कोविड शांति को श्रीलंका के बौद्ध मठों में रत्नसुत्त जप शुरु

– कोविड शांति को श्रीलंका के बौद्ध मठों में रत्नसुत्त जप शुरु-कुशीनगर व बोधगया में रह रहे श्रीलंकाई भिक्षुओं की पहल 
कुशीनगर, 30 अप्रैल(हि.स.)। भारत में कोविड-19 की शांति हेतु श्रीलंका के प्रमुख बौद्ध मठों, विहारों व मंदिरों में गुरुवार को रत्नसुत्त जप का आरंभ हो गया। पूर्व काल में वैशाली में व्याप्त अकाल, दुर्भिक्ष व महामारी की शांति के लिए गौतम बुद्ध ने रत्नसुत्त का जप किया था। श्रीलंकाई बौद्ध भिक्षु अब महामारी की शांति के लिए यह प्रयोग शुरू किए हैं। 
 कुशीनगर में निवास कर रहे श्रीलंका के सांस्कृतिक राजदूत व जापान-श्रीलंका बौद्ध विहार के प्रबन्धक भिक्षु अस्स जी महाथेरो ने यह जानकारी पत्रकारों से साझा की। उन्होंने रत्नसुत्त जप के वीडियो क्लिप भी साझा किए। रत्नसुत्त जप देश के बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, संकिसा, श्रावस्ती, लुम्बनी आदि प्रमुख स्थलों पर रह रहे श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं की पहल पर शुरू हुई है। इनमें से अधिकतम बौद्ध भिक्षु अंतर्राष्ट्रीय उड़ान बन्द होने के कारण इस समय श्रीलंका में हैं। 
 उन्होंने श्रीलंका के बौद्ध भिक्षुओं से वार्ता कर कोविड-19 की समाप्ति तक रत्नसुत्त पाठ नित्य करने की योजना बनाई। तस्मा हि भूता निसामेथ सब्बे मेत्तं करोथ मानुसिया पजाय, दिवा च रत्तो च हरंति ये बलिं तस्मा हि ने रक्खथ अप्पमत्ता, अर्थात चित्त सकारात्मक हो, कुशल कर्मों से ही सभी प्रकार के बुरे विचार नष्ट हो, वायुमंडल या अंतरिक्ष में फैले अमनुष्य अर्थात सभी तरह के वायरस समाप्त हो।
  “बौद्ध ग्रंथ सुत्तनिपात में रतन सुत्त का संग्रहित है। इसमें कुल 17 सुत्त हैं। जिस समय वैशाली में लोग दुर्भिक्ष, अकाल, महामारी के भय, रोगादि से पीड़ित थे। उस समय भगवान बुद्ध ने उस समय इन सुत्तों का पाठ किया था। सुत्तपाठ के कुछ दिनों बाद वहां से आपदा समाप्त हो गई। वर्तमान माहौल में इसका पाठ प्रासंगिक हो गया था। शांति व लोगों के मन से भय समाप्त करने को रत्नसुत्त का जप श्रीलंका में किया जा रहा है”                                         -भिक्षु अस्स जी महाथेरों प्रमुख श्रीलंकाई भिक्षु 

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