Rishi Kapoor: बॉलीवुड के अनकहे किस्से: ऋषि कपूर की दूसरी पारी

अजय कुमार शर्मा

हर अभिनेता के कैरियर में उत्कर्ष और पतन की स्क्रिप्ट लिखी होती है, ठीक एक क्रिकेटर के कैरियर की तरह…कुछ टॉप पर रहते-रहते खेल को अलविदा कह देते हैं तो कुछ को खराब प्रदर्शन के कारण निकाला जाता है। फिल्मों की दुनिया में भी कुछ ऐसा ही होता है। सफलता के रथ पर सवार हीरो अपने तथाकथित सलाहकारों (चमचों) के कहने पर बिना सोचे समझे, बिना कहानी पढ़े ही ढेरों फिल्में साइन कर लेते हैं और उनके फ्लॉप होते ही सड़क पर आ जाते हैं। कुछ हीरो फिल्मों में बने रहने के लिए चरित्र अभिनेता या निर्माता निर्देशक के रूप में अपनी दूसरी पारी की शुरुआत करते हैं, लेकिन बहुत कम ही सफल हो पाते हैं। राजेश खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा की दूसरी पारी असफल रही तो अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की दूसरी पारी सफल रही।

बॉबी (1973) की अपार सफलता से रातोंरात स्टार बने ऋषि कपूर उस समय मात्र 20 वर्ष के थे और पूरे देश के युवा लड़के-लड़कियों के आंखो के तारे बन चुके थे। उसके बाद तो रफूचक्कर, खेल खेल में, हम किसी से कम नहीं, लैला मजनू, कर्ज़, प्रेम रोग और नगीना (1986) की सफलता तक वे अकेले सितारे रहे, लेकिन कुछ फिल्में अन्य हीरो के साथ भी सफल रहीं, जैसे-अमर अकबर एंथनी, कुली, सागर, नसीब, चांदनी, हिना।

1992-93 से 1996 तक हीरो या साइड हीरो के रूप में दीवाना, बोल राधा बोल, दामिनी और प्रेमग्रंथ की मिली जुली सफलता और आ अब लौट चलें के निर्देशन के बाद ऋषि कपूर ने चरित्र अभिनेता के रूप में अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की। इस यात्रा के बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में विस्तार से लिखा है। राजू चाचा (1999), कुछ खट्टी कुछ मीठी (2001) से हुई उनकी यह शुरुआत अच्छी रही और हम तुम (2004), फना (2006) तक तो उनकी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग भी हो गई, जिसका फायदा उठाने के लिए उनको आधार बनाकर दो फिल्में चिंटूजी (2009) और दो दूनी चार (2010) का निर्माण भी हुआ। चिंटूजी तो नहीं चली, लेकिन दो दूनी चार में एक मिडिल क्लास अध्यापक के उनके रोल को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। यह रोल उनके लिए कई मायनों में चुनौतीपूर्ण था। जहां उन्हें अपनी उम्र से बड़े चरित्र को निभाना था, वहीं उस पात्र का व्यक्तित्व भी उनके लिए बिल्कुल नया था। निर्देशक हबीब फैजल ने उन पर भरोसा किया और उनका प्रयास सार्थक हुआ, लेकिन उन्हें चरित्र अभिनेता के रूप में शिखर पर स्थापित किया फिल्म अग्निपथ में निभाए उनके राउफ लाला के किरदार ने।

रूमानियत की पहचान, ऋषि कपूर पहली बार खलनायक बने। सुरमा लगी आंखे, कुर्ता पजामा और अनोखी टोपी लगाने वाले भौंडे व्यक्ति के रूप में उनकी मेहनत कामयाब हुई। फिर तो औरंगज़ेब के दुष्ट पात्र, डी डे में भूमिगत माफ़िया के पात्रों को भी उन्होंने बखूबी निभाया। कपूर एंड संस में थोड़ी अलग मानसिकता वाले 90 वर्षीय बूढ़े पात्र की भूमिका के लिए उनके मेकअप में ही चार-पांच घंटे लगते थे। उनके मेकअप का खर्चा 2 करोड़ रुपए था। उनका मेकअप आर्टिस्ट अमेरिकन ग्रेग कैनम था, जिसने कई चर्चित हॉलीवुड फिल्मों में अपनी सेवाएं दी थीं।

चलते चलते: अपनी आत्मकथा में उन्होंने अपनी दूसरी पारी की फिल्मों के चुनाव में हुई कुछ गलतियों की भी चर्चा की है। उनका मानना था कि अभिनव कश्यप की बेशरम फिल्म करके गलती की। उन्होंने माना की फिल्म साइन करते हुए वे इस बात से उत्साहित थे कि वे अपनी पत्नी नीतू सिंह और बेटे रणवीर कपूर के साथ फिल्म कर रहें हैं। ऐसा ही कुछ उन्होंने फिल्म हाउस फुल-2 के बारे में लिखा है। उनका कहना है कि वे जानते थे कि यह कोई यादगार फ़िल्म नहीं होगी किंतु डब्बू (रणधीर कपूर) के साथ काम करने का मौका वे नहीं खोना चाहते थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *