नई दिल्ली, 19 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय शेयर बाजार की उठा-पटक ने केंद्र सरकार के विनिवेश कार्यक्रम पर सवालिया निशान लगा दिया है। पिछले वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही के दौरान मार्केट ने जिस तरह से सकारात्मक तेजी दिखाई थी, उससे सरकार को उम्मीद थी कि आने वाले दिनों में मार्केट से अच्छा रिटर्न मिलने लगेगा, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने सरकार की उम्मीदों को अभी से चकनाचूर करना शुरू कर दिया है। दरअसल कोरोना की दूसरी लहर ने जिस गति से देश के कई राज्यों को अपनी चपेट में लिया है, उससे बाजार मे निगेटिव सेंटिमेंट्स हावी हो गए हैं। हालात पार काबू पाने के लिए तमाम राज्य सरकारों को अपने अपने क्षेत्राधिकार में अपने हिसाब से पाबंदियां लगाने के लिए बाध्य होना पड़ा है, लेकिन इन पाबंदियों ने भारतीय बाजारों और वहां कारोबार कर रहे निवेशकों को भी डरा दिया है। बाजार के निगेटिव सेंटिमेंट्स और निवेशकों के डर से केंद्र सरकार की विनिवेश की योजना पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना बन गई है। इस वित्त वर्ष में केंद्र सरकार ने अपने कई उपक्रमों से अपनी हिस्सेदारी बेचकर उनका पूर्ण या आंशिक निजीकरण करने और उनके जरिए बड़ी रकम जुटाने का लक्ष्य तय किया है। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने इस वित्त वर्ष के दौरान भारतीय जीवन बीमा निगम समेत कई सरकारी उद्यमों से अपनी हिस्सेदारी बेचने की योजना बनाई है। भारत सरकार अपने विनिवेश कार्यक्रम के तहत अभी तक एयर इंडिया, भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन और भारत अर्थ मूवर्स (बीईएमएल) जैसी कई कंपनियों में हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। जानकारों का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर ने बाजार के सेंटिमेंट्स पर काफी बुरा असर डाला है। साथ ही बाजार के निवेशक भी इसकी वजह से डरे हुए हैं। भारत सरकार के विनिवेश कार्यक्रम के लिए डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) ने पिछले साल ही शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के स्ट्रैटेजिक सेल के लिए अलग-अलग कार्यक्रमों की शुरुआत कर दी थी। इसके तहत दीपम ने सिंगापुर और हांगकांग के प्रस्तावित निवेशकों के साथ वर्चुअल मीटिंग भी की थी। वहीं उसकी योजना स्ट्रैटेजिक सेल के लिए रोड शो करने की भी थी, लेकिन कोरोना के संक्रमण के कारण दीपम की रोड शो करने की योजना भी प्रभावित हो गई थी। जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार अपना पूरा फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर लगाना चाहती है। इन प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी पैसा सरकारी उपक्रमों के विनिवेश के जरिये ही आ सकता है। इसीलिए सरकार हर हाल में अपने विनिवेश कार्यक्रम को समय से पूरा करना चाहती है। सरकार कई मौकों पर इस बात का भरोसा भी जता चुकी है कि विनिवेश कार्यक्रम के तहत इस साल के लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा। बाजार के विशेषज्ञों का कहना है कि अभी के समय में जबकि सरकार को अपने विनिवेश कार्यक्रम को तेज करने की कोशिश करनी चाहिए, तब उसकी प्राथमिकता कोरोना महामारी को रोकना और कोरोना मरीजों के इलाज की समुचित व्यवस्था करने की हो गई है। एक जनतांत्रिक देश में होना भी यही चाहिए, लेकिन इससे सरकार का ध्यान विनिवेश कार्यक्रम की ओर से तो भटक ही गया है, निवेशकों के मन में कोरोना का डर बैठ जाने के कारण पूरे विनिवेश कार्यक्रम पर ही इस वित्त वर्ष के दौरान प्रश्नचिन्ह लगता हुआ नजर आने लगा है। केंद्र सरकार की एक परेशानी ये भी है कि कई सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के फैसलों को अभी तक आखिरी मंजूरी नहीं मिली है। सरकार द्वारा गठित नीति आयोग ने दो सरकारी बैंकों और एक जनरल इंश्योरेंस कंपनी के निजीकरण को हरी झंडी दिखा दी है। इसके बाद भी सात से आठ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां विनिवेश के जरिये बिकने के इंतजार में हैं। सरकार की योजना नीति आयोग की मंजूरी के बाद आईपीओ के जरिये इन उपक्रमों में से अपनी हिस्सेदारी को बेचने की है, लेकिन बाजार के निगेटिव सेंटिमेंट्स और निवेशकों के डर की वजह से केंद्र सरकार की इस योजना पर पानी भी फिर सकता है।
2021-04-19