नई दिल्ली, 19 सितंबर (हि.स.)। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि पादप आनुवंशिक संसाधन प्रजनन चुनौतियों के समाधान का स्रोत हैं। मूल उत्पत्ति वाले स्थान के विनाश और जलवायु परिवर्तन के कारण पादप आनुवंशिक संसाधन भी कमजोर हैं। उनका संरक्षण “मानवता की साझा जिम्मेदारी” है। हमें इन्हें संरक्षित करने और सतत रूप से उपयोग करने के लिए सभी आधुनिक प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ पारंपरिक ज्ञान का उपयोग करना चाहिए। तोमर ने यह बात सोमवार को राजधानी दिल्ली में अंतरराष्ट्रीय खाद्य और कृषि के लिए पादप आनुवंशिक संसाधन संधि (आईटीपीजीआरएफए) के शासी निकाय के नौवें सत्र (जीबी-9) की बैठक के उद्घाटन के दौरान कही।
तोमर ने कहा कि पादप संधि का उद्देश्य फसलों की विविधता में किसानों और स्थानीय समुदायों के योगदान को मान्यता देना है। सदियों से, जनजातीय व पारंपरिक कृषक समुदायों ने अपने पास उपलब्ध समृद्ध आनुवंशिक सामग्री के आयामों का निरंतर अनुकूलन किया है, उन्हें आकार दिया है। इसने विशाल और विविध सांस्कृतिक (पौधों की विविधता के आसपास जीवन और वाणिज्य), पाक (उद्देश्य और मौसम के अनुसार अविश्वसनीय किस्म, स्वाद और पोषण) और उपचारात्मक (दवा के रूप में भोजन) प्रथाओं को जन्म दिया है।
तोमर ने कहा कि भारत पादप आनुवंशिक संसाधनों की संपदा को साझा करने का एक दृढ़ समर्थक रहा है। आईएआरसी जीनबैंक और अन्य राष्ट्रीय जीन बैंकों पर निगाहें डालें तो से पता चलता है कि लगभग 10 फीसदी जर्मप्लाज्म भारतीय मूल का है। हमारी सोच स्पष्ट है कि पौधों के आनुवंशिक संसाधनों को अनुसंधान और सतत उपयोग के लिए उपलब्ध कराया जाना चाहिए। तोमर ने कहा कि हम समय के साथ पादप आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और चयन में किसानों, स्वदेशी समुदायों, आदिवासी आबादी और विशेष रूप से समुदाय की महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं कर सकते। भारत बहुपक्षीय समझौते की प्रतिबद्धताओं पर अपने विश्वास और कार्यों में दृढ़ है।