गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र में एंबुलेंस संचालन और इलाज के नाम पर मची है लूट

बेगूसराय, 12 मई (हि.स.)। कोरोना संक्रमण के कारण मचे हाहाकार के बीच अस्पतालों की मनमानी, सरकारी लचर व्यवस्था और एंबुलेंस की किल्लत को लेकर अब बड़ा सवाल उठने लगा है। एंबुलेंस वाले मनमानी कर रहे हैं, सरकारी एंबुलेंस है वह ठप पड़ा हुआ है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के संसदीय क्षेत्र बेगूसराय में कुछ निजी अस्पताल लूट मचाए हुए हैं, सरकारी स्तर पर समुचित व्यवस्था ही नहीं है। इन तमाम मुद्दों को लेकर अब बड़े सवाल उठने लगे हैं।
सांसद प्रतिनिधि अमरेंद्र कुमार अमर ने कहा है कि एम्बुलेंस आपदा जीवन रक्षक संसाधन की श्रेणी में आता है, जो पहले सरकारी अस्पताल को स्वास्थ्य विभाग बिहार द्वारा चालक, मेंटेनेंस, फ्यूल के साथ सिविल सर्जन के अधीन उपलब्ध रहता था। आउटसोर्सिंग बड़ा अवसर लेकर आया और यह तय हुआ कि राज्य स्वास्थ्य समिति एक मुस्त-एक साथ सभी जिलों को एंबुलेंस मुहैया कराएगा। इसी में खेल हो गया, केन्द्रीकृत व्यवस्था पर पहले कब्जा, फिर आउटसोर्सिंग के साथ इनसोर्सिंग का करोड़ों का खेल बन गया एम्बुलेंस। जब पटना में पकड़ हैं तो एम्बुलेंस चले ना चले, करोड़ों का बिल निकल रहा है।
सिर्फ बेगूसराय में 60 प्रतिशत एंबुलेंस खराब हालत में है तथा एक-दो दिन चलाकर महीनों का बिल निकल रहा है। खास्ता हाल एम्बुलेंस डंडारी, चेरिया बरियारपुर आदि पीएचसी में खडी है।‌ सदर अस्पताल में छह में दो कार्यरत है, लेकिन कौन कहेगा। बिहार में स्वास्थ्य संसाधन खरीदने वाली बीएमआईसी की कहानी अपरंपार है। जब तक प्रतिशत तय नहीं, तब तक आपूर्ति नहीं, चाहे कोरोना हो या मरीज के मरने का रोना। स्वास्थ्य विभाग में पटना में बैठे लोगों द्वारा एम्बुलेंस, दवा, संसाधन की आपूर्ति आदि पर कुंडली मार कर बैठे माफिया अस्पताल की जान ले रहे हैं। कोरोना काल में यही तंत्र को तंगहाल कर रहा है। गिरिराज सिंह द्वारा अनुशंसित 50 लाख तथा जिलाधिकारी द्वारा बार-बार रिमाईन्डर के बाबजूद आपूर्ति नहीं हो सका। कुछ माह पूर्व एल एंड टी द्वारा अपनेेेे सीएसआर फंड से बेगूसराय जिला प्रशासन को एडवांस सिस्टम का एंबुलेंस सौंपा गया था। जिसे डीएम ने सदर अस्पताल को सौंप दिया, लेकिन वह एंबुलेंस आज तक लोगों का मुंह चिढ़ा रहा है।
नमक सत्याग्रह गौरव यात्रा समिति के राजीव कुमार ने कहा कि बेगूसराय में (अपवादों को छोड़) अधिकांश नामचीन नर्सिंग होम, अस्पताल एवं क्लीनिक जान से खिलवाड़ कर पैसा बनाने का अड्डा बन गया है। फिल्मी अंदाज में गैंगस्टर अंदर चैम्बर या ओटी में होता है और उसका सिपहसालार गेट से लेकर आईसीयू तक चप्पे-चप्पे पर नजर रखता है। पैसा, पावर, संघ-संगठन, फेवरेबल मीडिया और एडमिनिस्ट्रेशन तथा पैरवी के बल पर इनकी रसूख और पहुंच इतनी है कि गरीब, निम्न मध्यम वर्ग की बात तो दूर मध्यम और उच्च मध्यम वर्ग तक के लोगों की चीख और पीड़ा नक्कारखाने में सुनाई भी नहीं पड़ती है। जनता की आवाज उठाने का ठेका लिये फिरनेवाले अधिकांश तथाकथित समाजसेवियों, राजनीतिक दलों के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं का इनके साथ डील में अंडरस्टैंडिंग रहता है। इन्हीं के बीच आज भी कुछ अच्छे चिकित्सक भी हैं। वह सिर्फ चिकित्सक हैं, इसलिए उनके पास शहर-शहर में प्लॉट, उंची बिल्डिंग्स और स्टाफ सह बाऊंसर्स की फौज नहीं है। वर्तमान महामारी की स्थिति में सबको सोचना होगा, अपने पेशे को बदनामी से बचाना होगा।
बेगूसराय निवासी चर्चित पत्रकार एवं दूरदर्शन के निदेशक सुधांशु रंजन ने कहा है कि मेरा ममेरा भाई राजेश कुमार दस मई को हम सबको छोड़कर चला गया। उसका निधन कोरोना के कारण नहीं हुआ, उसकी मृत्यु का कारण है हमारे देश की क्रूर एवं संवेदनहीन चिकित्सा व्यवस्था। उसका लिवर प्रत्यारोपण दिल्ली के मैक्स साकेत में हुआ था, आपरेशन सफल रहा, लेकिन आईसीयू में उसे संक्रमण हो गया। 21 लाख के पैकेज पर उसका एडमिशन हुआ, लेकिन स्थिति जैसे ही बिगड़ी अस्पताल ने ऊपर से पैसे लेने शुरू कर दिए। करीब 48 लाख लेने के बाद उसने शव सौंप दिया। अगर ऊपर से पैसे लेने थे तो पैकेज का क्या अर्थ, इस देश में किसी की कोई जवाबदेही है या नहींं, जबकि संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक समाजवादी राष्ट्र बताया गया है। 

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