सुरेन्द्र कुमार किशोरी
पिछले वर्ष कोरोना का अटैक होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा आत्मनिर्भर योजना की शुरुआत की गई। बड़े पैमाने पर लोगों को स्वरोजगार देकर उन्हें आर्थिक रूप से संपन्न बनाया जाने लगाा। इसी दौरान प्रधानमंत्री द्वारा लोगों से आपदा में अवसर तलाशने की अपील की गई, इसके सार्थक परिणाम भी दिखे। इस वर्ष जब कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने कहर बरसाना शुरू किया तो स्वास्थ सेवा से जुड़े लोग आपदा में भी लूट से बाज नहीं आ रहे हैं।
अस्पतालों द्वारा कोरोना संक्रमित मरीजों से इलाज के लिए प्रत्येक दिन 30 से 40 हजार रुपये वसूले जा रहे हैं। एंबुलेंस वाले मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के नाम पर पांच गुना से भी अधिक ले रहे हैं, जो एंबुलेंस वाले को पैसा नहीं देते उसकी मौत तड़प-तड़प कर हो रही है। अस्पतालों का तो बिल भरना ही होगा, वरना धरती के भगवान कुछ भी कर सकते हैंं। ऐसा नहीं है कि सभी अस्पताल वाले लूटी मचा रहे हैं, लेकिन जब कुछ लोग मनमाना पैसा वसूल रहे हैं तो बदनामी सबकी होगी। डॉ. अभिषेक कुमार कहते हैं कि कुछ लोगों के लिए आपदा भयादोहन कर मरीजों के आर्थिक शोषण का जरिया बन गयी है। अभी के समय में मौसम में परिवर्तन होता है, जिसके कारण सर्दी-गर्मी में उतार-चढ़ाव होता रहता है। तापमान में होने वाला यह परिवर्तन बैक्टीरिया, वायरस तथा दूसरे पैथोजन के लिए ऑप्टिमम टेम्परेचर प्रदान करता है, जिससे इंफेक्शन का चांस बढ़ जाता है।
अक्सर इस मौसम में लोगों को सर्दी-खांसी, बुखार अर्थात सामान्य फ्लू और पेट की समस्या परेशान करती है। लोगों को सामान्य फ्लू और कोरोना के बीच में अंतर समझना आवश्यक है। वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न लक्षण गले में कुटकुटाहट, खुश्की, सुखी खांसी एवं छींक है। साधारण जुकाम का लक्षण खांसी, बलगम, छींक एवं नाक बहना है। सामान्य फ्लू का लक्षण खांसी, बलगम, छींक, बहती नाक, बुखार, शरीर में ऐंठन युक्त दर्द, सर दर्द एवं कमजोरी है। जबकि, कोरोना का लक्षण सुखी खांसी, छींक, शरीर में अत्यधिक दर्द, तेज सिर दर्द, तेज बुखार, अत्यधिक कमजोरी, सांस लेने में तकलीफ तथा अतिरिक्त लक्षण दस्त, स्वादहीनता एवं गंधहीनता है। इस कोरोना काल में अगर कोई मरीज वायु प्रदूषण जनित व्याधि या साधारण जुकाम अथवा फ्लू से पीड़ित होता है तो उसे कोरोना का डर सताने लगता हैै। मरीज घबराया हुआ डॉक्टर के पास जाता है।
एक डॉक्टर का कर्तव्य होता है कि वह मरीजों को चिकित्सा देने के साथ-साथ उसे हौसला दे ताकि मरीज आत्मविश्वास के साथ व्याधि से लड़कर उसे हरा सके। कोरोना की दूसरी लहर की मारकता से जब आमलोग भयाक्रांत हैं तो डॉक्टर का कर्तव्य कई गुना बढ़ गया है। लेकिन, कोरोना काल के इस अध्याय में कुछ डॉक्टर ऐसे भी हैं जो मरीज के जुकाम या फ्लूग्रस्त होने भर से मरीज का भयादोहन करने में लगे हैं। मरीज की सुरक्षा के लिए कोविड की जांच करनवाने भर से कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। लेकिन मरीज के सामने यह बोलकर की इतने लोग मर रहे हैं तो आपके ठीक होने की क्या गारंटी हैै, इसलिए आपको जो सब टेस्ट करवाने कह रहा हूँँ, करवाइए तभी दवा लिखा जाएगा। यह कहकर ऊलजलूल ब्लड टेस्ट, ईसीजी, इको, अल्ट्रासाउंड, ब्रेन का सिटीस्कैन आदि करवाने की क्या जरूरत हैै। कुछ डॉक्टर तो अपने नजदीकी व्यक्ति से कंसल्टेंसी फीस नहीं लेकर उन्हें भी उल-जलूल टेस्ट लिखने से बाज नहीं आ रहे हैं।
