नई दिल्ली, 27 फरवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मातृभाषा और भारतीय भाषाओं पर जोर देते हुये कहा कि मां और मातृभाषा दोनों मिलकर जीवन की नींव को मजबूत और चिरंजीव बनाते हैं। उन्होंने देशवासियों से अपनी मातृभाषा की खूबियों के बारे में जानकारी जुटाने और इस पर कुछ-न-कुछ लिखने का आह्वान किया।
प्रधानमंत्री रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 86वीं कड़ी को संबोधित कर रहे थे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के प्रावधान का जिक्र करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां भाषा की अपनी खूबियां और मातृभाषा का अपना विज्ञान है। इस विज्ञान को समझते हुए ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा में पढ़ाई पर जोर दिया गया है। हमारे व्यवसायी कोर्स भी स्थानीय भाषा में पढ़ाए जाएं, इसका प्रयास हो रहा है। आजादी के अमृत-काल में इस प्रयासों को मिलकर गति देनी चाहिये, यह स्वाभिमान का काम है।
प्रधानमंत्री ने उन अनाम हस्तियों पर कटाक्ष किया जो भारतीय भाषाओं और संस्कृति से सहज नहीं हैं। उन्होंने कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी कुछ लोग ऐसे मानसिक द्वन्द में जी रहे हैं, जिसके कारण उन्हें अपनी भाषा, अपने पहनावे, अपने खान-पान को लेकर संकोच होता है, जबकि विश्व में कहीं अन्य स्थानों पर ऐसा नहीं है।
उन्होंने ऐसे लोगों को गर्व के साथ अपनी मातृभाषा को बोलने की सलाह देते हुये कहा कि भारत भाषाओं के मामले में इतना समृद्ध है कि उसकी तुलना ही नहीं हो सकती।
प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भारत में विश्व की सबसे पुरानी भाषा तमिल है और इस बात का हर भारतीय को गर्व होना चाहिए कि दुनिया की इतनी बड़ी विरासत हमारे पास है। उसी प्रकार से जितने पुराने धर्मशास्त्र हैं, उसकी अभिव्यक्ति भी हमारी संस्कृत भाषा में है। हमें गर्व होगा कि 121 प्रकार की मातृभाषाओं से जुड़े हुए हैं और इनमें 14 भाषाएं तो ऐसी हैं जो एक करोड़ से भी ज्यादा लोग रोजमर्रा की जिंदगी में बोलते हैं।
उन्होंने कहा कि जितनी कई यूरोपियन देशों की कुल जनसंख्या नहीं है, उससे ज्यादा लोग हमारे यहां अलग-अलग 14 भाषाओं से जुड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि साल 2019 में हिन्दी दुनिया की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में तीसरे स्थान पर थी। इस बात का भी हर भारतीय को गर्व होना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भाषा केवल अभिव्यक्ति का ही माध्यम नहीं है, बल्कि भाषा, समाज की संस्कृति और विरासत को भी सहेजने का काम करती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने गत 21 फरवरी को मनाये गये अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का जिक्र करते हुये विद्वानों से ‘मातृभाषा’ शब्द की उत्त्पति को लेकर अकादमिक जानकारी जुटाने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने मातृभाषा के प्रति प्रेम के लिये अमेरिका में बसे एक तेलुगू परिवार का उदाहरण देते हुये बताया कि उस परिवार ने नियम बनाया हुआ है कि परिवार के सभी सदस्य एक साथ डिनर करेंगे और इस दौरान अनिवार्य रूप से केवल तेलुगू भाषा में ही संवाद करेंगे।
प्रधानमंत्री ने मातृभाषा की विरासत को सहेजने की दिशा में सूरीनाम में बसे भारतीय मूल के 84 वर्षीय सुरजन परोही का भी जिक्र किया। सुरजन परोही हिन्दी में बहुत अच्छी कविता लिखते हैं, वहां के राष्ट्रीय कवियों में उनका नाम लिया जाता है।
मोदी ने कहा कि आज भी परोही के दिल में हिन्दुस्तान धड़कता और उनके कार्यों में हिन्दुस्तानी मिट्टी की महक है। सूरीनाम के लोगों ने सुरजन परोही के नाम पर एक संग्रहालय भी बनाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2015 में उन्हें सम्मानित भी किया था।
प्रधानमंत्री ने मराठी भाषा गौरव दिवस के अवसर पर सभी मराठी भाई-बहनों को इस विशेष दिन की शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा कि यह दिन मराठी कविराज, विष्णु बामन शिरवाडकर जी, श्रीमान कुसुमाग्रज जी को समर्पित है। आज ही कुसुमाग्रज जी की जन्म जयंती भी है। कुसुमाग्रज जी ने मराठी में कवितायें लिखी। अनेकों नाटक लिखे और मराठी साहित्य को नई ऊंचाई दी।