नई दिल्ली, 25 अक्टूबर (हि.स.)। भारत पांच साल के भीतर अपनी खुद की अंतरिक्ष निगरानी प्रणाली विकसित करेगा। जमीन से लेकर आसमान और समुद्री सीमाओं के बाद अब भारत ने युद्ध की तैयारियों के लिहाज से अंतरिक्ष में भी खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया है। बेंगलुरु में बनने वाली अंतरिक्ष युद्ध एजेंसी की निगरानी में भारत की इस चौथी सेना की कमान अंतरिक्ष में होगी। भारत ने पिछले साल ही रक्षा मंत्रालय के एकीकृत रक्षा स्टाफ मुख्यालय के तहत एक विशिष्ट ‘रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी‘ के निर्माण की घोषणा की थी।
दुनिया भर की सेनाएं जल, थल और वायु के बाद अंतरिक्ष में तैनात संचार प्रणालियों, टोही और निगरानी गियर पर बहुत अधिक निर्भर हो रही हैं। भूमि, समुद्र और वायु के बाद अंतरिक्ष को सैन्य युद्ध का चौथा आयाम माना जाता है। इसलिए कुल 18 उपग्रह के साथ युद्ध और शांतिकाल के दौरान रणनीतिक लाभ के लिए भारत भी इस ओर तेजी से आगे कदम बढ़ा रहा है। हालांकि, अभी तक अंतरिक्ष में कोई भी आभासी क्रिया नहीं हुई है लेकिन अमेरिका, रूस, चीन और भारत ने बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण करने की क्षमता दिखाई है। भारत 2019 में ‘मिशन शक्ति’ की सफलता के साथ अंतरिक्ष में अपनी सैन्य और तकनीकी महारत का प्रदर्शन कर चुका है।
चीन और पाकिस्तान से सटी देश की सीमाएं दो साल के अंदर अब और ज्यादा सुरक्षित होने वाली हैं, क्योंकि रक्षा मंत्रालय से मिलिट्री सैटेलाइट्स समेत 8357 करोड़ रुपये की खरीदारी के निर्देश मिल चुके हैं। इसमें सबसे ख़ास होगा सैन्य उपग्रह, जो अंतरिक्ष से ही पड़ोसी देशों की हरकतों पर नजर रखेगा, ताकि वो हमारे देश की सीमा के साथ किसी तरह का दुस्साहस न कर सकें। मिलिट्री सैटेलाइट्स के बारे में पुख्ता जानकारी देने से सरकारी संस्थाएं बचती हैं लेकिन एक अनुमान के अनुसार अंतरिक्ष में इस समय 10 जीसैट सैटेलाइट्स हैं, जिनमें 168 ट्रांसपोंडर्स लगे हैं। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक समेत चीन के साथ विवाद के समय कार्टोसैट, रीसैट सीरीज के सैटेलाइट्स को निगरानी के लिए लगाया गया था।
इसरो ने सशस्त्र बलों की उपग्रह आधारित संचार और नेटवर्क केंद्रित ताकत बढ़ाने के लिए जीएसएटी-7 और जीएसएटी-7ए को पृथ्वी की कक्षा में रखा है। मल्टी बैंड जीसैट-7 को रुक्मिणी के रूप में भी जाना जाता है। 2018 में लॉन्च किए गए मिलिट्री सैटेलाइट जीसैट-7ए को ‘एंग्री बर्ड’ बुलाया जाता है। यह पहला ऐसा सैन्य संचार उपग्रह है, जो समुद्री जहाजों और वायुयानों के बीच सटीक वास्तविक समय की जानकारी प्रसारित करता है। इसकी सहायता से वायु सेना अपने हवाई बेड़े, एयरबेस, रडार स्टेशनों के साथ-साथ अवाक्स नेटवर्क को संचालित करती है। इसके अलावा यह भारतीय सेना को भूमि आधारित संचालन के लिए पर्याप्त ट्रांसमिशन तंत्र से लैस करता है। भारतीय नौसेना ने जीसैट-7आर की मांग की है, जो जीसैट-7 की जगह लेगा।
भारतीय सेना भी निगरानी के लिहाज से अंतरिक्ष के कार्टोसैट और रिसैट श्रृंखला पर बहुत अधिक निर्भर हैं। इसरो ने इनमें से एक दर्जन से अधिक अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की कक्षा में डाल दिया है। नौ लॉन्च किए गए कार्टोसैट उपग्रहों में नवीनतम तीसरी पीढ़ी का कार्टोसैट-3 अंतरिक्ष में भारत का सबसे शक्तिशाली इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल पर्यवेक्षक है। यह अत्यधिक फुर्तीला उपग्रह है जो उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले पेलोड से लैस है। इसके जरिये 0.25 मीटर ग्राउंड रिज़ॉल्यूशन की तस्वीरें मिलती हैं। इसरो के नवीनतम रिसैट-2बीआर1 और रिसैट-2बी रडार इमेजिंग जासूस उपग्रह हैं, जो रडार का उपयोग करके भारत की जमीनी सीमाओं के साथ-साथ सभी मौसमों में समुद्री सीमाओं की 24 घंटे निगरानी करते हैं।
अब इसके बाद जीसैट-7बी और जीसैट-7सी की भी योजना पर विचार किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 मार्च, 2019 को भारत के पहले उपग्रह रोधी हथियार के सफल प्रक्षेपण की घोषणा की। इंटरसेप्टर ने पृथ्वी की निचली कक्षा में 300 किलोमीटर (186 मील) की ऊंचाई पर एक परीक्षण उपग्रह को मार गिराकर अपनी क्षमता साबित की थी। इस परीक्षण के साथ भारत उपग्रह रोधी मिसाइल क्षमताओं वाला चौथा राष्ट्र बन गया है। भारत 5 साल के भीतर अपनी खुद की अंतरिक्ष निगरानी प्रणाली विकसित करने के लिए 08 और उपग्रह लॉन्च करने की तैयारी में है।