दालमंडी में इफ्तार के सामानों की दुकानें सजी, खजूर, दूधफेनी आदि की जमकर खरीददारी
वाराणसी,13 अप्रैल (हि.स.)। काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी में मुस्लिम समुदाय के लोग भी मुकद्दस रमजान माह की तैयारियों में जुट गये है। माहे रमजान की शुरूआत बुधवार से है। समुदाय के बस्तियों, घरों, बाजारों में भी माहे रमजान की खुशबू बिखरने लगी है।
मंगलवार को जहां एक ओर सनातन धर्म के नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की बधाई देने के साथ लोग चैत्र नवरात्र के पहले दिन देवी पूजन में जुटे रहे। वहीं, मुस्लिम समुदाय के लोग माहे रमजान की एक दूसरे को बधाई देने के साथ इसकी तैयारियां भी करते रहे।
दालमंडी, मदनपुरा, दोषीपुरा, बड़ी बाजार, अर्दली बाजार में समुदाय के लोगों ने रोजे के लिए खजूर, दूधफेनी, बेसन आदि की जमकर खरीदारी की। शाम को घरों और मस्जिदों में नमाज-ए-तरावीह पढ़ने के लिए भी लोग तैयारी करते रहे।
वरिष्ठ पत्रकार शमशाद अहमद ने बताया कि मरकजी रुय्यते हेलाल कमेटी की सोमवार शाम नई सड़क स्थित लंगड़े हाफिज मस्जिद में बैठक हुई। बैठक में चांद की तस्दीक न होने पर कमेटी ने ऐलान किया कि 14 अप्रैल बुधवार को माहे रमजान का पहला रोजा शुरू होगा। उन्होंने बताया कि मुकद्दस माह में पढ़ी जाने वाली नमाज-ए-तरावीह मंगलवार शाम ईशा की नमाज के बाद से ही शुरू हो जाएगी।
बताते चले, वाराणसी सहित पूरे प्रदेश में कोरोना के बेकाबू होने के कारण लगे रात्रि प्रतिबंध (नाइट कर्फ्यू ) को देख तरावीह की नमाज रात नौ बजे तक ही पूरी करनी पड़ेगी। पिछले वर्ष भी कोरोना संकट के कारण लगे लॉकडाउन से मस्जिद में चार पांच लोगों को ही तरावीह की नमाज पढ़ने की अनुमति थी। इस वर्ष भी इबादत के लिए मस्जिद में कम समय मिलेगा।
मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने पहले ही लोगों से अपील की है कि कोरोना संकट को देखते हुए समुदाय के लोग कोरोना गाइडलाइन का पालन कर ही खुदा की इबादत करें। नमाज पढ़ते समय मास्क लगाएं, सेनेटाइजर का प्रयोग अवश्य करे। माना जा रहा है कि लोग इस बार पिछले वर्ष की भांति अपने घरों में ही इबादत करेंगे।
सामूहिक रोजा इफ्तार की बजाय परिजनों के साथ घर में ही इफ्तार करेंगे। माहे रमजान में पूरे एक महीने तक लोग रोजे रख घर और मस्जिदों के साथ इबादतगाहों में कुरान पढ़ते हैं। हर दिन की नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज तरावीह पढ़ेंगे। रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर दस दिन के हिस्से को ‘अशरा’ कहते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शमशाद अहमद ने बताया कि पहला अशरा ‘रहमत’ का होता है, दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-रखने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते हैं। रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नुम की आग से खुद को बचा सकते हैं।
दालमंडी में इफ्तार के सामानों की दुकानें सजी, खजूर, दूधफेनी आदि की जमकर खरीददारी
वाराणसी,13 अप्रैल (हि.स.)। काशी पुराधिपति बाबा विश्वनाथ की नगरी में मुस्लिम समुदाय के लोग भी मुकद्दस रमजान माह की तैयारियों में जुट गये है। माहे रमजान की शुरूआत बुधवार से है। समुदाय के बस्तियों, घरों, बाजारों में भी माहे रमजान की खुशबू बिखरने लगी है।
मंगलवार को जहां एक ओर सनातन धर्म के नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की बधाई देने के साथ लोग चैत्र नवरात्र के पहले दिन देवी पूजन में जुटे रहे। वहीं, मुस्लिम समुदाय के लोग माहे रमजान की एक दूसरे को बधाई देने के साथ इसकी तैयारियां भी करते रहे।
दालमंडी, मदनपुरा, दोषीपुरा, बड़ी बाजार, अर्दली बाजार में समुदाय के लोगों ने रोजे के लिए खजूर, दूधफेनी, बेसन आदि की जमकर खरीदारी की। शाम को घरों और मस्जिदों में नमाज-ए-तरावीह पढ़ने के लिए भी लोग तैयारी करते रहे।
वरिष्ठ पत्रकार शमशाद अहमद ने बताया कि मरकजी रुय्यते हेलाल कमेटी की सोमवार शाम नई सड़क स्थित लंगड़े हाफिज मस्जिद में बैठक हुई। बैठक में चांद की तस्दीक न होने पर कमेटी ने ऐलान किया कि 14 अप्रैल बुधवार को माहे रमजान का पहला रोजा शुरू होगा। उन्होंने बताया कि मुकद्दस माह में पढ़ी जाने वाली नमाज-ए-तरावीह मंगलवार शाम ईशा की नमाज के बाद से ही शुरू हो जाएगी।
बताते चले, वाराणसी सहित पूरे प्रदेश में कोरोना के बेकाबू होने के कारण लगे रात्रि प्रतिबंध (नाइट कर्फ्यू ) को देख तरावीह की नमाज रात नौ बजे तक ही पूरी करनी पड़ेगी। पिछले वर्ष भी कोरोना संकट के कारण लगे लॉकडाउन से मस्जिद में चार पांच लोगों को ही तरावीह की नमाज पढ़ने की अनुमति थी। इस वर्ष भी इबादत के लिए मस्जिद में कम समय मिलेगा।
मुफ्ती-ए-बनारस मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी ने पहले ही लोगों से अपील की है कि कोरोना संकट को देखते हुए समुदाय के लोग कोरोना गाइडलाइन का पालन कर ही खुदा की इबादत करें। नमाज पढ़ते समय मास्क लगाएं, सेनेटाइजर का प्रयोग अवश्य करे। माना जा रहा है कि लोग इस बार पिछले वर्ष की भांति अपने घरों में ही इबादत करेंगे।
सामूहिक रोजा इफ्तार की बजाय परिजनों के साथ घर में ही इफ्तार करेंगे। माहे रमजान में पूरे एक महीने तक लोग रोजे रख घर और मस्जिदों के साथ इबादतगाहों में कुरान पढ़ते हैं। हर दिन की नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज तरावीह पढ़ेंगे। रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बांटा गया है। हर दस दिन के हिस्से को ‘अशरा’ कहते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार शमशाद अहमद ने बताया कि पहला अशरा ‘रहमत’ का होता है, दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने के लिए होता है। उन्होंने बताया कि रमजान के शुरुआती 10 दिनों में रोजा-रखने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है। रमजान के बीच यानी दूसरे अशरे में मुसलमान अपने गुनाहों से पवित्र हो सकते हैं। रमजान के आखिरी यानी तीसरे अशरे में जहन्नुम की आग से खुद को बचा सकते हैं।