2008 के मालेगांव विस्फोट के पीछे सिमी का हाथ हो सकता है : प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने कोर्ट में दी दलील

मुंबई, 03 अक्टूबर (हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी की पूर्व सांसद प्रज्ञा ठाकुर के वकील ने गुरुवार को विशेष एनआईए कोर्ट के समक्ष दलील दी कि 2008 के मालेगांव विस्फोट में प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट आफ इस्लामिक मूवमेंट आफ इंडिया (सिमी) का हाथ हो सकता है। प्रज्ञा ठाकुर की ओर से मामले की पैरवी कर रहे अधिक्ता जे.पी. मिश्रा ने कहा कि इस घटना के तुरंत बाद पुलिस को घटनास्थल पर पहुंचने से रोका गया था और ऐसा आरोपिताें को बचाने के लिए किया गया हो सकता है। इस मामले में अधिवक्ता जेपी मिश्रा की जिरह शुक्रवार को भी होगी।

उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर, 2008 को उत्तरी महाराष्ट्र के मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस मामले की सुनवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के विशेष न्यायाधीश एके लाहोटी के कोर्ट में हो रही है। प्रज्ञा ठाकुर की ओर पेश अधिवक्ता जेपी मिश्रा ने गुरुवार को कोर्ट में पैरवी करते हुए कहा कि “जब भी ऐसी कोई घटना होती है, तो लोग पुलिस की मदद करते हैं। लेकिन इस मामले में, घटना के तुरंत बाद, बड़ी संख्या में लोग मौके पर एकत्र हुए और पुलिस पर पथराव किया। इससे पुलिस को विस्फोट स्थल पर पहुंचने से रोका गया।” जेपी मिश्रा ने कहा कि ऐसा “अपने लोगों (सिमी से संबंधित)” की सुरक्षा के लिए किया गया हो सकता है। वकील ने तर्क दिया कि 2008 के मालेगांव विस्फोट स्थल के पास सिमी का एक कार्यालय स्थित था, जहां कथित तौर पर बम बनाए गए थे और वे दुर्घटनावश विस्फोट होने पर दोपहिया वाहन का उपयोग करके विस्फोटक ले जा रहे हो सकते हैं।

इस मामले के जांच के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 अभियोजन पक्ष के गवाहों की जांच की, जिनमें से 34 मुकर गए। 2019 से 2024 तक भोपाल से भाजपा सांसद रह चुकी प्रज्ञा ठाकुर के अलावा इस मामले में अन्य आरोपित लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी हैं। उन पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत मामला दर्ज किया गया है। 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले की जांच शुरू में महाराष्ट्र पुलिस के आतंकवाद निरोधी दस्ते ने की थी, जिसे 2011 में एनआईए को सौंप दिया गया था। विशेष कोर्ट ने 30 अक्टूबर, 2018 को आरोपिताें के खिलाफ आरोप तय किए थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *