सप्ताह की सुर्खीः दो मुख्यमंत्री, अलग-अलग अंदाज़-ए-बयां

डॉ. प्रभात ओझा 
नवीन पटनायक, यह नाम चर्चा में बहुत कम रहता है, पर है बहुत खास। कारण भी सामान्य नहीं हैं। अपनी भाषा उड़िया ठीक से नहीं बोल सकने वाले पटनायक लगातार चौथी बार उड़ीसा के मुख्यमंत्री हैं। परिवार के नाम पर सिर्फ दो वफादार कुत्ते, फिर सम्पत्ति की कौन जांच करे। राज्य में बहुत गरीबी है, पर प्रमुख शहरों में भीख मांगने वाले बहुत कम दिखेंगे। साक्षरता दर कम है, पर भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में उड़ीसा की भागीदारी का औसत कई राज्यों से बेहतर है। स्वच्छता में बहुत ऊंचा स्थान नहीं, पर प्रायः राज्य के हर जिले में साफ-सफाई का बेहतर इंतजाम आकर्षित करता है।
ढेर सारी खूबियों में इस राज्य के सीएम का ताजा जिक्र राज्य में आए चक्रवाती तूफान और तूफान प्रभावित इलाकों में प्रधानमंत्री के दौरे के बाद हो रहा है। उन्होंने समीक्षा बैठक में केंद्र से कोई राहत पैकेज नहीं मांगा, उलटे मुख्यमंत्री ने कहा कि महामारी के वक्त वे केंद्र पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालना चाहते। ‘हम संकट से निपटने के लिए अपने संसाधनों से इसका प्रबंधन करेंगे।’ प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के दीर्घकालिक उपायों के लिए उन्होंने जरूर भविष्य में केंद्र के सहयोग की उम्मीद जतायी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने जहां उसी दिन बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बमर्जी का उदाहरण था, वहीं उड़ीसा के इस मुख्यमंत्री ने एकबार फिर उन्हें प्रभावित किया। ममता बनर्जी ने पूर्व निर्धारिक बैठक में भी प्रधानमंत्री व राज्यपाल को आधे घंटे इंतजार करवाकर सामान्य शिष्टाचार को भी दरकिनार कर दिया। दूसरी ओर, पटनायक ने विनम्रतापूर्वक अपनी बेहतर तैयारियों की तरफ संकेत किया। प्रधानमंत्री पहले भी कई बार मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की प्रशंसा कर चुके हैं। इसबार आपदाओं पर पटनायक के बताए उपायों से भी पीएम मोदी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
दरअसल, पहले भी उड़ीसा ने इस मामले में उदाहरण पेश किया है। उड़ीसा हर बार तूफान से कुछ सीखता रहा है। इसके आधार पर उसने आगे के लिए रणनीति भी बनायी है। दरअसल याश नाम का यह तूफान पिछले 20 वर्षों में राज्य के लिए आठवां बड़ा तूफान था। जहां तक छोटे और मध्यम श्रेणी के चक्रवातों की बात है, उड़ीसा ने सिर्फ ढाई साल में पांचवीं बार यह संकट देखा है। हाल यह है कि राज्य ग्रीष्मकालीन तूफान में भी बाढ़ जैसी स्थितियों से गुजरा। प्रदेश के सिमलिपाल बायोस्पीयर में तो बाढ़ के हालात बन गये। गजब कि वहां भी बारिश के अनुमान वाले स्टेशन नहीं थे और स्थानीय सूत्रों ने ही तेज बारिश के बारे में बता दिया था। यहां बालू की बोरिया लगाकर बाढ़ रोकने की कोशिशें हुईं।
इस बार तो उड़ीसा ने भारतीय मौसम विभाग के अनुमानों में भी कुछ जोड़ा। भारतीय मौसम विभाग ने यास के लैंडफॉल की जगह पारादीप और सागर द्वीप के बीच बताया। उड़ीसा के विशेषज्ञों ने इसके आधार पर अध्ययन किया और पाया कि यह पारादीप और दीघा के बीच होगा। तब हवाएं 150 से 160 किलोमीटर की गति से चलेंगी और 300 मिलीमीटर बारिश होगी। तूफान के बाद बिजली बहाली के जन दबाव को देखते हुए डीजल मोटरों से वैकल्पिक बहाली की तैयारी कर ली गयी थी। पेयजल के लिए मोबाइल वॉटर टैंकर तैनात कर दिए गये थे। बार-बार तूफान के संकटों का सामना कर रहे राज्य के लिए इसबार कोरोना का भी सामना करना था। तूफान प्रभावित क्षेत्रों से बाहर लाए गये लोगों के लिए वैकल्पिक अस्पताल बनाए गए, तो उनमें मास्क और सेनेटाइजर का पर्याप्त वितरण कराया गया।
इस तरह के इंतजाम करने वाली सरकार और उसके मुख्यमंत्री की प्रशंसा भला कौन नहीं करेगा। प्रधानमंत्री ने अगले दिन ट्वीट कर पटनायक के साथ हुई बैठक को सार्थक बताया। आपदाओं से निपटने की योजना पर काम करने के लिए उन्होंने उड़ीसा को 500 करोड़ रुपये की मदद की भी घोषणा की। राशि के हिसाब से यह रुपये बहुत कम हैं, पर बहुत बड़े काम के लिए गौरतलब शुरुआत जरूर है। प्रधानमंत्री ने तूफान से निपटने में उड़ीसा मॉडल पर काम करने की जरूरत महसूस की है। इसी के साथ फिर तय हुआ कि प्रायः चुप रहने वाले मुख्यमंत्री पटनायक के काम बोलते हैं।

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