कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ रूस के साथ सौदा मुलायम सिंह ने ही किया था फाइनल
– विमानों को वायु सेना में शामिल कराने के पीछे बतौर रक्षा मंत्री ‘नेताजी’ की थी अहम भूमिका
नई दिल्ली, 11 अक्टूबर (हि.स.)। देश के पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव को आज राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई देने की तैयारी है, लेकिन भारतीय वायु सेना के लड़ाकू सुखोई विमान उनकी हमेशा याद दिलाते रहेंगे। दरअसल, इन लड़ाकू विमानों को वायु सेना के बेड़े में शामिल कराने के पीछे बतौर रक्षा मंत्री ‘नेताजी’ की अहम भूमिका रही थी। 1996 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ यह सौदा मुलायम सिंह ने ही रूस के साथ फाइनल किया था।
भारतीय वायु सेना 1991 से अपने बेड़े के लिए एक लड़ाकू जेट की तलाश में थी। 1994 में तत्कालीन रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत के सामने सुखोई-30 की पेशकश रखी, क्योंकि इस विमान का परीक्षण 1989 में किया जा चुका था। उस समय केंद्र में जून, 1991 से मई, 1996 तक रही प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार 1996 की शुरुआत में कई शर्तों के बाद सहमत हुई थी। राव ने रक्षा मंत्री का पोर्टफोलियो भी संभाला और बिना किसी अनुबंध पर हस्ताक्षर किए रूसी कंपनी सुखोई एविएशन कॉरपोरेशन को 350 मिलियन डॉलर का अग्रिम भुगतान भी किया।
इसे खरीदने के लिए भारत के सहमत होने के बाद पहली बार 1996 में इसका उत्पादन किया गया था। इसी बीच आम चुनाव की घोषणा होने से आदर्श आचार संहिता लागू हो गई और यह सौदा लटक गया। आम चुनावों में राव और कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया गया था। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी, लेकिन उनकी सरकार केवल 13 दिनों (16 मई- 28 मई) तक चली थी, इसलिए सुखोई विमानों के सौदे पर निर्णय लेने का समय ही नहीं मिला। इसके बाद संयुक्त मोर्चा की सरकार में एचडी देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने और इस सरकार में मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बनाए गए। मुलायम सिंह ने 01 जून, 1996 को रक्षा मंत्री के रूप में पदभार संभाला और 19 मार्च, 1998 तक देश की सुरक्षा संभाली।
मुलायम सिंह यादव ने भारतीय वायुसेना में सुखोई को शामिल कराने के लिए अपने विरोधियों के रुख को दरकिनार करके इस सौदे को बोफोर्स जैसे दूसरे विवाद में न बदलने देने का जिम्मा लिया। चूंकि, यह सौदा रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन के अनुरोध पर किया गया था और रूस आर्थिक संकट का सामना कर रहा था। इसलिए सैन्य विमानों का यह सौदा शुरुआत में एक घोटाले की तरह लग रहा था। इसलिए मुलायम सिंह ने सर्वसम्मति बनाकर वरिष्ठ विपक्षी नेताओं के लिए एक ब्रीफिंग की व्यवस्था की। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व सेना अधिकारी और वरिष्ठ भाजपा नेता जसवंत सिंह भी शामिल थे।
विपक्षी नेताओं को रूसी अनुबंध की परिस्थितियों और भारतीय वायुसेना की जरूरतों के बारे में बताया गया। इसके बाद मुलायम सिंह के रक्षा मंत्रित्वकाल में ही 30 नवंबर, 1996 को रक्षा मंत्रालय ने भारतीय वायु सेना के लिए आठ सुखोई-30 के और 32 सुखोई-30 एमकेआई के ‘विकास और उत्पादन’ के लिए रूसियों के साथ एक समझौता किया। संसद में मुलायम सिंह ने सुखोई सौदा होने की जानकारी दी, जिसे विपक्षी दलों ने भी सराहा। जुलाई, 1997 तक सभी आठ सुखोई-30के पुणे के लोहेगांव स्थित भारतीय वायुसेना के अड्डे पर पहुंच गए और भारत के आसमान में पहली उड़ान भरी। ‘नेताजी’ की इस पहल का ही नतीजा था कि तीन साल बाद भारत में सुखोई-30 एमकेआई का उत्पादन करने के अनुबंध पर रूस के साथ हस्ताक्षर किए गए।
सुखोई लड़ाकू विमान 27 सितंबर, 2002 को भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। भारत में 2004 से हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड ही सुखोई लड़ाकू विमानों का उत्पादन कर रहा है। ऐसे कुल 280 विमान हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में रूस के सहयोग से बनाये गए हैं। भारत ने मार्च, 2020 तक ऑर्डर किए गए सभी 272 विमानों का उत्पादन पूरा कर लिया लेकिन इस समय वायुसेना के पास 261 सुखोई-30 लड़ाकू विमान हैं। दरअसल, वर्ष 2019 तक 11 सुखोई-30 दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। यह विमान 3000 किमी. की दूरी तक हमला कर सकता है। आधुनिक सुखोई जेट में 500 किलोमीटर दूरी की ब्रह्मोस मिसाइल दागने की क्षमता है।