– पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की जयंती पर विशेष
बलिया, 17 अप्रैल (हि. स.)। बलिया के सुदूरवर्ती गांव इब्राहिमपट्टी की पगडंडियों से होते हुए देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे चन्द्रशेखर युवा तुर्क के रूप में विख्यात हैं। वे आचार्य नरेन्द्र देव के कहने पर अपनी पीएचडी छोड़ राजनीति में आ गए थे।
चन्द्रशेखर पढ़ाई में भी प्रखर थे। उन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की थी। चन्द्रशेखर के सहयोगी रहे ओमप्रकाश श्रीवास्तव ‘चन्द्रशेखर तेरे बगैर’ नामक किताब में लिखते हैं कि गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद जिला मुख्यालय पर सतीश चंद्र कालेज स्नातक की शिक्षा लेने के बाद वे इलाहाबाद चले गए। यहां एमए करने के बाद बीएचयू चले गए पीएचडी करने। उसी दौरान आचार्य नरेन्द्र देव ने उनसे बलिया जाकर पार्टी के लिए काम करने को कहा। इस पर चंद्रशेखर ने कहा था कि थीसिस कंप्लीट हो जाये तो चला जाऊंगा। आचार्य जी ने कहा, तुम्हारी थीसिस पढ़ेगा कौन? जब समाज ही नहीं बचेगा। आचार्य जी के इतना कहने पर चन्द्रशेखर जी बलिया चले आए। इसके बाद राजनीति में रम गए।
चन्द्रशेखर जैसी शख्सियत के मुंह निकला ‘यदि हौसला नहीं होगा तो एक भी फैसला नहीं होगा’ आज भी युवाओं की जुबान पर रहता है। चंद्रशेखर को करीब से जानने वाले बताते हैं कि वे हमेशा यह कहा करते थे कि चार महीने की सरकार चलाने के बाद मैंने देश को करीब से देखा है। सरकार देखा, सरकार चलाने वालों को देखा। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि भारत में जो कुछ भी सभ्यता है, साधन है, शक्ति है। यदि हम सब मिलकर प्रयास करें तो देश की कोई ऐसी समस्या नहीं है, जिसका समाधान नहीं हो सकता।
जब भी बलिया की बात होती थी, वे कहते थे कि यहां मैंने बेबसी देखी है। लेकिन बेबसी में भी शक्ति होती है, यह भी मैं मानता हूं। चन्द्रशेखर हमेशा कहा करते थे कि हमारे जितने भी धर्म ग्रन्थ, वेद, उपनिषद व ज्ञान के भंडार हैं, वे राजमहलों में नहीं लिखे गए। ये पर्वत की उपत्यकाओं, जंगलों की झाड़ियों व वीराने में लिखे गए। शायद यही वजह है कि चन्द्रशेखर परिस्थितियों के आगे कभी मजबूर नहीं दिखे। कोरोना की महामारी में सकारात्मक बने रहने के लिए आज उनकी जयंती पर उन्हें शिद्दत से याद किया जा रहा है।
2021-04-17