अकीदत के साथ रोजेदारों ने अदा की रमजान के दूसरे जुमा की नमाज

बेगूसराय, 23 अप्रैल (हि.स.)। पवित्र माह रमजान रोजेदारों के लिए भलाई और बरकत का महीना है। इसका पहला दस दिन रहमत, दूसरा दस दिन मग्फिरत और तीसरा दस दिन जहन्नम के आग से आजादी है। जो कोई इस महीने में सवाब (पुण्य) की नीयत से रोजा रखे और रात मे तरावीह पढ़े तो उसके तमाम गुनाह (पाप) माफ कर दिए जाते हैं। यह बातें साबिक इमाम मुफ्ती सरफराज आलम कासमी ने रमजान के दूसरे जुमा की नमाज से पहले शुक्रवार को  रोजेदारों को संबोधित करते हुए कही।
उन्होंने कहा कि इसी महीने में कुरान शरीफ को अल्लाह ने दुनिया में नाजिल फरमाया। इस महीने में एक ऐसी रात है, जिसकी इबादत हजार रातों की इबादत से ज्यादा अफजल है। इस महीने में किए गए एक नेकी (भलाई) के बदले 70 नेकियां मिलती है। इसलिए रोजेदारों को रोजा के साथ साथ पांचों वक्त की नमाज एवं तरावीह पाबंदी से पढ़नी चाहिए। अपने गुनाहों पर शर्मिंदा होकर रब के हुजूर हाथ फैलाकर निदामत का आंसू बहाते हुए तौबा करनी चाहिए।
कोरोना जैसी मुहलिक महामारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि सेहत अल्लाह की दी हुई नेमत तथा बीमारी उसकी ओर से आजमाईश है। मोमिन की यह शान है कि वह हर हाल मे अल्लाह का शुक्र अदा करे। आजमाईश और मुसीबतों मे सब्र के साथ अपने रब के हुजूर सज्दारेज होकर (सर को जमीन पर रखकर) उससे तमाम इंसानियत की हिफाजत के लिए दुआ करे। इसके साथ ही शरई नुक्ते नजर से भी लोगों को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने की हिदायत देते हुए इस्लामी उसूल के मुताबिक ना खूद को नुकसान पहुंचाएं और ना दूसरों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करने की बात कही।
उन्होंने कहा कि बीमारी का लक्षण आने पर अपने आपको कैद कर लें। लेकिन परिजन हर हाल मे अपनी सुरक्षा के साथ उनकी देखभाल करें। दूसरे जुमा के दिन रोजेदारों ने कोरोना प्रोटोकॉल के तहत अकीदत के साथ अपने अपने घरों में नमाज अदा की। जबकि मस्जिदों में इमाम, मोअज्जिन के साथ मस्जिद कमेटी के सदस्यों के द्वारा नमाज अदा कर महामारी से पूरी इंसानियत को निजात देने के लिए दुआएं की गई।

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