नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (हि.स.)। ‘कुमाऊंनी रामलीला’ विश्व में सबसे अधिक समय तक खेली जाने वाली ऑपेरा शैली की विशिष्ट रामलीला है। इसमें भारतीय संस्कृति का पूरा समागम दिखाई देता है। शनिवार को ‘कुमाऊंनी रामलीला’ पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में विद्वानों अपने-अपने शब्दों में यह बात कही।
राजधानी स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सम्वेत सभागार में आयोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में प्रोफेसर पुष्पेश पंत ने कहा कि उत्तराखंड के लोगों में रामलीला को लेकर अपनी-अपनी स्मृतियां हैं। लेकिन, ‘कुमाऊंनी रामलीला’ के रूप में इस पुस्तक का आना सुखद अनुभूति दे रहा है। इस दौरान उन्होंने अपने कुछ संस्मरण भी सुनाए।
वहीं कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि भारतीय जनमानस में राम तथा उनसे संबंधित प्रसंगों को अपने क्षेत्रीय एवं सांस्कृतिक स्वरूपों में प्रदर्शित करने की परंपरा रही है। रामलीला के नाट्य प्रस्तुतियों की क्षेत्रीय शैलियों का सांस्कृतिक सौष्ठव अनूठा है। कला केंद्र विगत कई वर्षों से रामलीला के विविध स्वरूपों पर शोध, प्रलेखन एवं अभिलेखन करने का कार्य कर रहा है। ‘कुमाऊंनी रामलीला’ इसी शोध व अभिलेखन श्रृंखला की महत्वपूर्ण कड़ी है।
इस पुस्तक को सुप्रसिद्ध गायक एवं कलाकार हिमांशु जोशी ने गहन अध्ययन व लंबे शोधकार्य के बाद तैयार किया है। कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि 14 साल का वनवास पूरा करने के बाद पुस्तक आ रही है। आगे उन्होंने कहा कि कुमाऊंनी रामलीला में गायी जाने वाली चौपाइयां एवं दोहे की भाषा कुमाऊंनी न होकर ब्रज, हिन्दी, उर्दू, खड़ी बोली आदि है। साथ ही इसमें विभिन्न रागों, भाषाओं तथा क्षेत्रीय बोलियों का अनोखा समावेश दिखता है।
आगे हिमांशु जोशी ने कहा कि ‘कुमाऊंनी रामलीला’ भारतीय सांस्कृतिक विभिन्नता में एकता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती है।
इस अवसर पर पुस्तक के संपादक डॉ. रमाकर पंत ने बताया कि ‘कुमाऊंनी रामलीला’ विश्व में सबसे अधिक समय तक खेली जाने वाली ऑपेरा शैली की विशिष्ट रामलीला है। यह रामलीला प्रादेशिक प्रस्तुति की अभिन्न इकाई प्रतीत होती है, क्योंकि इसमें संगीत की मधुरता एवं भारतीय-पारसी नाट्य शैलियों को बखूबी पिरोया गया है।” रमाकर पंत ने आगे बताया कि यह मान्यता है कि कुमाऊंनी रामलीला की उत्पत्ति करीब 161 वर्ष पहले अल्मोड़ा में हुई थी।
कार्यक्रम के अंत में हिमांशु जोशी ने पुस्तक में संकलित रामलीला की चौपाइयां एवं दोहे का अल्मोड़ा एवं पिथौरागढ़ शैली में गायन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने की। इस अवसर पर कई विशिष्ट अतिथि एवं कला प्रेमी उपस्थित रहे। पुस्तक का प्रकाशन कला केंद्र की जनपद संपदा विभाग ने किया है।