विश्लेषणः पश्चिम बंगाल में छठे चरण का मतदान

मोहन सिंह
पश्चिम बंगाल के छठे चरण के मतदान में कुल 43 विधानसभा सीटों का फैसला होना है। उत्तर चौबीस परगना की सत्रह, बर्दवान की आठ, नदिया की नौ और उत्तर दिनाजपुर की नौ सीटें हैं। इनमें नदिया और उत्तर दिनाजपुर की वे सीटें भी शामिल हैं जो बांग्लादेश की सीमा से सटी हैं। जाहिर है इस सीमांचल क्षेत्र में तस्करी, अवैध घुसपैठ, गोकशी,अवैध व्यापार अपराधी गतिविधियां और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण चुनावी नतीजों को प्रभावित करेंगे। इसके अलावा कटमनी, सरकार की खराब नीति, अम्फाम तूफान के समय बसीरहट, हिमलगंज, सन्देशखली, स्वरूपनगर और बदुरिया में केंद्रीय सहायता की बंदरबाट मतदाताओं के मन में अभी भी ताजा है। नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में खासकर सीमांचल क्षेत्र में चले आंदोलन, धरना-प्रदर्शन से हुई परेशानी भी मतदाताओं के निर्णय को तय करेंगे।
इस चरण के मतदान में जिन महत्वपूर्ण राजनीतिक शख्सियतों के भाग्य का फैसला होना हैं उनमें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मकुल राय, जो नदिया जिले के कृष्णानगर उत्तर से चुनाव लड़ रहे हैं और उत्तर दिनाजपुर की चाकुलिया सीट जहां से वाम कांग्रेस और इंडियन सेक्युलर फ्रंट जोत के उम्मीदवार इमरान अली रमज़ उर्फ विक्टर चुनाव लड़ रहे हैं। चाकुलिया वाममोर्चा की परंपरागत और इमरान परिवार की पुश्तैनी सीट रही है। इसबार तृणमूल कांग्रेस ने यहां से मिन्हास को टिकट दिया है।अल्पसंख्यक बाहुल्य इस विधानसभा सीट से भाजपा के डॉ. सचिन प्रसाद चुनाव लड़ रहे है। पिछले लोकसभा चुनाव में जिस तरह से वोटों का ध्रुवीकरण हुआ, उस आधार पर 2016 में चाकुलिया से चुनाव लड़े असीम मिर्धा का दावा है कि अगर अल्पसंख्यक मतों का थोड़ा भी विभाजन जोत के उम्मीदवार इमरान और तृणमूल के उम्मीदवार मिन्हास के बीच हुआ तो भाजपा को इसका फायदा हो सकता है। 
बताते चलें कि ध्रुवीकरण की वजह से ही पिछले लोकसभा चुनाव में रायगंज सीट से देवोश्री चौधरी चुनाव जीतकर केंद्र सरकार में मंत्री बनीं। उत्तर दिनाजपुर की गवालपुकुर, चोपरा, इस्लामपुर और इटहर विधानसभा सीट से भाजपा को कोई बहुत उम्मीदें नहीं है। पर संघ अपने संगठन सीमांचल जागरण मंच के जरिये नदिया और उत्तर दिनाजपुर में बांग्लादेश से लगी सीमा में अपना मजबूत संगठन खड़ा करने का दावा कर रहा है। इस संगठन से जुड़े लोगों का दावा है कि इस काम में तेजी आई 2017 से और इसमें सीपीएम और कांग्रेस से जुड़े काडर का भी उन्हें खासा सहयोग मिलता है। उत्तर दिनाजपुर की कुछ सीटों पर मतुआ, नमोशूद्र और बांग्लादेश से आये शरणार्थी भी जीत-हार का फैसला तय करेंगे। पर उत्तर दिनाजपुर की ज्यादातर सीटों पर अगर तृणमूल कांग्रेस और महाजोत के बीच मतविभाजन नहीं हुआ तो तृणमूल कांग्रेस का पलड़ा भारी रहने की संभावना अधिक है।
भाजपा कालियागंज, हेमताबद और रायगंज में अपनी मजबूत पकड़ मान रही है। चपरा में तृणमूल से बगावत कर चुनाव लड़ रहे निर्दलीय प्रत्याशी के वोट हासिल करने की उम्मीद और बलाकीपारा में मत विभाजन पर भाजपा की उम्मीदें टिकी हैं। उत्तर चौबीस परगना में धार्मिक पहचान के अलावा मतुआ समुदाय की नागरिकता का मुद्दा नमो शुद्र और राजवंशी समाज की जातीय अस्मिता की पहचान प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। सरकारी दुर्नीति, कटमनी, शासन का भरष्टाचार और अम्फाम तूफान के समय जरूरतमंदों तक राहत सामग्री पहुंचाने के बजाय तृणमूल से जुड़े लोगों तक ही राहत पहुंचाने की कोशिश आम मतदाताओं को आज भी बेहद परेशान करती हैं। जाहिर हैं कि आपातकाल में बरती गई इस सरकारी दुर्नीति का मतदाताओं के मत निर्णय पर खासा असर होगा। सरकार के ऐसे ही रवैये से इलाके के हिन्दू और मुसलमान दोनों खफ़ा हैं।
