नई दिल्ली, 25 फ़रवरी (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने त्रिपुरा में हालिया सांप्रदायिक हिंसा की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दिया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिकाकर्ता और वकील एहतेशाम हाशमी को त्रिपुरा हाई कोर्ट जाने को कहा जो ऐसे ही मामले पर सुनवाई कर रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि त्रिपुरा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है, ऐसे में हमें अभी दखल देने की जरूरत नहीं है। कोर्ट ने एहतेशाम हाशमी के खिलाफ किसी भी निरोधात्मक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए त्रिपुरा हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि मामले की सुनवाई जल्द पूरी करे। सुप्रीम कोर्ट ने एहतेशाम हाशमी को त्रिपुरा हाई कोर्ट में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपना पक्ष रखने की छूट दी।
पहले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि त्रिपुरा सरकार का हलफनामा आरोपों से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा था कि त्रिपुरा सरकार केवल ये कह रही है कि याचिकाकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल हिंसा में चुनाव बाद हिंसा को लेकर कुछ नहीं किया औऱ केवल त्रिपुरा की हिंसा को हाईलाइट किया।
बतादें कि त्रिपुरा सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि याचिका चुनिंदा तरीके से दायर की गई है। त्रिपुरा सरकार ने याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया था कि वे पश्चिम बंगाल में मई 2021 में चुनाव बाद हुई हिंसा पर चुप रहे। पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा त्रिपुरा में हुई हिंसा के काफी ज्यादा थी। उसके बावजूद याचिकाकर्ताओं ने त्रिपुरा में घटी घटनाओं को निशाना बनाया।
29 नवंबर 2021 को कोर्ट ने सीबीआई और त्रिपुरा सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि त्रिपुरा पुलिस की जांच अविश्वसनीय है। जो वकील फैक्ट फाइंडिंग करने गए थे उनके खिलाफ नोटिस भेजा जा रहा है। इस हिंसा की रिपोर्ट कवर करनेवाले पत्रकारों के खिलाफ यूएपीए लगाया गया, लेकिन अपराधियों की गिरफ्तारी नहीं हुई।
याचिका में कहा गया था कि हिंसा के दौरान मस्जिदों को नुकसान पहुंचाया गया और मुस्लिम स्वामित्व वाले व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को जलाया गया। ऐसा त्रिपुरा पुलिस की मिलीभगत की वजह से हुआ। पुलिस अधिकारी हिंसा को रोकने की बजाय ये दावा करते रहे कि त्रिपुरा में कहीं भी सांप्रदायिक तनाव नहीं है। पुलिस ने पीड़ितों की शिकायतों पर एफआईआर भी दर्ज नहीं की। सांप्रदायिक हिंसा की रिपोर्टिंग करने पत्रकारों और सोशल मीडिया पर लिखनेवाले 102 लोगों के खिलाफ यूएपीए के तहत एफआईआर दर्ज किया गया।