भोपाल, 18 फरवरी (हि.स.)। पर्यावरण-संरक्षण के लिए आज से ठीक 365 दिन यानी एक साल पहले 19 फरवरी को नर्मदा जयंती पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पर्यावरण संरक्षण के लिये एक संकल्प लिया था कि वे प्रतिदिन एक पौधा लगाएंगे और तब से अब तक उनकी हर सुबह पौध-रोपण के साथ होती है। वे चाहे भोपाल में हों या दिल्ली में, या किसी संभाग, जिला, तहसील या गॉव में, जहां भी उनकी सुबह होती है वे पौधा रोपने से नहीं चूके। शुक्रवार को उन्होंने अपने परिसर में नारियल का पौधा रोपा और इसके साथ ही उनका पौधरोपण करने का सिलसिले को आज पूरा एक साल हो गया।
मुख्यमंत्री चौहान सिर्फ पौधे रोपते ही नहीं है, बल्कि उनकी देख-रेख पर भी पूरा ध्यान रखते हैं। उनका कहना हैं कि अभी तक जितने पौधे लगाये हैं वे सब मुझे अपने बच्चे और परिजन जैसे लगने लगे हैं। उनका प्रतिदिन पौधा रोपने का यह संकल्प न केवल प्रदेशवासियों के लिए पर्यावरण-सरंक्षण का संदेश था, अपितु पर्यावरण के लिए जन-भागीदारी जुटाने का सफल प्रयास भी था, जो आज फलीभूत भी हो रहा है। उनके इस संकल्प से प्रभावित होकर प्रदेश में पौध-रोपण के प्रति जो माहौल बना, उसमें अनेक संस्थाओं सहित व्यक्तिगत रूप से शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का जुड़ाव हुआ है।
चौहान ने पौध-रोपण के कार्य में भी नवाचार को अपनाया है। अब उनका यह प्रयास रहता है कि प्रतिदिन पौध-रोपण करते समय उनके साथ जीवन के सभी क्षेत्र के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर, पर्यावरण प्रेमी, सामाजिक संस्थाएँ, जन-प्रतिनिधि, विद्यार्थी और स्वयंसेवी लोग भी साथ रहे। इस अनूठी पहल से प्रदेशवासियों में पौध-रोपण के प्रति रूझान बड़ा है।
अपने संकल्प के प्रति पूर्णत: प्रतिबद्ध मुख्यमंत्री चौहान जन-कार्यक्रमों में संबोधन के दौरान पौध-रोपण करने का जिक्र अवश्य करते हैं। वे प्रत्येक आयोजन/कार्यक्रम में यह आहवान करते हैं कि -“हर नागरिक प्रतिदिन नहीं तो माह में एक और अपने पारिवारिक/मांगलिक कार्यक्रमों के अवसर पर एक पौधा अवश्य लगाये। यदि सभी लोग यह करते हैं तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी को एक बड़ी सौगात दे सकते हैं।” उनका यह भी कहना रहा है कि पिछले वर्ष कोरोना काल में हमने जो परेशानियाँ झेली हैं, उसमें ऑक्सीजन की कमी भी एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। पेड़-पौधे हमें न सिर्फ नि:शुल्क प्राकृतिक ऑक्सीजन देते हैं, बल्कि दुनिया को ग्लोबल वार्मिंग से भी बचाते हैं।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री चौहान ने 19 फरवरी 2021 को नर्मदा जयंती के अवसर पर अमरकंटक के शंभुधारा क्षेत्र में रूदाक्ष और साल का पौधा लगाकर प्रतिदिन एक पौधा लगाने की शुरूआत की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि -“पौध-रोपण पवित्र कार्य है, सभी नागरिकों को प्राथमिकता के साथ पर्यावरण-संरक्षण के लिए पौधे लगाकर उनकी सुरक्षा भी करना चाहिए। उन्होंने नागरिकों से अपील भी की थी कि पेड़ों की सुरक्षा कर प्रकृति का संरक्षण और संवर्धन में सभी अपना योगदान दें।”
पर्यावरण के प्रति चौहान शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं। मध्यप्रदेश की जीवनवाहिनी नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए नमामि देवी नर्मदे यात्रा कर उन्होंने न केवल नर्मदा जल को स्वच्छ बनाए रखने बल्कि नर्मदा मैया के दोनों तटों पर व्यापक रूप से वृक्षारोपण कर प्रकृति एवं पर्यावरण के लिए व्यापक जन-भागीदारी भी जुटाई। नर्मदा यात्रा से विकास के साथ जलवायु परिवर्तन में समाज को सरकार के साथ खड़ा करने में भी उन्हें सफलता मिली। नर्मदा किनारे लगाए गए पौधों को संरक्षण देने का दायित्व स्थानीय लोगों ने उठाया। साथ ही कई जिलों में जन-भागीदारी से पौध-रोपण कर हरियाली को बढ़ाया गया।
मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विकास के साथ अन्य महाअभियानों में समाज को साथ लेकर चलने की जो शुरुआत की थी, आज वह चरम पर पहुँच चुकी है। उनकी पहल पर पर्यावरण के क्षेत्र में जन-भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए राज्यव्यापी “अंकुर अभियान” चलाया गया। अभियान में 4 लाख 47 से अधिक लोगों ने ऑनलाइन पंजीयन कराकर 67 हजार पौधे रोपे हैं। पौधे के साथ सेल्फी लेकर अंकुर अभियान के एप पर अपनी और पौधे की फोटो अपलोड की। साथ ही पौधों के संरक्षण का दायित्व भी संभाला है। कार्यक्रम में 10 लाख 19 हजार पौध-रोपण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। यह अभियान जन-भागीदारी के साथ सतत जारी है।
शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भी हरियाली को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री ने जनहित में निर्णय लेकर अधिक से अधिक पौध-रोपण की योजना बनाई है। नगरीय निकाय द्वारा नये घरों के निर्माण की परमिशन देते समय आवास परिसर में वृक्षारोपण की शर्त रखी गई है। इसी प्रकार ग्रामीणों को भी पौध-रोपण के लिए लगातार प्रेरित किया जा रहा है। कुल मिलाकर प्रदेश में पर्यावरण के प्रति जन-जागृति को बढ़ाने में उन्होंने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। उनका कहना है कि हमें आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ और पर्यावरण से परिपूर्ण वातावरण को सौगात में देना होगा, जो हमारी पुरानी पीढ़ी ने हमें दिया था।