06HNAT38 गोविंदाचार्य 11 अक्टूबर से शुरू करेंगे गंगा संवाद यात्रा
नई दिल्ली, 06 अक्टूबर (हि.स.)। सामाजिक कार्यकर्ता व पर्यावरणविद् केएन गोविंदाचार्य 11 अक्टूबर से गंगा संवाद यात्रा शुरु करने जा रहे हैं।
उन्होंने गुरुवार को हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत करते हुए कहा कि गंगा को अविरल और निर्मल बनाए रखने के लिए वह उत्तर प्रदेश के नरौर (बुलंदशहर) से गंगा संवाद यात्रा की शुरुआत करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह यात्रा 30 नवंबर को कानपुर के बिठूर में समाप्त होगी। यात्रा के दौरान लोगों से संवाद किया जाएगा। गंगा के वर्तमान हालात को देखा जाएगा और संबंधित लोगों से भी इस मुद्दे पर बातचीत की जाएगी। यात्रा के दौरान लोगों को नदियों की साफ-सफाई के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि गाय और गंगा भारतीय संस्कृति की धुरी रही है। ये सभी धर्म और संप्रदाय से हमेशा ऊपर रही हैं। लेकिन आज इन दोनों की स्थिति चिंताजनक है। गोविंदाचार्य ने कहा कि समाज और सरकार दोनों को इस विषय पर चिंतन करना चाहिए और समाधान निकालने का यत्न करना चाहिए।
गोविंदाचार्य ने कहा कि गंगा और गोवंश के प्रति लोगों में भावनात्मक लगाव तो है लेकिन जिम्मेदारी का भाव शून्य होता जा रहा है। हमें अपने कर्तव्यबोध को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सरकार और समाज के साझा प्रयास से गंगा और गोवंश दोनों का संरक्षण संभव है।
उन्होंने कहा कि गंगा के प्रति सबके मन में आदर है। कांग्रेस के शासनकाल में ही गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित की गई थी। इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, तबके केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश, उत्तराखंड के तात्कालिक मुख्यमंत्री हरीश रावत, भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी सहित संत समाज के लोगों ने इसका समर्थन किया था।
उन्होंने कहा कि प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से गंगाजी लगभग 40 करोड़ लोगों के जीवन की आधार हैं। लेकिन उनका स्वयं का आधार गंगोत्री के 30 किलोमीटर के इलाके में फैले ग्लेशियर हैं। वर्ष 1935 से 2022 के बीच ये ग्लेशियर पिघलकर 1700 मीटर पीछे जा चुके हैं। ग्लेशियर पिघलने की यह रफ्तार चिंताजनक है।
उन्होंने कहा कि सरकार में बैठे लोग नदियों के प्रति संवेदनशील हैं लेकिन अभी और सचेत रहने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि जिस तेजी से भू-जल स्तर गिर रहा है वह चिंताजनक है। ऐसे में देश के सभी पंचायतों में कमसे-कम चार वॉटर बॉडी होना बहुत जरूरी है। हमें अपना हरित क्षेत्र बढ़ाना होगा और गोवंश की रक्षा करनी होगी। यह कार्य समाज और सरकार को मिलकर करना होगा।