भोपाल, 06 अक्टूबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सदस्य एवं पूर्व सर कार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा कि दुनिया में सभी देश विकास चाहते हैं। उस विकास की यात्रा पर आगे बढ़ना है तो शिक्षित होना जरूरी है। दुनिया में शिक्षा के विकास के साथ समस्याएं भी बढ़ रही है। महिलाओं के प्रति व्यवहार, मानवीय संविधान की बात करें तो जो अच्छे संपन्न अमेरिका जैसे देश माने जाते हैं, वहां बच्चे ही एक-दूसरे को गोली मार देते हैं। इसलिए सारी दुनिया में यह बात चल रही है कि शिक्षा-साक्षरता बढ़ रही है, लेकिन साथ-साथ आतंकवाद भी बढ़ रहा है। मूल्य क्षरण भी बढ़ रहा है। सामाजिक विखंडन भी बढ़ रहा है, विभिन्न मानव समूहों के बीच में संघर्ष भी बढ़ रहा है। कहीं ना कहीं मौलिक गड़बड़ी है, जब तक हम उसको ध्यान में रखकर कुछ नहीं करेंगे। इसीलिए एक समग्र शिक्षा के चिंतन को लेकर मंथन चल रहा है।
पूर्व सरकार्यवाह सुरेश सोनी रविवार को भोपाल में रवीन्द्र भवन सभागार में शिक्षा भूषण अखिल भारतीय शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित कर रहे थे। समारोह का आयोजन मध्यप्रदेश शिक्षक संघ द्वारा किया गया। समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, स्कूल शिक्षा मंत्री राव उदय प्रताप सिंह, राज्य सभा सांसद बालयोगी उमेश नाथ महाराज विशेष रूप से मौजद रहे। समारोह में शिक्षा भूषण अखिल भारतीय शिक्षक सम्मान -2024 से डॉ. रामचंद्रन आर., प्रोफेसर के.के. अग्रवाल और प्रोफेसर कुसुमलता केडिया को सम्मानित किया।
शिक्षा न तो सत्ता की दासी है और न ही कानून की किन्करी
सुरेश सोनी ने कहा कि वास्तव में विकास तभी हो सकता जब हमारे आसपास के परिवेश और जीवन मूल्यों का विकास हो। उन्होंने 1928 में गुजरात विद्यापीठ में दिए गए काका कालेलकर के संबोधन को उद्घृत करते हुए कहा कि उन्होंने अपने स्वरूप की व्याख्या करते हुए कहा कि शिक्षा न तो सत्ता की दासी है और न ही कानून की किन्करी है, न ही यह विज्ञान की सखी है औप न ही कला की प्रतिहारी यह अर्थशास्त्र की बांदी, शिक्षा तो धर्म का पुनर्रागमन है, यह मानव के हृदय, मन और इन्द्रियों की स्वामिनी है। मानव शास्त्र और समाज शास्त्र, इनके दो चरण हैं, तर्क और निरीक्षण शिक्षा की दो आँखें हैं, विज्ञान मस्तिष्क, इतिहास कान और धर्म शिक्षा के हृदय है। सोनी ने बताया कि काका कालेलकर ने अपने संबोधन में कहा था कि उत्साह और उद्यम शिक्षा के फेफड़े हैं। शिक्षा ऐसी जगत जननी जगदम्बा है, जिसका उपासक कभी किसी का मोहताज नहीं होगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।”
काका कालेलकर के चिंतन के अनुरूप देश में शिक्षा का वातावरण बनाना जरूरी
सोनी ने कहा कि मूल्य परक शिक्षा-भारत केंद्रित शिक्षा, शिक्षकों के सामाजिक सम्मान और संस्कारों पर जोर देने वाली शिक्षा के लिए सामूहिक रूप से विचार करते हुए काका कालेलकर द्वारा दिए गए चिंतन के अनुरूप देश में शिक्षा का वातावरण बनाने के लिए प्रयास करने होंगे। इसी से 2047 तक विश्व के रंग मंच पर भारत, प्रमुख नेतृत्व कर्ता के रूप में स्थापित होगा।
