बेंगलुरु, 25 फरवरी (हि.स.)। कर्नाटक हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने हिजाब विवाद पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने मीडिया पर लगाम लगाने का निर्देश देने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है।
शुक्रवार को कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी के नेतृत्व वाली न्यायमूर्ति कृष्णा एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पीठ में हिजाब से संबंधित मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता यूसुफ मुछला ने जोर देकर कहा कि उनके पास प्रत्युत्तर का अधिकार है। हमें सिर को कपड़े से ढकने की अनुमति दी जानी चाहिए और इसे रोकना कॉलेज प्रबंधन का फैसला सही नहीं है।
हिजाब पहनना सार्वजनिक व्यवस्था और नैतिकता के खिलाफ नहीं
कोर्ट में याचिकाकर्ता डॉ. विनोद कुलकर्णी ने तर्क दिया कि हिजाब पहनना सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के खिलाफ नहीं है। स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने से मुस्लिम लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है।
न्यायिक समय की आपराधिक बर्बादी
अधिवक्ता सुभाष झा ने तर्क दिया कि यह याचिका एक वकील ने दायर की है। यह राष्ट्र की सुरक्षा, सुरक्षा, अखंडता पर महत्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। कर्नाटक में जो कुछ हो रहा है, उससे हर व्यक्ति आहत है। हिजाब, बुर्का या दाढ़ी पर हमारी अदालतें कितने साल तय करेंगी। 1973 से शुरू होकर यूपी में पहली बार ड्रेस कोड का मुद्दा उठा। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया। हर हाई कोर्ट में इस मुद्दे को लाया गया है। यह न्यायिक समय की आपराधिक बर्बादी है।
हाई कोर्ट की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। पूर्ण पीठ ने बालकृष्ण की मीडिया पर लगाम लगाने की मांग करने वाली जनहित याचिका को भी खारिज कर दिया।
इससे पहले पीठ ने पहले एक अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसमें छात्रों को ऐसे कॉलेजों में हिजाब, भगवा शॉल (भगवा) नहीं पहनने या किसी भी धार्मिक झंडे का उपयोग नहीं करने का निर्देश दिया गया था, जहां पहले से ही ड्रेस कोड निर्धारित है। इस अंतरिम आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक अपील भी दायर की थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने अभी तक उस पर सुनवाई नहीं की है।