सहरसा,17 फरवरी (हि.स.)। जननायक कर्पूरी ठाकुर के 34 वे पुण्यतिथि के अवसर पर स्टेडियम के बाहरी परिसर मे नाई संघ के तत्वावधान मे श्रद्धांजलि समारोह आयोजित किया गया।इस अवसर पर जिलाध्यक्ष विजेंदर ठाकुर की अध्यक्षता एवं सचिव शिवशंकर ठाकुर के संचालन मे उनके तस्वीर पर माल्यार्पण कर नमन किया गया। वैश्य समाज के जिलाध्यक्ष मोहन प्रसाद साह ने कहा कि कर्पूरी ठाकुर अपने दो कार्यकाल में कुल मिलाकर ढाई साल के मुख्यमंत्रीत्व काल में उन्होंने जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है।वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता।ख़ास बात ये भी है कि वे बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। वैश्य समाज प्रवक्ता राजीव रंजन साह ने कहा कि समाजिक बदलावों की शुरुआत 1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया।इसके चलते उनकी आलोचना भी ख़ूब हुई। लेकिन हक़ीक़त ये है कि उन्होंने शिक्षा को आम लोगों तक पहुंचाया।
जिला उपाध्यक्ष विजय गुप्ता ने जननायक को नमन करते हुए कहा कि1971 में मुख्यमंत्री बनने के बाद किसानों को बड़ी राहत देते हुए उन्होंने गैर लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को बंद कर दिया। बिहार के तब के मुख्यमंत्री सचिवालय की इमारत की लिफ्ट चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के लिए उपलब्ध नहीं थी।मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने चर्तुथवर्गीय कर्मचारियो के लिए लिफ्ट की सुविधा बहाल की।
महासचिव संजय कुमार ने कहा किउस दौर में समाज में उन्हें कहीं अंतरजातीय विवाह की ख़बर मिलती तो उसमें वो पहुंच जाते थे।वो समाज में एक तरह का बदलाव चाहते थे। बिहार में जो आज दबे पिछड़ों को सत्ता में हिस्सेदारी मिली हुई है, उसकी भूमिका कर्पूरी ठाकुर ने बनाई थी।नाई संघ के नेता राजेंद्र ठाकुर, गणेश ठाकुर ने कहा कि 1977 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मुंगेरीलाल कमीशन लागू करके राज्य की नौकरियों आरक्षण लागू करने के चलते वो हमेशा के लिए कुछ जातियों के दुश्मन बन गए लेकिन कर्पूरी ठाकुर समाज के दबे पिछड़ों के हितों के लिए काम करते रहे।पवन ठाकुर ,मुरली ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने राज्य के सभी विभागों में हिंदी में काम करने को अनिवार्य बना दिया।इतना ही नहीं उन्होंने राज्य सरकार के कर्मचारियों के समान वेतन आयोग को राज्य में भी लागू करने का काम सबसे पहले किया था।