— भाजपा नेताओं के बीच दलित उम्मीदवार को लेकर हो रही चर्चा
कानपुर, 15 सितम्बर (हि.स.)। सीसामऊ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर भाजपा की ओर से जबदस्त तैयारी चल रही है। बीते एक माह से विधानसभा क्षेत्र में विकास के कार्यों की झड़ी लगी है और जनता की समस्याओं को लेकर अधिकारियों को डपटा जा रहा है। इन सबके बीच उम्मीदवार का चयन बड़ी चुनौती बनी हुई है। कुछ नेताओं का मानना है कि विधानसभा में 60 हजार से अधिक दलित मतदाताओं पर पैठ बना सपा के 28 साल से काबिज किले को ध्वस्त किया जा सकता है तो कुछ का मानना है कि उम्मीदवार ब्राह्मण या वैश्य ही रहे, लेकिन क्षेत्र में विकास और लाभार्थी वर्ग तैयार कर दलितों को अपने पक्ष में किया जाये। कुछ भी हो भाजपा अच्छी तरह से भांप गई है कि इस सीट पर जीत के लिए धुरी दलित ही हैं और उसी पर योजनाबद्ध कार्य किया जा रहा है।
जाजमऊ निवासी नजीर फातिमा के घर पर आगजनी मामले में सीसामऊ विधानसभा सीट से सपा विधायक इरफान सोलंकी को सात साल की सजा हो गई, जिससे उनकी विधायकी चली गई। इस सीट से लगातार तीन बार से इरफान सोलंकी जीतते आ रहे हैं। इसके पूर्व आर्यनगर सीट से एक बार जीत दर्ज की और उससे पहले लगातार दो बार आर्यनगर से उनके पिता हाजी मुश्ताक सोलंकी विधायक रहे। 2009 के परिसीमन में आर्यनगर का करीब 60 फीसदी हिस्सा जो सपा का गढ़ कहा जाता है वह काटकर सीसामऊ में कर दिया गया, फिर भी सपा का गढ़ बरकरार रहा। अब कोर्ट से सजा होने पर इरफान सोलंकी जहां महाराजगंज जेल में बंद है तो वहीं भाजपा उपचुनाव में हर हाल में सपा के किले को ध्वस्त करने की योजना बना रही है। भाजपा इस सीट को लेकर किस कदर चिंतित है कि इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा रहा है कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ कुछ दिन पूर्व इसी विधानसभा क्षेत्र में जनसभा कर करोड़ों रुपयों की योजनाओं की सौगात दी। इसके साथ ही पार्टी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को बिन्दुवार जिम्मेदारी सौंपी गई है और योजना के अनुसार मतदताओं को साधा जा रहा है। जिस दिन से मुख्यमंत्री ने इस विधानसभा क्षेत्र के लिए करोड़ों रुपयों की योजनाओं की सौगात दी उसके बाद से विकास के बराबर काम किये जा रहे हैं। इस क्षेत्र के पार्षदों की फाइलें नगर निगम में धड़ाधड़ पास हो रही हैं। जनता की समस्याओं को समाधान कराने के लिए भाजपा नेताओं में होड़ मची हुई है और अधिकारियों को फटकार लगाई जा रही है। इससे अधिकारी सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र की समस्याओं को लेकर चिंतित हैं और समस्याओं का निदान भी हो रहा है। इस तरह का माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि कम से कम 25 से 30 हजार वोट सपा का छीना जा सके। यह वोट जातीय समीकरण के तहत ही आ सकता है, हालांकि पार्टी के नेता सार्वजनिक तौर सिर्फ विकास की बात करते हैं और कहते हैं कि विकास और सामाजिक समरसता के दम पर ही अबकी बार सीसमाऊ में कमल खिलेगा, लेकिन अंदरखाने दलित मतदाताओं को साधने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं। जिला अध्यक्ष दीपू पांडे ने रविवार को बताया कि हम लोग विकास और सामाजिक समरसता को लेकर क्षेत्र में जा रहे हैं और जनता से जुड़ाव कर रहे हैं। उम्मीदवार का चयन पार्टी हाईकमान करेगी।
दलित मतदाताओं को रिझाने का चल रहा प्रयास
