CAA की अवधि बढ़ाने पर असम में तीव्र विवाद, विपक्ष ने कहा असम समझौते और असमियों की भावनाओं का अपमान

गुवाहाटी, 4 सितंबर: असम में विपक्षी दलों ने केंद्र और राज्य की बीजेपी नेतृत्व वाली सरकारों की हाल ही में जारी हुई नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 (CAA) से संबंधित उस आदेश की कड़ी निंदा की है, जिसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए गैर-मुस्लिमों को 2024 तक बिना वैध यात्रा दस्तावेज़ के भारत में रहने की अनुमति दी गई है।

CAA के मूल प्रावधानों के अनुसार, इन तीन पड़ोसी देशों के हिंदू, जैन, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध और पारसी समुदाय के लोगों को 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले भारत में प्रवेश करने और पांच वर्ष तक रहने के बाद भारतीय नागरिकता प्राप्त करने का रास्ता दिया गया था। लेकिन 1 सितंबर को जारी नोटिफिकेशन में इस अवधि को दस साल बढ़ाकर 2024 कर दिया गया है।

इस कदम को असम समझौते का सीधा उल्लंघन बताया जा रहा है। असम जाटिया परिषद (AJP), कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और CPI(M) ने इसे असम समझौते की भावना के खिलाफ करार दिया है, जिसमें अवैध प्रवासियों की पहचान और उन्हें बाहर करने के लिए 25 मार्च 1971 की समय सीमा तय की गई थी।

AJP के अध्यक्ष लुरींजार गोगोई ने कहा, “CAA की अवधि को 10 साल बढ़ाकर बीजेपी ने असम की जनता पर विदेशी बोझ को 43 साल से बढ़ाकर 53 साल कर दिया है। यह असम के लोगों के खिलाफ सबसे बड़ा अन्याय है।” गोगोई के नेतृत्व में AJP के कार्यकर्ताओं ने गुवाहाटी में पार्टी मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन करते हुए इस आदेश की प्रतियां जलाईं।

असम विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस के देबब्रत सैकिया ने कहा, “यह नोटिफिकेशन लगभग पांच लाख अवैध विदेशी नागरिकों को असम में रहने की अनुमति देगा, जो असम समझौते को कमजोर करेगा। यह असम समझौते और असमियों की भावनाओं का अपमान है। हम इस आदेश को तत्काल वापस लेने या कम से कम असम को इससे छूट देने की मांग करते हैं।”

AAP के राज्य महासचिव राजीव सैकिया ने इस फैसले को “विनाशकारी और तानाशाही” बताया और केंद्र से आदेश वापस लेने की अपील की। CPI(M) ने भी इसी तरह की मांग की और चेतावनी दी कि यह कदम असम के सामाजिक ताने-बाने के लिए खतरनाक साबित होगा।

वहीं अधिकारियों ने बताया कि हाल ही में लागू हुए इमीग्रेशन और विदेशी कानून, 2025 के तहत जारी यह नोटिफिकेशन मुख्य रूप से 2014 के बाद पाकिस्तान से आए हिंदुओं सहित कई लोगों को राहत देने के लिए लाया गया है, जो अपनी स्थिति को लेकर अनिश्चितता में थे।

यह निर्णय असम में राजनीतिक तनाव बढ़ाने की संभावना रखता है और राज्य में इसके व्यापक प्रभावों को लेकर चर्चा जारी है।