नई दिल्ली, 14 अगस्त (हि.स.)। केन्द्रीय संस्कृति सचिव गोविंद मोहन ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘हर घर तिरंगा’ पहल ने पूरी तरह से महिला नेतृत्व वाले नए उद्योग को भी जन्म दिया है। ‘हर घर तिरंगा’ अभियान का समन्वय करने वाले संस्कृति मंत्रालय के सचिव गोविंद मोहन ने मीडिया को बताया कि ‘हर घर तिरंगा’ अभियान, 2022 में ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में शुरू किया गया एक राष्ट्रव्यापी अभियान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा एक जन आंदोलन के रूप में कल्पना की गई थी, जिसमें नागरिकों से अपने घरों, कार्यस्थलों और संस्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का आग्रह किया गया था। देशभक्ति और एकता को बढ़ावा देने के मकसद से शुरू हुआ यह अभियान देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह के हिस्से के रूप में जारी है।
उन्होंने बताया कि यह एक बड़े जन आंदोलन के रूप में विकसित हुआ, इसने देश भर में हजारों महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा किए। इस पहल ने जमीनी स्तर पर महिलाओं द्वारा संचालित एक पूरी तरह से नए उद्योग को जन्म दिया, जिससे बड़े विक्रेताओं पर निर्भरता कम हो गई। आज, स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) राष्ट्रीय ध्वज के प्राथमिक उत्पादक बन गए हैं।
गोविंद मोहन ने कहा कि जब अभियान पहली बार 2022 में शुरू किया गया था, तो झंडों की मांग को पूरा करना एक महत्वपूर्ण चुनौती थी। इसे संबोधित करने के लिए, केंद्र सरकार ने बड़े विक्रेताओं से राष्ट्रीय झंडे खरीदे और लगभग 7.5 करोड़ झंडे सीधे और डाकघरों के माध्यम से राज्यों को वितरित किए। इस पहल को और समर्थन देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन की शुरुआत की, जिससे महिला स्वयं सहायता समूहों सहित ध्वज उत्पादन में विभिन्न हितधारकों की भागीदारी को सक्षम किया गया।
उन्होंने बताया कि दूसरे वर्ष तक, केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किए गए राष्ट्रीय झंडों की मांग काफी कम होकर लगभग 2.5 करोड़ रह गई, क्योंकि महिला स्वयं सहायता समूहों ने तेजी से ध्वज उत्पादन का काम अपने हाथ में ले लिया। एक उल्लेखनीय उदाहरण उत्तर प्रदेश है, जिसने 2022 में सरकार से 4.5 करोड़ झंडे खरीदे, लेकिन अपने स्वयं सहायता समूहों की आत्मनिर्भरता के कारण, 2023 में झंडे की मांग स्वय सहायता समूह ने पूरी की।
2024 में, केंद्र सरकार द्वारा आपूर्ति किए गए झंडों की मांग घटकर केवल 20 लाख रह गई, जिसमें एसएचजी प्राथमिक उत्पादक बन गए। पूरे भारत में, हर साल लगभग 25 करोड़ झंडों की ज़रूरत होती है। ये स्वयं सहायता समूह अब अधिकांश राष्ट्रीय झंडों का उत्पादन और बिक्री करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के हर घर तिरंगा अभियान ने न केवल जनभागीदारी सुनिश्चित की है बल्कि देश भर में महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक अवसर भी पैदा किए हैं।