विश्लेषणः प.बंगाल विस चुनाव का आखिरी चरण

मोहन सिंह
पश्चिम बंगाल में 29 अप्रैल को आठवें और अंतिम चरण का चुनाव सम्पन्न होगा। इस चरण में मालदा की छह, मुर्शिदाबाद की ग्यारह, वीरभूमि की सभी ग्यारह और उत्तर कोलकाता की शेष सात सीटों पर मतदान होगा। विधानसभा चुनाव के इस अंतिम चरण में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की चुनावी सेनाएं मुर्शिदाबाद और मालदा के रणक्षेत्र में पूरी तैयारी से जुटी हुई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बेहरामपुर के सर्किट हाउस से मुर्शिदाबाद और मालदा से अपना चुनावी अभियान चला रहीं है, तो भाजपा के राज्य स्तर के सभी नेता दिलीप घोष, सुबेन्दु अधिकारी, लाकेट चटर्जी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी विधानसभा चुनाव की बाजी अपने पक्ष में करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही हैं।
ममता बनर्जी अपने भाषणों में लगातार ऐलान कर रही हैं कि इसबार उनकी सरकार वापसी के लिए दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद और मालदा को विशेष भूमिका अदा करनी है। मुर्शिदाबाद और मालदा ये दोनों बंगालदेश से लगे और अल्पसंख्यक बाहुल्य क्षेत्र हैं। सीमा पार से होने वाली घुसपैठ, अल्पसंख्यक बाहुल्य समुदाय की दहशत की वजह और पिछले दस साल के सत्ता विरोधी रुझान मुर्शिदाबाद और मालदा के कई विधानसभा चुनावों को प्रभावित कर रहे हैं। मुर्शिदाबाद की कुल 22 सीटों में दो विधानसभा क्षेत्र जंगीपुर और शमशेरगंज का चुनाव दो प्रत्याशियों की मृत्यु की वजह से स्थगित हो गया है। वहां अब 16 मई को चुनाव होंगे।
एक जमाने में मुर्शिदाबाद और मालदा में कांग्रेस का मजबूत आधार रहा है। इन विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस मुर्शिदाबाद की कुल बाइस में से सत्रह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। पर इसबार विधानसभा चुनावों में अल्पसंख्यक मतों का जिस तरह तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ है, इस वजह से कांग्रेस की संभावना थोड़ी कमजोर दिख रही है। स्थानीय लोगों से बातचीत में यह भी संकेत मिल रहे हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के बहुतेरे लोग जो कांग्रेस छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में गए, उनकी कांग्रेस में वापसी हुई, इस वजह से इस इलाके में कांग्रेस की सम्भावना उतनी कमजोर नहीं है, जितनी बतायी जा रही है। ममता सरकार के हर विरोधी को गलत पुलिस केस में फंसाने की वजह से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में भी नाराजगी है।
पेशे से अध्यापक निबिर घोष बताते हैं कि इसबार विधानसभा सभा चुनाव में मुर्शिदाबाद के शहरों में जहां सत्ता विरोधी रुझान है, वहीं गांवों और शहर दोनों जगह धार्मिक ध्रुवीकरण भी चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकता है। जाहिर है कि इस वजह से भाजपा आठवें चरण के चुनाव में मुर्शिदाबाद की बेलडांगा, कांदी और मुर्शिदाबाद में बेहतर चुनावी संभावनाओं की उम्मीद कर रही है। बेहरामपुर विधानसभा चुनाव के नतीजे के बारे में इस विधनसभा के स्थानीय निवासी अरविंदम दावा करते हैं कि इसबार यह सीट भाजपा जीत सकती है। जिला मुख्यालय होने की वजह से इस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता इसबार अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। मुर्शिदाबाद में गांवों से शहरी इलाके की ओर पलायन भी पिछले एक दशक में जबरदस्त हुआ है और यह मुद्दा चनावी नतीजों को प्रभावित करता दिखाई दे रहा है।
