बीजिंग, 12 अप्रैल (हि.स.)। चीन की कोरोना वैक्सीन गुणवत्ता के मामले में कमतर साबित हो रही है। वैक्सीन के असर को बढ़ाने के लिए चीन कोरोना की अलग-अलग वैक्सीन के इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है, ताकि इसका असर बढ़ाया जा सके।
चीनी मीडिया आउटलेट ‘द पेपर’ ने सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के चीफ गाओ फु के हवाले से लिखा कि मौजूदा वैक्सीन उतनी असरदार नहीं है। इसलिए अब प्रशासन को इस समस्या को सुलझाने के लिए सोचना चाहिए।
यह पहली बार है जब किसी चीनी अधिकारी ने सार्वजनिक तौर पर देश की वैक्सीन के कम असरदार होने पर कुछ कहा है। चीन ने इसी वैक्सीन के सहारे न सिर्फ अपने देश में टीकाकरण अभियान शुरू किया है बल्कि वह दुनियाभर में अपने टीके निर्यात करना भी शुरू कर चुका है।
चीन ने पिछले साल से टीकाकरण शुरू किया था और अभी तक 16.1 करोड़ डोज लोगों को लगाई जा चुकी है। चीन का लक्ष्य इस साल जून तक अपनी 140 करोड़ आबादी के 40 प्रतिशत लोगों को कोरोना टीका देने का है।
शनिवार को चेंगदु में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान गाओ ने कहा कि वैक्सीन के कम असर की समस्या से निपटने का एक विकल्प यह भी है कि अलग-अलग तकनीकों वाले टीकों का इस्तेमाल किया जाए। उन्होंने कहा कि चीन के बाहर भी एक्सपर्ट्स इस विकल्प को लेकर अध्ययन कर रहे हैं।
बता दें कि चीन में अभी चार वैक्सीन को सशर्त मंजूरी मिली है। हालांकि, इन चारों की क्षमता इसके प्रतिद्वंद्वी फाइजर-बायोनटेक और मॉडर्ना की वैक्सीन से कम हैं। फाइजर की वैक्सीन जहां 95 प्रतिशत असरदार है तो वहीं मॉडर्ना की वैक्सीन 94 प्रतिशत।
वहीं, चीन की सीनोवैक के टीके का ब्राजील में परीक्षण किया गया। इसके परिणाम में पता लगा कि संक्रमण से बचाने में यह टीका 50 प्रतिशत असरदार है तो वहीं यह संक्रमण को घातक बनने से रोकने में 80 फीसदी तक कारगर है।
सीनोफार्म ने दो वैक्सीन बनाई है। इनमें से एक 79.34 प्रतिशत असरदार है तो वहीं दूसरी 72.51 प्रतिशत।