सूत्र बताते हैं यह भी रणनीति बन चुकी है कि जो 25 से 30 हजार वोट पार्टी के पक्ष में करना है वह वोट दलित मतदाताओं के जरिये लाया जाये और इसी रणनीति पर काम हो रहा है। इस रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए दो प्रकार के विचार हैं। एक के अनुसार अबकी बार दलित उम्मीदवार ही खड़ा किया जाये तो दूसरे के अनुसार विकास और योजनाओं के जरिये दलितों के बीच लाभार्थी वर्ग तैयार किया जाये और उम्मीदवार ब्राह्मण या वैश्य ही हो। दूसरे विचार पर इन दिनों तेजी से काम हो रहा है और सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र की सभी दलित बस्तियों पर पार्टी कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की पैठ बढ़ती जा रही है। यही नहीं प्रभारी मंत्री व उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना आए दिन सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र आकर दलित मतदाताओं के बीच जा रहे हैं। कुछ बड़े नेता दूसरे विचार के साथ यह चाहते है कि दलित उम्मीदवार ही अबकी बार दिया जाये जिससे जीत सुनिश्चित होगी। यही नहीं बीते दिनों प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह के सामने इस बात को प्रमुखता से रखा गया।
इन दलित उम्मीदवारों पर हो रहा मंथन
सपा के किले को ध्वस्त करने के लिए अगर पार्टी हाईकमान अबकी बार सीसामऊ विधानसभा उपचुनाव में दलित उम्मीदवार पर सहमति दिया तो चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो जाएगी। दलित उम्मीदवार को लेकर पार्टी कुछ बड़े नेता इन दिनों मंथन भी कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार जो नाम सामने आ रहे हैं उनमें पूर्व विधायक उपेन्द्र पासवान, राम मंदिर आंदोलन के दौरान बसपा से इस सीट से विधायक बने महेश बाल्मीकी, संजय जाटव व देवेश कोरी है। इसके अलावा एक और नाम चल रहा है वह नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा है। इस नाम की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सर संघचालक मोहन भागवत जी खुद उनके द्वारा आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में भाग ले चुके हैं।
ब्राह्मण और वैश्य उम्मीदवार का नहीं चल पाया दांव
परिसीमन के बाद भले ही सपा का करीब 40 फीसद वोट आर्य नगर में चला गया हो लेकिन भाजपा की जीत नहीं हो पा रही है। यही नहीं यही 40 फीसद वोट आर्यनगर में भी लगातर दो बार से सपा को जीत दिला रहा है। परिसीमन के बाद से तीन बार चुनाव हो चुके है, पहली बार 2012 में भाजपा ने ब्राह्मण कार्ड खेला और इरफान सोलंकी विजयी हुए। दूसरी बार मोदी लहर में भी भाजपा ने ब्राह्मण कार्ड फिर भी सपा की जीत हुई। इसके बाद तीसरी बार भाजपा ने वैश्य कार्ड खेला और तीन बार के विधायक रहे व एमएलसी सलिल विश्नोई को चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन इरफान सोलंकी के विजयी रथ को रोका नहीं जा सका। ऐसे में अब पार्टी दलित उम्मीदवार देकर दलित मतदाताओं में सेंध लगाकर सपा के किले को ध्वस्त करने में मंथन कर रही है। इस विधानसभा में ब्राह्मण और वैश्य मतदाताओं की संख्या ठीक ठाक है। इसके अलावा 10 से 15 हजार अन्य सवर्ण मतदाता है। मुस्लिम मतदाता सबसे अधिक है और सपा को दलित मतदाता भी मिल जाता है। यहां पर दलित मतदाता करीब 60 हजार है। ऐसे में पार्टी के नेताओं का मानना है कि अगर दलित मतदाताओं में 25 से 30 हजार की सेंध लग गई तो सपा के किले को ध्वस्त किया जा सकता है। पार्टी यह भी मानकर चल रही है कि इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी सपा की ओर से उम्मीदवार होगी और उसको सहानुभूति का भी वोट मिल सकता है।