पूरे मालदा में एक समय अब्दुल गनी खान चौधरी परिवार का दबदबा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी इस परिवार के अबु हसन खान चौधरी चुनाव जीतने में कामयाब हुए। पर इसबार विधानसभा चुनाव में असली लड़ाई स्थानीय व्यवसायी सुमन करमाकर के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। सन 2016 के विधानसभा चुनाव में वैष्णवनगर सीट भाजपा जीती थी। इसबार विधानसभा चुनाव में मालदा, इंग्लिश बाज़ार और मालतीपुर सीट पर भाजपा अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर रही है। मालदा जिले से तृणमूल कांग्रेस की पिछले विधानसभा चुनाव में भी कोई खास सफलता नहीं मिली थी। पर इसबार अल्पसंख्यक बाहुल्य मोथाबाड़ी और सुजापुर में तृणमूल कांग्रेस की बेहतर चुनावी संभावनाएं बनती दिखाई दे रही है। इस इलाके में घुसपैठ, कालाबजारी, नकली नोट का चलन और गांवों से शहरों की ओर पलायन के मुद्दे मतदाताओं के मन मिजाज को प्रभावित करते लग रहे हैं।
जाहिर है कि इसबार चुनावी नतीजे ध्रुवीकरण के अलावा इन मुद्दों के आधार पर भी तय होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। सरकारी भ्रष्टाचार और दुर्नीति भी अहम मुद्दे हैं जो सरकार विरोधी रुझान को इस विधानसभा चुनाव में प्रकट कर रहे हैं। वीरभूमि की जिन ग्यारह सीटों का चुनाव आठवें चरण में होना है, वहां तृणमूल सरकार का भ्रष्टाचार, तोलाबाजी बालू-गिट्टी के व्यवसाय में सरकार समर्थक गिरोह की दादागिरी और आमजन की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने वाली पेयजल की समस्या मतदाताओं में सरकार परिवर्तन की चाहत बयां कर रही है। जनता को मुफ्त में मिलने वाले राशन में गनडोगोल, चावल घोटाला लोगों के जेहन में ताजा है। पिछले पंचायत चुनाव के वक्त मे पर्चा दाखिल न करने देने, चुनावों में खूनखराबा, व्यापक पैमाने पर हुई धांधली की वजह से आमजन में बेहद गुस्सा है।
सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी कुणाल रॉय बताते हैं कि दो महीने पहले से ही लोगों ने इस सरकार को बदलने का मन बना लिया था। स्थानीय निवासी आशीष मंडल दावा करते हैं कि झारखंड से सटे होने और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का ममता बनर्जी के समर्थन के बावजूद इलाके के ज्यादातर आदिवासियों में ममता सरकार के प्रति बेहद गुस्सा है। यहां भी इस चुनाव चर्चा में यह बात सामने आ रही है कि विकास के अलावा धार्मिक आधार पर हुए ध्रुवीकरण को लोग चुनावी नतीजों को प्रभावित करने वाला एक अहम मुद्दा मान रहे हैं। इस वजह से अल्पसंख्यक बाहुल्य मुराराई, संथिया, हासन और बोलपुर मे टीएमसी की स्थिति को मजबूत बताया जा रहा है। रामपुरहाट, मयूरेश्वर, लाभपुर ,नलहाटी, दुबराजपुर और कुछ अन्य विधानसभा क्षेत्रों में इस बिना पर ही चुनावी नतीजे तय होने की उम्मीदें जताई जा रही है।
