नई दिल्ली, 29 अगस्त (हि.स.)। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि केवल ज़मानत पर रिहाई ही नहीं बल्कि उन निर्दोष लोगों की सम्मानजनक रिहाई तक हमारा कानूनी संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि लगभग सात महीने बाद इन 50 लोगों की एक साथ रिहाई का स्वागत करते हैं जिनमें 65 वर्षीय महिला समेत 6 अन्य महिलाएं भी हैं। यह आरोपितों के परिवारवालों के लिए निस्संदेह बहुत खुशी का अवसर है।
इसके साथ-साथ मौलाना मदनी ने इस बात पर गहरी निराशा व्यक्त की कि इस प्रकार के मामले में पुलिस और जांच एजेंसीयां जानबूझ कर बाधा डालती हैं और चार्जशीट प्रस्तुत करने में बहानों का सहारा लेती हैं। कानून में बाध्यता है कि 90 दिनों के अंदर चार्जशीट प्रस्तुत कर दी जानी चाहिए लेकिन इस प्रकार के अधिकांश मामलों में इस क़ानूनी प्रावधान की अनदेखी करते हुए धड़ल्ले से मानवाधिकारों की अवहेलना की जाती है। इस मामले में भी उत्तराखण्ड पुलिस 90 दिनों के भीतर जब चार्जशीट नहीं प्रस्तुत कर सकी तो उसने निचली अदालत से और 28 दिनों की मोहलत प्राप्त कर ली थी।
मौलाना मदनी ने कहा कि जानबूझ कर ऐसा किया जाता है ताकि आरोपितों को जल्द जमानत न मिल सके और उन्हें अधिक समय तक जेल की सलाखों के पीछे रखा जा सके। जमीअत उलमा-ए-हिंद की कानूनी सहायता के कारण नैनीताल हाई कोर्ट से उन नौजवानों की जमानत पर रिहाई संभव हुई, परन्तु अब भी यह प्रश्न मौजूद है कि पुलिस और अन्य जांच एजेंसियां इस प्रकार के मामलों में ईमानदारी से काम करने और कर्तव्यों का पालन करने की जगह कब तक पक्षपात और भेदभाव का प्रदर्शन करती रहेंगी। यह मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है कि किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्ति से जानबूझकर वंचित रखने का प्रयास किया जाए। जमीअत उलमा-ए-हिंद लगातार इस घोर अन्याय के खिलाफ अवाज़ उठाती रही है, मगर दुख की बात है कि पुलिस और जांच एजेंसियों की कोई जवाबदेही तय नहीं की जाती जिसके कारण निडर होकर कानून के नाम पर मानव जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है।