पुरी/भुवनेश्वर, 20 फरवरी (हि.स.)। भारत में सभी स्थानों में विविध परम्पराएं और धार्मिक प्रणालियां प्रचलित हैं, परंतु इन आस्थाओं के पीछे एक ही सोच निहित है और वह है ईश्वर भक्ति के साथ-साथ पूरी मानवता को एक परिवार समझते हुए सबके कल्याण के लिए कार्य करना। मानवता का धर्म पर आधारित विभाजन नहीं किया जा सकता। गौड़ीय मठ के संस्थापक आचार्य श्रीमद भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद के 150वें जयंती समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने यह बात कही। यह जयंती समारोह तीन साल तक चलेगा।
राष्ट्रपति कोविन्द ने कहा कि सत्य को बांटा नहीं जा सकता। एक ही सत्य का कई रूपों में वर्णन किया जाता है। ऋग्वेद में यह स्पष्ट कहा गया है- एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति, अर्थात सत्य एक ही है, विद्वान लोग उसकी अनेक प्रकार से व्याख्या करते हैं। उन्होंने कहा कि परमशक्ति अपने सभी रूपों में पूजनीय है। भारत में भक्ति-भाव से ईश्वर को पूजने की परंपरा सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है। हमारी यह भारतभूमि धन्य है जहां चैतन्य महाप्रभु जैसे महान विभूतियों ने लोगों को निःस्वार्थ उपासना का मार्ग दिखाया है। उन्होंने कहा कि चैतन्य महाप्रभु को स्वयं भगवान विष्णु का अवतार भी माना गया है। इसीलिए महाप्रभु शब्द का प्रयोग ईश्वर के नाम के अतिरिक्त केवल श्री चैतन्य के लिए ही किया जाता है। उनकी विलक्षण भक्ति से प्रेरित होकर ही बड़ी संख्या में लोगों ने भक्ति का मार्ग चुना। श्री चैतन्य ने अद्भुत और अखंड भक्ति भाव का आजीवन पालन किया।
उन्होंने कहा कि चैतन्य महाप्रभु कहा करते थे, “मनुष्य को चाहिए कि अपने को तिनके से भी छोटा समझते हुए विनीत भाव से भगवन्नाम् का स्मरण करे। उसे वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए, मिथ्या प्रतिष्ठा की भावना से रहित होना चाहिए और अन्य लोगों को सम्मान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। मनुष्य में यह भाव होना चाहिए कि ईश्वर सदैव कीर्तनीय हैं अर्थात व्यक्ति को सदैव ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए।”
राष्ट्रपति ने कहा कि भक्ति-मार्ग के संतों की यह विशेषता उस समय के प्रचलित धर्म, जाति और लिंग भेद तथा धार्मिक कर्मकांडों से परे थी। अतः इससे हर वर्ग के लोगों ने प्रेरणा तो ली ही, इस मार्ग में शरणागत भी हुए। इसी प्रकार गुरु नानक ने भक्ति-मार्ग पर चलते हुए एक समतामूलक समाज के निर्माण के लिए प्रयास किया।
उन्होंने कहा कि ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण की भक्ति-मार्ग की विशेषता मात्र आध्यात्मिक क्षेत्र में ही नहीं अपितु मानवता की सेवा को साकार करने वाली हर व्यक्ति की जीवन-शैली में भी देखने को मिलती है। इसी मानव सेवा के समर्पण-वृत्ति का एक रूप हमें डॉक्टर्स, नर्सेज तथा स्वास्थ्यकर्मियों की कर्त्तव्य निष्ठा में भी दिखाई देता है। सेवाभाव को हमारी संस्कृति में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। हमारे डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों ने भी कोविड महामारी के दौरान इस सेवाभाव का प्रदर्शन किया। कोरोना वायरस से वे लोग भी संक्रमित हुए लेकिन उतनी विषम परिस्थितियों में भी, उन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी और त्याग एवं साहस के साथ लोगों के उपचार में जुटे रहे। हमारे अनेक कोरोना योद्धाओं ने अपनी जान भी गंवाई परन्तु उनके सहकर्मियों का समर्पण अटल बना रहा। राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि गौड़ीय मिशन, मानव कल्याण के अपने इस उद्देश्य को सर्वोपरि रखते हुए चैतन्य महाप्रभु की वाणी को विश्वभर में प्रसारित करने के अपने संकल्प में सफल होगा।