बढ़ते अपराध, मामूली विकास की भी बेहद धूमिल होती संभावना लोगों के जेहन में परिवर्तन की चाहत पैदा कर रही है। इस उम्मीद में कि आने वाला कल शायद कुछ बेहतर हो।आलम यह कि 150 साल पुरानी बसिरहट नगरपालिका में जलजमाव की समस्या थोड़े बरसात में भी कई मुसीबतें पैदा कर देता है। फिर भी आजतक न जल निकासी की कोई योजना परवान चढ़ पाई और न ही शहर की ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त हो पाया। बेरोजगारी चरम पर पहुँच ही चुकी है, पर जो थोड़े बहुत सरकारी नौकरियों के अवसर उपलब्ध होते भी हैं, उनमें सरकारी अमले को पूजा चढ़ाए बिना नौकरी पाने की कोई उम्मीद नहीं कर सकता हैं।
इलाके में इसबार मतदान का फैसला डॉ. शौर्य बनर्जी के मुताबिक बहुत हद तक धार्मिक ध्रुवीकरण और आमजन में सत्ता के बदलाव के चाहत से ही तय होना चाहिए। नदिया के जिन नौ सीटों पर छठे चरण का मतदान होना है उसमें सबसे महत्वपूर्ण सीट है कृष्णा नगर उत्तर विधानसभा सीट, जहां से भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और एक समय ममता बनर्जी के खास रणनीतिकार रहे मकुल रॉय चुनाव लड़ रहे है। उनके विरुद्ध तृणमूल कांग्रेस से टीवी स्टार कौशानी बनर्जी चुनाव लड़ रही हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त यहाँ से भाजपा पचास हजार मतों से आगे थी। इसबार मकुल रॉय के समर्थक उससे ज्यादा वोट से जीत का दावा कर रहे हैं।
भाजपा दक्षिण कृष्णा नगर समेत नदिया की कई अन्य सीटों पर अपनी मजबूत दावेदारी कर रही है। आध्यत्मिक पुरुष चैतन्य महाप्रभु की इस धरती पर बांग्लादेश की सीमा से जुड़ी समस्याएं मसलन तस्करी, अपराध, गोकशी और इन समस्याओं के प्रति आमतौर पर बरती जाने वाली ममता सरकार की बेरुखी मतदाताओं के मन मिजाज को बहुत हद तक प्रभावित करती दिख रही है। मतदाताओं के इस बदले रुख का हवाला देते हुए डॉ. आमोद दावा करते हैं कि नदिया की कुल आठ में से पाँच से छह सीटें इसबार भाजपा जीत सकती है। वहीं सीमा जागरण मंच से जुड़ी सीमा चटर्जी का दावा है कि भाजपा कम से कम चार से पांच सीटें तो जीत ही जाएगी। उन्हें इस बात की शिकायत है कि इलाके में भाजपा के कार्यकर्ता तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह जमकर मेहनत नहीं कर रहे हैं और गली-गली में प्रचार नहीं कर रहे हैं।
पूर्वी बर्दवान की जिन आठ सीटों पर छठे चरण का मतदान होना है वे शहरी और देहाती इलाके का मिला-जुला क्षेत्र हैं। खेती किसानी के लिए सिंचाई के बेहतर इंतजाम, औद्योगिक सुविधाओं का अभाव इस इलाके के मतदाताओं का रुझान तय करेगा। ताज्जुब यह कि नदियों के संजाल वाले इस इलाके में पेयजल और सिंचाई सुविधाओं का अभाव लोगों के मन को कचोटता है। इसके अलावा लोगों से बातचीत में जो बात सामने आ रही है वह आमजन खासकर हिन्दी भाषी और ममता बनर्जी विरोधी मतदाताओं में व्याप्त मनोवैज्ञानिक भय। यह कि ममता बनर्जी अगर इसबार फिर जीत गई तो पता नहीं उनके साथ कैसा बर्ताव होगा। इस मनोवैज्ञानिक भय के दबाव में ही इस चरण के मतदाताओं को अधिक से अधिक संख्या में मतदान केंद्रों पर जाने और वोट करने के लिए मजबूर होने की संभावना है। इस चरण के चुनावी नतीजे इन मुद्दों और ऐसे माहौल में ही तय होने की उम्मीद की जा रही है।

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