण पाकिस्तानी सेना ने उन्हें बंदी बना लिया लेकिन कूटनीतिक दबावों के बाद उन्हें चंद दिन बाद रिहा करना पड़ा।


मिग-21 बाइसन  रूसी कंपनी ने 11,496 मिग-21 विमानों का निर्माण करने के बाद अपने आखिरी मिग-21 को मिग बाइसन के रूप में 1985 में अपग्रेड किया था। इस परिष्कृत मॉडल में पहले वाले मिग-21 वेरिएंट की कई कमियों को दूर किया गया था। इसके बाद रूसी कंपनी ने भारतीय वायुसेना के पास बचे 54 मिग-21 विमानों को भी मिग-21 बाइसन के रूप में अपग्रेड किया। इसलिए भारतीय वायु सेना का मिग-21 अपग्रेड होकर ‘मिग-21 बाइसन’ हो गया। इस अपग्रेडेड ‘मिग-21 बाइसन’ में बबल कैनोपी और रैपराउंड विंडस्क्रीन, पहले से ज्यादा अधिक सक्षम रडार, दूर तक देखने की क्षमता, बियॉन्ड विजुअल रेंज, मिसाइल से फायर करने की क्षमता है। इनके अलावा कई अन्य संशोधनों ने हवाई जहाज की क्षमता में चार गुना वृद्धि की और इसे शुरुआती एफ-16 वेरिएंट के स्तर तक लाया गया। इस समय भारतीय वायुसेना के पास 54 मिग-21 बाइसन हैं। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *