पश्चिम बंगाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मौलाना महमूद मदनी ने किया स्वागत, कहा- न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा

नई दिल्ली, 20 सितंबर (हि.स.)। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कलकत्ता दंगों में अकारण पकड़े गए लोगों के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखने की वचनबद्धता दोहराई। उन्होंने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि इस मामले में सीबीआई की सिफारिश पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने इन लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हमारे वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से जमानत प्राप्त की। हैरानी की बात है कि सीबीआई को फिर भी पश्चिम बंगाल की अदालत पर संदेह है।

मौलाना मदनी ने कहा कि न्याय व्यवस्था हर हाल में मजूबत होनी चाहिए, किसी भी न्यायालय का शासन यह नहीं है कि वह निर्दोष को फांसी के फंदे पर चढ़ा दे और इसे न्याय का नाम दिया जाए बल्कि अदालत की जीत तब होगी जब हरेन अधिकारी के असली हत्यारों को दंडित किया जाए। उन्होंने कहा कि हमारे देश की महानता इस बात में है कि हर व्यक्ति तक न्याय की पहुंच हो।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने के अनुरोध पर सीबीआई की कठोर शब्दों में आलोचना की है। न्यायालय ने याचिका में पश्चिम बंगाल की अदालतों पर लगाए गए निराधार आरोपों पर नाराजगी व्यक्त की। ज्ञात हो कि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की थी कि पश्चिम बंगाल की अदालतों में जारी 45 मामलों को राज्य से बाहर अन्य अदालतों में स्थानांतरित कर दिया जाए। इनमें उन 13 मुसलमानों का मामला भी है जिनको चुनाव के बाद हुई हिंसा का आरोपी बनाया गया था। उनका केस जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के निर्देश पर लड़ा जा रहा है और जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से इस साल 4 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत स्वीकार कर ली थी।

ज्ञात हो कि है कि 02 मई 2021 को रात 8 बजे मृतक हरेन अधिकारी को राजनीतिक दुश्मनी के कारण बेरहमी से मारा-पीटा गया, जिससे उसकी मौत हो गई। बाद में पुलिस ने कुर्बान, यूनिस, हुमायूं, रकीब मुल्ला, उस्मान मुल्ला, मोइनुद्दीन, ममरीज मुल्ला, रेशमा मुल्ला, सुप्रिया बीबी, सिराजुल, सैफुल काजी, दाऊद अली मुल्ला समेत 17 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। इनमें कुछ आरोपियों ने अग्रिम जमानत ले ली थी। 25 जून, 2022 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीबीआई की सिफारिश पर बरुईपुर जिला मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया था, जिसके बाद आरोपी के लिए राहत की उम्मीद खत्म हो गई थी। हालांकि यह दंगा दो राजनीतिक दलों बीजेपी और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच राजनीतिक दुश्मनी का नतीजा था, लेकिन सांप्रदायिक तत्वों ने इसे हिंदू-मुस्लिम रंग देकर न सिर्फ इलाके में नफरत का माहौल बनाने की कोशिश की, बल्कि इसके परिणामस्वरूप निर्दोष गरीब मुस्लिम युवकों को एकतरफा गिरफ्तार कर लिया गया।

इन गरीब आरोपितों के परिजनों के अनुरोध पर, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के निर्देश पर नियुक्त किए गए वकीलों ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका नंबर 10830-10834/2022 दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में ही आरोपियों के अंतरिम सुरक्षा प्रदान कर दी थी कि सीबीआई उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी लेकिन आवश्यकता पड़ने पर पूछताछ के लिए तलब करेगी। अंततः 4 जनवरी 2024 को अपने अंतिम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की स्थाई जमानत स्वीकार कर ली। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जमीअत उलमा-ए-हिंद से वकील सैयद मेहदी इमाम और वकील मुहम्मद नूरुल्लाह पैरवी कर रहे हैं जबकि जमीअत उलमा-ए-हिंद के केंद्रीय कार्यालय से एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी कानूनी निगरानी कर रहे हैं और राज्य जमीअत उलमा पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष मौलाना सिद्दीकुल्ला चौधरी और सचिव मुफ्ती अब्दुस्सलाम कासमी पीड़ितों के संपर्क में हैं।

इस बीच, सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की थी कि इस केस को भी राज्य से बाहर स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाए। इस संबंध में अपने तर्क में सीबीआई ने एक आश्चर्यजनक बात यह कही कि पश्चिम बंगाल की अदालतें न्याय नहीं करतीं और वहां अदालतें द्वेष और भेदभाव के आधार पर फैसले कर रही हैं। कोर्ट के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी सुनकर घोर नाराजगी व्यक्त करते हुए जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल पर आधारित पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू को संबोधित करते हुए कहा, “मिस्टर राजू, यह सब किस तरह की बातें हैं कि पश्चिम बंगाल की सभी अदालतों का रवैया भेदभावपूर्ण है? यानी आपने दावा कर रहे हैं कि अदालतें गैरकानूनी तरीके से जमानत दे रही हैं। यह पूरी न्यायिक प्रणाली पर संदेह पैदा करने के समान है।”

एसवी राजू ने माना कि याचिका में खामी है, इसलिए इसमें संशोधन की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने साफ कहा कि यह याचिका खारिज की जाती है और केवल स्वीकारोक्ति से काम नहीं चलेगा, बल्कि लिखित माफी मांगनी होगी। जस्टिस ओका ने कहा कि आपके अधिकारियों को किसी न्यायिक अधिकारी या किसी राज्य के प्रति व्यक्तिगत द्वेष हो सकता है लेकिन यह कहना कि पूरी न्यायपालिका बेईमान है, बहुत अपमानजनक बात है। जिला जज और सिविल जज यहां आकर अपना बचाव नहीं कर सकते।

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