कानपुर, 04 फरवरी (हि.स.)। देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त बनाने को लेकर लगातार हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसी दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए टीबी की जांच के लिए एक सरल-सहज और आधुनिक तरीका अपनाने की कोशिश चल रही है। इसके तहत अब महज खाँसने की आवाज से टीबी की पहचान की जा सकेगी।
इसके लिए सेंट्रल टीबी डिविजन की ओर से पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। जनपद में ‘फील्डी’ एप की सहायता से घर-घर जाकर टीबी के बिना लक्षण वाले, लक्षण सहित व्यक्तियों और उनके संपर्क में आने वाले लोगों या रिश्तेदारों की आवाज के सैंपल एकत्रित किए जा रहें हैं। यह जानकारी जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. एके मिश्रा ने दी।
जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया कि तीन हफ्ते से ज्यादा किसी को खांसी रहने पर उसे टीबी संभावित माना जाता है पर जरूरी नहीं है कि तीन हफ्ते से ज्यादा खांसी आने पर भी व्यक्ति टीबी की जांच कराने पहुंचे। संबंधित व्यक्ति को टीबी है या नहीं यह बगैर बलगम की जांच के पता नहीं लग सकता। इसलिए सेंट्रल टीबी डिविजन ने खांसी के तरीके से संभावित मरीज की पहचान के लिए स्टडी शुरू की है। कफ साउंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड सोल्यूशन टू डिटेक्ट टीबी के लिए जनपद से 199 आवाज के सैंपल भेजे जाएंगे।
पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर देश के सभी राज्यों के चुनिंदा जिलों से टीबी मरीज, उनके संपर्क में रहे लोगों और संभावित रोगियों की खांसने, बोलने की आवाज रिकॉर्ड की जा रही है। इसके लिए ‘फील्डी’ एप बनाया गया है। इस पर स्वास्थ्यकर्मी प्राप्त दिशा-निर्देश के तहत विभिन्न चरणों के तहत वॉयस रिकॉर्डिंग कर रहे हैं।
जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना के मुताबिक, जनपद को 199 साउंड सैंपल का लक्ष्य प्राप्त है जिनमें टीबी के मरीज, संभावित और संपर्क में रहे लोगों के वॉयस सैंपल लिए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि ‘कफ साउंड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) सैंपल’ के अंतर्गत ‘फीलडी एप’ के लिए स्वास्थ्यकर्मियों को ऑनलाइन प्रशिक्षण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) की मण्डलीय सलाहकार डॉ डिंपल द्वारा दिया गया।
सात साल से अधिक उम्र के बच्चों की रिकॉर्ड हो रही वॉयस
जिला कार्यक्रम समन्वयक के मुताबिक डिविजन की ओर से प्राप्त निर्देश के तहत प्रशिक्षित अधिकारी/ सुपरवाइजर चिह्नित व्यक्ति के घर मास्क पहनकर जाएंगे। सात साल से अधिक उम्र के टीबी मरीजों, संभावित और संपर्क में रहे लोगों की ही वॉयस रिकॉर्डिंग की जा रही है। एप में वॉयस रिकॉर्ड करने से पहले संबंधित व्यक्ति, मरीज का पूरा डाटा भरा जाता है। इसके बाद अलग-अलग चार चरणों में रिकॉर्डिंग होती है। पहला, एक से दस तक गिनती, दूसरा, खांसी की आवाज, तीसरा आ, ई, ऊ तीन शब्दों को तीन-तीन बार बोलने, चौथा रिकॉर्डिंग के दौरान बैकग्राउंड आवाज रिकॉर्ड की जा रही है।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से टीबी के मरीज खोजने की होगी स्टडी
जिला कार्यक्रम समन्वयक ने बताया कि प्रोजेक्ट का मकसद मोबाइल एप (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के जरिए महज खांसी की आवाज से संभावित मरीज की पहचान करना है। कई बार लोग लंबे समय तक खांसी आने के बावजूद डर व संकोच के चलते जांच नहीं कराते हैं, वह खुद ही मोबाइल में एप इंस्टाल कर अपनी जांच कर सकेंगे।