पाकुड़,13अप्रैल(हि.स.)।झामुमो के कद्दावर नेता व संथाल परगना में पार्टी व पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन को स्थापित करने वालेसाइमन मरांडी(74)नहीं रहे। सोमवार की रात कोलकाता में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से शुगर, प्रेशर आदि कई बीमारियों से जूझ रहे थे। बहुत ज्यादा तबियत खराब होने के बाद उन्हें गत 14 मार्च को कोलकाता के आर एन टैगोर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं उन्होंने 12 अप्रैल की देर रात अंतिम साँस ली।धुन के पक्के, हर दिल अजीज व साम,दाम, दंड, भेद के माहिर खिलाड़ी साइमन मरांडी के निधन से न सिर्फ लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र बल्कि संपूर्ण जिले में शोक की लहर दौड़ गई है।न केवल झामुमो बल्कि विपक्षी दलों के नेता भी उनके निधन से आहत हैं।सभी उनकी वाक् पटुता व मिलनसारिता के कायल थे।छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखने वाले साइमन मरांडी पहली बार 1977 में लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से पहली बार बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़े और जीते थे।उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी मरांग मुरमू को महज 149 मतों से मात दी थी।फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से वर्ष 1977, 1980, 1985, 2009 तथा 2017 में हुए उपचुनाव में जीत दर्ज की थी।लेकिन झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन से अनबन होने पर पार्टी छोड़ दी थी।उसके बाद हुए 2014 के विधानसभा चुनावों में बतौर भाजपा प्रत्याशी लिट्टीपाड़ा से चुनाव लड़ा।लेकिन झामुमो के प्रत्याशी डाॅक्टर अनिल मुरमू के हाथों पराजित हुए।हालाँकि यह पहला मौका नहीं था जब अपने नेतृत्व से नाराज होकर पार्टी नहीं छोड़ी थी।वर्ष 2002 के हुए दुमका उपचुनाव में वे पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन के खिलाफ बतौर कांग्रेस प्रत्याशी चुनाव लड़ गए थे,जिसमें उन्हें करारी शिकस्त मिली थी और वे तीसरे स्थान पर रहे थे।साइमन मरांडी ने राजमहल संसदीय क्षेत्र से वर्ष 1989 व 1991 में दो बार झामुमो के सांसद भी बने थे।वर्ष 1989 में सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने लिट्टीपाड़ा विधानसभा सीट अपनी पत्नी सुशीला हांसदा को दे दी थी। वे भी झामुमो का अभेद्ध गढ़ कहे जाने वाले लिट्टीपाड़ा विधानसभा क्षेत्र से पांच बार पार्टी की विधायक रहीं थीं। इस सीट से उनके पुत्र दिनेश विलियम मरांडी झामुमो के विधायक हैं।उल्लेखनीय है कि विवादों के साथ चोली दामन का साथ रखने वाले साइमन मरांडी को सांसद घूस कांड में तिहाड़ जेल की यात्रा भी करनी पड़ी थी।बावजूद इसके क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता को कोई आंच नहीं पहुँची और वे जीतते रहे।
2021-04-13