नगर निगम चुनावों की सुगबुगाहट के साथ विभिन्न संगठनों ने बनाया सरकार पर दबाव
नई दिल्ली, 21 फरवरी (हि.स.)। दिल्ली नगर निगम चुनाव की सुगबुगाहट के बीच दिल्ली सरकार पर अपनी मांगों को मनवाने के लिए विभिन्न संगठनों और वर्गों की ओर से दबाव बनाने का सिलसिला तेज हो गया है। दिल्ली की आबादी में 18 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले मुस्लिम समाज सरकार को विभिन्न मुद्दों को लेकर घेरने लगा है। इसके मद्देनजर उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए बनाई गई दिल्ली उर्दू अकादमी में रिक्त पड़े स्थायी पदों को भरने को लेकर फिर से कसरत शुरू हो गई है।
अकादमी में 55 स्थायी पद सरकार की तरफ से स्वीकृत हैं, मगर इनमें आधे से अधिक पद कर्मचारियों के रिटायर होने की वजह से खाली पड़े हैं। अकादमी कॉन्ट्रैक्ट पर अस्थाई कर्मचारियों को नियुक्त करके अपना काम चला रही है। केजरीवाल सरकार के सत्ता में आने के बाद से अकादमी में 30 स्थायी पद खाली पड़े हुए हैं और इस साल चार से पांच अन्य कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद इसमें इजाफा होने की संभावना जताई जा रही है।
दिल्ली में उर्दू अकादमी का मुख्य काम उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना है। अकादमी के तरफ से उर्दू भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएं चलाई जाती हैं, जिनमें सेमिनार, संगोष्ठी, मुशायरा, उर्दू किताबों का प्रकाशन, पुस्तकालयों का संचालन, कंप्यूटर और कैलीग्राफी आदि की क्लास चलाई जाती है। कोरोना महामारी की वजह से सभी कार्य पिछले दो सालों से काफी प्रभावित हुए हैं। सरकार की तरफ से अकादमी को दी जाने वाली धनराशि भी इस दौरान पूरी तरह से खर्च नहीं हो पायी है। दिल्ली उर्दू अकादमी को चलाने के लिए सरकार की तरफ से जो कर्मचारियों की तैनाती की गई है, उनमें स्वीकृत पद 55 हैं। यह सभी स्थायी पद हैं, लेकिन इनमें से 30 पद रिक्त पड़े हुए हैं।
इन पदों के खाली होने का मुख्य कारण यहां पर तैनात कर्मचारियों का सेवानिवृत्त होना है। पिछले सात-आठ सालों में जो भी कर्मचारी यहां रिटायर हुए हैं, उस पद पर किसी भी नए कर्मचारी की नियुक्ति नहीं की गई है। अकादमी के असिस्टेंट सेक्रेटरी भी रिटायर हो गए हैं, लेकिन उन्हें सेवाकाल में विस्तार देकर काम चलाया जा रहा है। दिल्ली उर्दू अकादमी में बड़े पैमाने पर पदों के रिक्त होने का मामला इस वक्त काफी गर्म है। दिल्ली नगर निगम चुनाव से पहले सरकार पर दबाव बनाकर इन पदों पर भर्ती शुरू कराने के लिए बयानबाजी का सिलसिला जारी है।
उर्दू डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन की तरफ से उर्दू के प्रति मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उदासीन रवैये पर चिंता व्यक्त की गई है। ऑर्गेनाइजेशन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. लाल बहादुर का कहना है कि बड़े पैमाने पर उर्दू अकादमी में पद रिक्त पड़े हुए हैं और सरकार को इसकी खबर भी है। इसके बावजूद दिल्ली के शिक्षा मंत्री और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया फाइल पर कुंडली मारे बैठे हुए हैं। किसी भी संस्थान में 30 से अधिक स्थायी पद रिक्त पड़े हों तो उस संस्थान में कार्य कितना प्रभावित हो रहा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। उन्होंने दिल्ली सरकार से तत्काल सभी खाली पड़े पदों पर भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की मांग की है।
उरूज फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नईम अंसारी का कहना है कि दिल्ली में उर्दू को राज्य की दूसरी भाषा का दर्जा प्राप्त है, लेकिन दिल्ली सरकार का उर्दू के प्रति रवैया सौतेला है। उनका कहना है कि दिल्ली में उर्दू को बढ़ावा देने के लिए एक ही संस्थान दिल्ली उर्दू अकादमी मौजूद है और वहां भी कर्मचारियों की संख्या को सीमित कर दिया गया है, जिसकी वजह से अकादमी में काम पूरी तरह प्रभावित हो रहा है। उनकी मांग है कि इन रिक्त पड़े 30 से अधिक स्थाई पदों पर जल्द से जल्द नियुक्ति की प्रक्रिया को शुरू किया जाए।
इस सिलसिले में दिल्ली उर्दू अकादमी के उपाध्यक्ष हाजी ताज मोहम्मद का कहना है कि अकादमी में कुछ कर्मचारियों के सेवानिवृत्त होने से कुछ पद खाली पड़े हुए हैं, जिन पर नए कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए फाइल सरकार को भेजी गई है। उनका कहना है कि सिर्फ 17 पद खाली पड़े हुए हैं बाकी अन्य पदों पर कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों की नियुक्ति कर अकादमी अपना काम कर रही है। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि जल्द ही अकादमी के रिक्त पड़े पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाएगा।