वाराणसी लोकोमोटिव वर्कशॉप 2025 तक 100 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री से इंजन का निर्माण करेगा: जीएम

संदीप बिस्वास

वाराणसी, 18 जनवरी : जिस प्रकार पूरे देश में विकसित भारत संकल्प यात्रा चल रही है, उसी प्रकार भारतीय रेलवे के उत्पादन में भी विकसित भारत की झलक दिख रही है। रेल मंत्रालय के तहत वाराणसी लोकोमोटिव वर्कशॉप (बीएलडब्ल्यू) पहले ही 99 प्रतिशत स्वदेशी (मेड इन इंडिया) सामग्री का उपयोग करके इंजन बनाने में सफल रही है। कंपनी के महाप्रबंधक वासुदेव पांडा ने आत्मविश्वास से कहा कि 2025 तक 100 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री से इंजन बनाना संभव होगा। उनके मुताबिक इस कंपनी द्वारा बनाए गए इंजनों की देश-विदेश में सप्लाई में बड़ी सफलता मिली है।

विकसित भारत संकल्प यात्रा से जुड़े पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल इन दिनों त्रिपुरा से वाराणसी की यात्रा किए है। यात्रा के दौरान पत्रकारों ने वाराणसी लोकोमोटिव कार्यशाला का दौरा किया और विश्व स्तरीय इंजन निर्माण प्रक्रिया का अनुभव लिया। ये कार्यशाला वर्तमान में माल और यात्री ट्रेनों के लिए इंजन बनाती है। वहां बने इंजनों को न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी सराहा गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरिंग वर्कशॉप को पिछले आठ वर्षों में काफी सराहना मिली है। जीएम वासुदेव पांडा इस कार्यशाला की सफलता से बहुत खुश थे और उन्होंने भविष्य में बेहतर गुणवत्ता वाले इंजन बनाने का विश्वास जताया। उन्होंने कार्यशाला के विकास के सकारात्मक पहलुओं को मीडिया के सामने बखूबी प्रस्तुत किया।

उनके शब्दों में, 23 अप्रैल, 1956 को डीजल लोकोमोटिव वर्कशॉप की नींव डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने रखी और 3 जनवरी 1964 को 210.68 हेक्टेयर भूमि पर कार्यशाला ने अपनी आधिकारिक यात्रा शुरू की। पिछले आठ वर्षों में इस कार्यशाला की उत्पादन क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। उनके मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016-17 से डीजल इंजन के साथ-साथ इलेक्ट्रिक इंजन बनाने में भी सफलता मिली है। ऐसे में इंजीनियरों को इलेक्ट्रिक इंजन बनाने के लिए जरूरी ट्रेनिंग दी गई है। मूलतः कंपनी के कुशल इंजीनियर आठ स्तरों में विभाजित इंजन विकसित कर रहे हैं।

उनके अनुसार, अतीत में उच्च क्षमता वाले ईएमडी इंजनों के निर्माण के लिए अमेरिका की ALCO तकनीक पर भरोसा किया जाता था। फिलहाल इंजन का निर्माण स्वदेशी सामग्री और तकनीक की मदद से किया जा रहा है। तदनुसार, सरकार ने दक्षता और सुरक्षा में सुधार के लिए स्वदेशी प्रौद्योगिकियों आईआरटीएस, डीएएस और सीवीआरएस का उपयोग करके लोकोमोटिव के आधुनिकीकरण पर जोर दिया है। इसी उद्देश्य से 100 प्रतिशत विद्युतीकरण पर अधिक जोर दिया गया है

इस दिन उन्होंने बड़े उत्साह से कहा कि वाराणसी लोकोमोटिव वर्कशॉप वर्तमान में प्रति वर्ष 460 इंजन का उत्पादन कर रहा है। इससे पता चलता है कि हर दिन औसतन डेढ़ लोकोमोटिव का निर्माण किया जा रहा है। 10,000वें लोकोमोटिव के निर्माण को दिसंबर 2023 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन के साथ मनाया गया था। उन्होंने कहा, उन 10 हजार इंजनों में 8300 डीजल इंजन और बाकी 1700 इलेक्ट्रिक इंजन हैं। इलेक्ट्रिक इंजन का उत्पादन जून 2024 से शुरू होने की उम्मीद है उन्होंने दावा किया कि देश में फिलहाल डीजल और बिजली से ट्रेनें चल रही हैं। क्योंकि देशभर में बिजली की मदद से ट्रेन चलाने का काम पूरा नहीं हो पाया है। हालांकि, उन्होंने उम्मीद जताई कि पूरा विद्युतीकरण कार्य इस अंग्रेजी साल के जून तक पूरा हो जाएगा।

कार्यशाला के वरिष्ठ महानिदेशक महाप्रबंधक और सीपीआरओ विजय ने कहा कि बीएलडब्ल्यू की वैश्विक पहुंच तंजानिया, वियतनाम, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार, सूडान, सेनेगल, अंगोला, माली, मोज़ाम्बिक और मलेशिया जैसे देशों तक फैली हुई है। बीएलडब्ल्यू ने उन देशों में 172 इंजनों का निर्माण किया है। उसमें से 49 लोकोमोटिव की आपूर्ति अकेले बांग्लादेश को की गई है। उन्होंने दावा किया कि अंतरराष्ट्रीय निर्यात के अलावा, बीएलडब्ल्यू घरेलू मांग को भी पूरा करता है। सेल, एनटीपीसी, पोर्ट ट्रस्ट, विशाखापत्तनम स्टील प्लांट, राज्य बिजली बोर्ड, नाल्को, बीसीसीएल, बीएमएमआईएल, जेएसडब्ल्यू, ओपीजीसी आदि कंपनियों में 2023 जून तक 633 लोकोमोटिव की डिलीवरी हो चुकी है।

उन्होंने यह भी कहा कि बीएलडब्ल्यू ने 6000 से अधिक श्रमिकों की मदद से लोकोमोटिव की बिक्री के कारण वित्तीय वर्ष 2015-16 तक 1422 करोड़ रुपये कमाए हैं। कंपनी जून 2023 तक 1500 इलेक्ट्रिक इंजन बनाने में कामयाब रही है। इतना ही नहीं, जून 2023 में अब तक की सबसे ज्यादा 51 इंजन निर्माण की सफलता हासिल की है।

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