कपूर खानदान को हिंदी सिनेमा का पहला परिवार कहा जाता है। सिनेमा की पिछली एक सदी से कोई न कोई कपूर अब तक इससे जुड़ा रहा है। पृथ्वीराज कपूर से शुरू हुई इस रवायत को शीर्ष तक पहुंचाया राजकपूर ने, जिन्हें शोमैन के खिताब से नवाजा गया। शोमैन का खिताब उन्हें मिला था अपनी शानदार पार्टियों की वजह से। देवनार कॉटेज में होने वाली इन पार्टियों के कई बहाने थे- होली, दीपावली, शादियां, प्रीमियर और न जाने क्या क्या… पार्टियों की पहचान था शानदार खाना और तरह-तरह की महंगी शराब।
प्रख्यात फिल्म पत्रकार मधु जैन ने कपूर खानदान पर लिखी पुस्तक में इन पार्टियों के बारे में काफी कुछ विस्तार से लिखा है। कपूर परिवार शराब को ‘कपूरों पर लानत’ कहता था। यह रवायत पृथ्वीराज कपूर से शुरू तो हुई, लेकिन वह तब तक 50 साल के हो गए थे। उन्हें किसी डॉक्टर ने व्हिस्की पीने के लिए कहा था। डॉक्टर के अनुसार यह उनकी आवाज के लिए अच्छी रहेगी।
पृथ्वीराज कपूर देसी व्हिस्की एक कटोरे में उड़ेलते और अपने झोपड़े में लगे पेड़ के नीचे बैठ जाते और बहुत पाबंदी से उसे पीते थे। हालांकि, उनके तीनों बेटों को इस शौक से कई स्तरों पर जूझना पड़ा। आगे चलकर राजकपूर के तीनों बेटों को भी इससे जूझना पड़ा। राजकपूर ने भी उम्र के तीसरे दशक का आधा सफर तय करने के बाद ही पीना शुरू किया कुछ-कुछ देवदास के अंदाज में…। सन् 1955 में नरगिस के साथ एक झगड़ा हो जाने के बाद उन्होंने पहली बार बोतल का सहारा लिया। यह घटना मद्रास में फिल्म “चोरी- चोरी” की शूटिंग के वक्त की थी। वहां उन्होंने नरगिस को किसी शख्स की लिखी एक चिट्ठी देखी थी। यह चिट्ठी, किसी निर्माता की ओर से शादी का पैगाम था।
शराब के इन दौरों का एक ढांचा था। जब राजजी को गुस्सा आता, वह पीते। वह सारा दिन इसे (गुस्से को) दबाए रखते और रात में निकालते। कई बार, हालांकि, यह सिर्फ दिखावा भी होता। राजकपूर एक शराबी का किरदार निभाते थे, वह कहने के लिए जो और किसी तरह से नहीं कह पाते थे। अगर वे अपने वितरकों से नाराज होते और उन्हें कुछ कहना चाहते तो बस नशे के बहाने कह लेते और फिर भी रिश्ते बेअसर रहते।
जब प्रेमरोग बन रही थी तब रजा मुराद इस ‘नाटक’ का शिकार बने। शूटिंग के दौरान एक खास दृश्य को वे जिस तरह निभा रहे थे राजकपूर को वह पसंद नहीं आ रहा था। बेहद संयम में रहने वाले राज एक शराबी की तरह बरताव करने लगे और उन्हें फटकारा। वैसे राजकपूर के लिए काम एक पाक चीज थी। सेट पर शराब बिल्कुल मना थी। जब वह काम करते थे तो कभी पीते नहीं थे। न ही उस दिन के यूनिट का काम खत्म होने के बावजूद भी। वह मेकअप की आखरी परत हटाने तक अपने होंठ अपनी मनपसंद ब्लैक लेबल से तर नहीं करते थे। सेट पर शराब पीना उनके लिए पेशे की बेइज्जती करने के बराबर था।
जाहिर सी बात है कि वह सेट पर किसी के भी नशा करने के खिलाफ थे। इसलिए फिल्म “मेरा नाम जोकर” के सेट पर स्टूडियो के एक कोने में जब धर्मेंद्र को नशे में सोता देखा तो अपना आपा खो बैठे। उन्होंने उस सोते हुए अदाकार को हिलाना शुरू किया। पश्चाताप में धर्मेंद्र पापाजी, पापाजी’ कहते हुए हड़बड़ाए, उनके पैरों पर गिरकर माफी मांगने से पहले दोबारा फिर कभी धर्मेंद्र ने सेट पर नशा नहीं किया।”
चलते चलतेः राजकपूर का शराब से बड़ा ही निराला नाता था। वे जहां भी जाते एक चलता-फिरता मयखाना उनके साथ हुआ करता था। ऐसा तब भी हुआ जब वे अपने इलाज के लिए ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती हुए। एक शाम जब कॉस्मेटिक सर्जन एवं उनके दोस्त डॉक्टर पांड्या उन्हें देखने आए तब वह उनसे भी अपने साथ एक पैग लेने का इसरार करने लगे और कृष्णा जी को पैग बनाने के लिए कह दिया। तब डॉक्टर ने कहा कि बतौर डॉक्टर वह अभी शराब नहीं ले सकते, क्योंकि यहां डॉक्टर और नर्स देखेंगे तो क्या कहेंगे? इतना सुनते ही राजकपूर भावुक हो गए। अपने इस कृत्य पर उनसे जब उन्होंने माफी मांगी तो उनकी आंखों में उनके प्रति श्रद्धा के आंसू थे…। हालांकि डॉक्टर पांड्या ने बाद में उन्हें इसे उनकी बेहद अच्छी अदाकारी ही कहा।
(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)