यह तो थी अस्पताल में इलाज की बात, अब थोड़ी चर्चा रेमिडिसिवीर की कर ली जाय। कोरोना की बहुत दुःखद और भयावह स्थिति है। एक तरफ कोरोना के कारण लोगों की मौत हो रही है तो दूसरी तरफ कालाबाजारी अपने चरम है। रेमिडिसिवर एक ऐसा इंजेक्शन है जिससे कोरोना ठीक होने की गारंटी कतई नहीं है । रेमिडिसिवीर एक न्यूक्लियोसाइड राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) पोलीमरेज इनहिबिटर इंजेक्शन है। इसका निर्माण सबसे पहले वायरल रक्तस्रावी बुखार इबोला के इलाज के लिए किया गया था। इसे अमेरिकी फार्मास्युटिकल गिलियड साइंसेज द्वारा बनाया गया है। फरवरी 2020 में यूएस नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिजीज (NIAID) ने SARS-CoV-2 के खिलाफ जांच के लिए रेमिडिसिवीर का ट्रायल करने की घोषणा की थी। यह इंजेक्शन कोरोना वायरस के कारण लंग इंफेक्शन की प्रारंभिक स्थिति में ही कारगर है। हरेक कोरोना पीड़ित व्यक्ति को इसकी कतई आवश्यकता नहीं है।
रेमिडिसिवर से बेहतर रिजल्ट तो लाइफ सेविंग ड्रग डेकसामीथासोन जैसा लांग लास्टिंग स्टेरॉयड दे सकता है। 85 प्रतिशत कोरोना पीड़ित व्यक्ति बिना की विशेष चिकित्सा के होम आइसोलेशन और अजिथ्रोमाइसिन, सिफएक्सिम, पैरासिटामोल, विटामिन-सी, जिंक युक्त मल्टीविटामिन, मोन्टीलुकास्ट-लिवोसिट्रीजन जैसे दवाओं के सेवन और काढ़ा तथा स्टीम इंहेलेशन से स्वस्थ हो रहे हैं। 10 – 15 प्रतिशत मरीजों को ऑक्सीजन सपोर्ट की आवश्यकता होती है। जबकि बमुश्किल 5 प्रतिशत मरीजों को जो दूसरी गंभीर बीमारी से भी ग्रसित होते हैं को ही वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है। फिर रेमिडिसिवर पर इतनी हाय-तौबा क्यों मची है, उत्तर बेहद संक्षिप्त है ‘कॉरपोरेट हॉस्पिटल और ड्रग माफिया का गठजोड़।’ एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया कहते हैं कि ये कोई जादुई दवा नहीं है। वहीं, मेदांता के चेयरमैन नरेश त्रेहान का कहना है कि ये कोई ‘रामबाण’ नहीं है।
यह दवा सिर्फ जरूरतमंद बीमार लोगों में वायरल लोड को कम करती है। एक हेल्थ केयर प्रोफेशनलिस्ट होने के नाते मैं खुद यह सोच रखता हूँ कि अगर कोरोना का कोई सिंगल की ट्रीटमेंट है तो वह है ऑक्सीजन की उपलब्धता। सरकार, स्थानीय प्रशासन और हॉस्पिटल प्रबंधन को ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित रखनी चाहिए। अब समझते हैं कॉरपोरेट हॉस्पिटल और ड्रग माफिया गठजोड़ को। आम तौर पर रेमिडिसिवर दवा की कीमत 28 सौ से 54 सौ रुपये होती है। लेकिन जब अस्पताल प्रबंधन के द्वारा कोरोना के इलाज के लिए भर्ती मरीज के परिजनों को यह बताया जाता है कि मरीज के जीवन की रक्षा के लिए यह इंजेक्शन बेहद जरूरी है, आप कहीं से भी इसे खरीद कर लाइये तभी मरीज की जान बच सकती है। ऐसा सुनकर मरीज के परिजन पहले शहर में स्थित तमाम दवा की दुकानों की खाक छानते हैंं, फिर निराश होकर हॉस्पिटल पहुंचते हैं और हॉस्पिटल प्रबंधन के आगे गिरगिराते हैं।
किसी भी कीमत अदा कर रेमिडिसिवर इंजेक्शन दिलवाने की बात करते हैं, तो मरीज के परिजनों को इंजेक्शन प्राप्ति का पहला सूत्र हॉस्पिटल प्रबंधन से मिलता है। फिर तीन-चार भाया मीडिया से गुजरने के बाद आखिरकार मरीज के परिजन के नजरों के सामने रेमिडिसिवर इंजेक्शन का वाइल आता है। फिर शुरू होता है कीमत में वारगेन का खेल 40 हजार-45 हजार पर वाइल से शुरू हुआ सौदा अंततः 20 हजार-25 हजार प्रति वाइल पर पटता है। मेडिकल सेक्टर में कमीशनखोरी के धंधे से कौन अनजान है? सामाजिक कार्यकर्ता रामकृष्ण कहते हैं कि इस विश्वव्यापी आपदा काल में लूट मचाई जा रही है। जिंदगी और मौत से जूझते लोगों को जमकर लूटा जा रहा है। आम आदमी जिसके पास पैसा नहीं है, वह बगैर दवा और इलाज के मर रहा है।