Dr. Satish Poonia : बजट में किसान कर्जा माफी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार तथा अपराध नियंत्रण पर मुख्यमंत्री की प्रतिबद्धता नहीं दिखी: डॉ. पूनियां

जयपुर, 23 फरवरी (हि.स.)। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनियां ने राज्य सरकार के बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, चुनाव जैसा लोक लुभावन बजट है, मुख्यमंत्री घोषणाजीवी हैं, कथनी और करन में अंतर है। इस तरह की घोषणाएं हैं जैसे कल ही चुनाव में जाना है, लेकिन वादाखिलाफी एवं झूठे वादों से प्रदेश का किसान और युवा 2023 में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए आक्रोशित है।

बजट का विरोधाभास यही है कि, घोषणाओं और क्रिन्यान्विति में बड़ा अंतर है। थोड़े समय वाहवाही लूटने के बाद योजनायें धरातल पर नहीं आती हैं। बजट का रूप आमदनी अठन्नी-खर्चा रुपया जैसा है। बजटीय प्रावधानों का वित्तीय स्त्रोत क्या होगा, समझना मुश्किल है।

सरकार को पहले तीन बजट और विगत तीन राज्यपाल महोदय के अभिभाषण की धरातलीय सच्चाई के लिये ‘श्वेत पत्र’ जारी करना चाहिये। यह हास्यास्पद है कि जनघोषणा पत्र का 70 प्रतिशत और बजट का 85 प्रतिशत पूरा होना बताया जा रहा है, जबकि धरातल पर स्थिति कुछ और है। किसान कर्जा माफी और बेरोजगारी से लेकर भ्रष्टाचार तथा अपराध नियंत्रण पर कहीं प्रतिबद्धता नहीं दिखती।

प्रदेश में केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के पैसे का उपयोग तो राज्य सरकार करती है, लेकिन उनकी समयबद्ध पूर्णता के प्रति उदासीन है। साथ ही आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना सहित अनेक योजनाओं पर मुख्यमंत्री अपनी फोटो लगाकर झूठी वाहवाही लूटने की कोशिश करते हैं।

शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे विभागों में घोषणाएं तो खूब करते हैं, लेकिन अभी भी बुनियादी ढांचे को विकसित करने के ईमानदार प्रयास नहीं हुए। स्कूलों में मास्टर और अस्पतालों में नर्स-डॉक्टर्स की कमी आम बात है। विद्यालयों में शौचालय, कक्षा-कक्ष, पेयजल, बिजली, लाइब्रेरी, प्रयोगशाला जैसी सामान्य सुविधायें नहीं हैं। अनेक विद्यालयों में विषयों एवं विषय अध्यापकों की कमी है। उसी प्रकार चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में भी सामान्य आधारभूत सुविधाओं की कमी है। सामान्य दवाईयां एवं जांच की सुविधाएं भी नहीं हैं।

मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना की खामियों से मरीज एवं अस्पताल दोनों पीड़ित हैं। विगत सात संकल्प और किये तमाम वादे भी अभी पूरे नहीं हुये हैं। संविदाकर्मियों का नियमितीकरण, बिजली में आत्मनिर्भरता, बेरोजगारी भत्ता, लंबित भर्तियां पूरे करने के वादे भी अधूरे हैं और उद्योगों में नया निवेश नहीं हुआ।

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