पेशे से पेंटर और सामाजिक राजनीतिक रूप से जागरूक चंचल मुखर्जी का दावा है कि पश्चिम बंगाल में इसबार सत्ता का परिवर्तन अवश्य होना है और वीरभूमि की कुल ग्यारह सीटों कम से कम पांच और अधिकतम सात सीट भाजपा जीत सकती है। उत्तर कोलकाता के जिन सात सीटों पर आठवें चरण का मतदान होना है ये वे सीटें हैं जहां शहरों में बढ़त को पिछले लोकसभा चुनाव में रोक दिया था। इस इलाके में सबसे ज्यादा चुपचाप वोट करने वाले मतदाताओं की अच्छी खासी है और भाजपा के मुकाबले तृणमूल कांग्रेस का मजबूत संगठन भी है। स्थानीय क्लबों का हस्तक्षेप जीवन के हर क्षेत्र में है। इस इलाके के भद्रोलोक को पश्चिम बंगाल के हर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव को नेतृत्व, नियंत्रण और वैचारिक आधार तैयार करने का अभिमान है। इस इलाके में बाहरी-भीतरी, बंगाली-गैर बंगाली, बोली भाषा का मुद्दा भी खुलकर सामने आ रहा है। आमजन में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से भय भी है इसलिए हर कोई चुनाव के बाबत अपनी राय व्यक्त करने में झिझकता है।
भाजपा के स्थानीय कार्यकर्ताओं में भी गांवों के मुकाबले एक अजीब किस्म की उदासीनता का माहौल दिखाई देता है। फिर भी भाजपा जोड़ासांकू से मीना पुरोहित को तृणमूल कांग्रेस के विवेक गुप्ता के मुकाबले लड़ाई में मान रहीं है। मानिकतला में पहले कांग्रेस और बाद में टीएनस से कई बार विधायक रहे साधन पांडे के मुकाबले मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी भाजपा के कोलन चौबे के बीच दिलचस्प मुकाबले की संभावना जतायी जा रही है। बेलियाघाटा से तृणमूल कांग्रेस के विधायक परेश पॉल का मुकबला मकुल रॉय के नजदीकी काशीनाथ विश्वास से है। जोट के प्रत्याशी इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के लिए संघर्षरत हैं। श्यामापुकुर से अजित पंजा की पुत्रवधू शशि पंजा का मुकाबला भाजपा के विश्वनाथ विश्वास से है। यहां कांटे का संघर्ष होने की संभावना है। काशीपुर बेलगछिया में तृणमूल कांग्रेस के अतिन घोष का मुकाबला भाजपा के शिवाजी सिंह रॉय से है और यहाँ कांटे का संघर्ष होने की संभावना है। चौरंगी में सुदीप बंगोपाध्याय की पत्नी नैना बंगोपाध्याय का मुकाबला भाजपा के देवदत्त मांझी से है। इस विधानसभा में दिलचस्प मुकाबले की संभावना बतायी जा रही है।पर पलड़ा तृणमूल के पक्ष में भी भारी होने के दावा किया जा रहा है।
इंटाली में तृणमूल कांग्रेस के सौनक साहा का मुकाबला भाजपा की महिला प्रत्यासी प्रियंका टेकरीवाल से है। शहरों की इस अंतिम चरण के चुनाव के लिए भाजपा ने रोड शो और सघन रैलियों के जरिये माहौल बनाने की रणनीति तैयार की थी, जो चुनाव आयोग की पाबंदी की वजह से परवान न चढ़ सकीं। फिर भी विधानसभा चुनाव के मुद्दे और चुनावी टोन छठे चरण के मतदान के बाद पूरी तरह से सेट हो चुका था। इस उम्मीद के भरोसे ही भाजपा शहरों में तृणमूल कांग्रेस के अपेक्षाकृत मजबूत संगठन का मुकाबला कर रही है। भाजपा की तुलना में तृणमूल कांग्रेस का बहुत बड़ा दांव मालदा, मुर्शिदाबाद और उत्तर तथा दक्षिण दिनाजपुर के बाद इन शहरी सीटों पर ही लगा है। भाजपा को इन शहरी सीटों में जो भी सीटें मिलेंगी, वह उसकी जीत के दावे को और पुख्ता ही करेगी।

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