भारत विश्व गुरु के रूप में शिक्षक परंपरा को स्थापित करना चाहता है : मुख्यमंत्री डॉ. यादव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि गुरुकुल परंपरा हमारे देश की शिक्षा का आधार रही है। शिक्षक हमेशा पूज्य थे और पूज्य रहेंगे। भारत विश्व गुरु के रूप में उस शिक्षक परंपरा को स्थापित करना चाहता है, जो गुरुकुल परंपरा चाणक्य से चंद्रगुप्त तक और चंद्रगुप्त से विक्रमादित्य तक हर जगह, हर समय, हर काल में कायम रही है। राष्ट्र के हित में शिक्षा, शिक्षा के हित में शिक्षक और शिक्षक के हित में समाज के उद्देश्य से आयोजित शिक्षक समारोह के आयोजन में शैक्षिक फाउंडेशन और अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि भारत की गुरु और गुरुकुल परंपरा में गुरु का बड़ा महत्व है। इतिहास में जब भी कोई प्रश्न खड़े हुए तो गुरु की भूमिका सामने आई। यदि भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को गुरु वशिष्ठ वनवास के लिए नहीं ले जाते तो रामायण में राम का चरित्र अधूरा रहता। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा में गुरु सांदीपनि का उज्ज्वल चरित्र शिष्यों के लिए अनुकरणीय और चुनौतियों में प्रेरणा का स्रोत रहा है।
99 फीसदी माताएं बच्चे का जन्म होते ही कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं: उमेश नाथ
डॉ. उमेश नाथ महाराज ने कहा कि हम आज की शिक्षा पद्धति की ओर जब देखते हैं तो कष्ट होता है। जिसे हम ना चाहते हुए भी सहन कर रहे हैं। हमारी प्राचीन परंपरा में शिक्षा व्यवस्था गुरुकुल में गुरुजी के हाथ में होती थी। आज हम गुरु परंपराओं से बहुत वंचित होते चले जा रहे हैं। आज स्थिति ऐसी है कि जब कोई मातृ शक्ति गर्भवती होती है तो वह अपने गर्भस्थ बालक-बालिका के लिए सोचती है कि मेरे बच्चे का कब जन्म हो और वह थोड़ा सा पैदल चलने लगे तो मैं उसे इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेजूं। 99 फीसदी माताओं का यह प्रयास रहता है कि वह अपने बच्चे को कॉन्वेंट में भेजना चाहती हैं। लेकिन, उसके मन में यह कभी नहीं रहता है कि उसका बच्चे का जन्म हुआ है तो उसे मैं गुरु की शरण में भेजूं। यहीं से हमारे मानवीय जीवन का पथ बिगड़ जाता है। वह मानवीय जीवन का पथ लगातार बिगड़ते-बिगड़ते ऐसी स्थिति में चला जाता है कि हम पाश्चात्य सभ्यताओं में चले जाते हैं।
उन्होंने कहा कि नवरात्रि में मेरे नौ दिन के मौन व्रत चलते हैं। मैंने पिछले 50 सालों में यह संकल्प ले रखा है। इस देश में लगभग 25 लाख संन्यासी है और वह संन्यासी मात्र केवल संन्यास धारण करके अपने कल्याण और बाकी व्यवस्थाओं में उलझ जाते हैं और सामाजिक सुधार का काम नहीं कर पाते। ऐसी स्थिति में निरंतर समाज के साथ खड़े होकर समाज का परिवेश कैसे बदलें और समाज आध्यात्मिक तरीके से जिए। पाश्चात्य सभ्यताओं को खत्म करने के साथ ही कॉन्वेंट की व्यवस्था नकारात्मक स्थिति में लाकर खड़ा हो ऐसी मेरी भावना रहती है।