लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया है गांव की बहू शारदा सिन्हा के गीत का जादू

30HENT1 लोगों के दिलो-दिमाग पर छाया है गांव की बहू शारदा सिन्हा के गीत का जादू

(पद्मश्री शारदा सिन्हा के जन्मदिन एक अक्टूबर पर विशेष)

बेगूसराय, 30 सितम्बर (हि.स.)। गांव की बहू से लेकर बिहार कोकिला का सफर तय करने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा आज किसी के लिए नया नाम नहीं है। बेगूसराय जिला के सिहमा गांव की बहू बिहार कोकिला पद्मश्री शारदा सिन्हा 70 वर्ष की हो गई हैं। लेकिन उनकी आवाज में आज भी वही जादू है जो सुपरहिट फिल्म मैंने प्यार किया के गीत ”कहे तोहसे सजना ये तोहरी सजनियां” में था।

कोई भी पर्व-त्यौहार, लोक उत्सव, शुभ घड़ी के मौके पर गूंजने वाली आवाज की मल्लिका शारदा सिन्हा का जन्म एक अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिला के हुलास गांव में हुआ था। पिता सुखदेव ठाकुर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे। गायिकी के प्रति रुचि को देखते हुए बचपन में ही इनके पिता ने गाना और नृत्य सिखाने वाले शिक्षक को रखा, जो घर पर आकर शारदा सिन्हा को प्रशिक्षण देते थे।

शादी बेगूसराय के दियारा क्षेत्र सिहमा निवासी ब्रजकिशोर सिन्हा से हुआ तो ससुराल वालों को उनकी गायिकी से आपत्ति थी, ससुराल वालों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन पिता और पति के सहयोग से गायिकी को जारी रखा तो आज गीत-संगीत और क्लासिकल गीतों की दुनिया में शारदा सिन्हा सम्मानित नाम है। उस समय जब कैसेट का जमाना था तो काफी कोशिश के बाद उन्होंने लखनऊ के बर्लिंगटन होटल में बने एचएमवी के अस्थाई स्टूडियो में पहला ऑडिशन दिया और ”द्वार के छेकाई ए दुलरूआ भइया” गाकर छा गई।

शास्त्रीय संगीत की उच्च शिक्षा प्राप्त शारदा सिन्हा ने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी और बज्जिका भाषाओं में गायन किया है, यह बात सभी जानते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि गायन के साथ वे मणिपुरी नृत्य में भी पारंगत हैं। राजश्री प्रोडक्शन के सुपरहिट फिल्म ”हम आपके हैं कौन” में विदाई के समय शारदा सिन्हा द्वारा गाया गया गाना ”बाबुल जो तुमने सिखाया” सुनकर आज भी महिलाएं रो पड़ती है।

आज दर्जनों गायक छठ गीत तैयार कर रहे हैं, लेकिन उसके भाव और मूल में शारदा सिन्हा द्वारा गाए छठ गीत ही हैं। जब छठ में गीतों का इतना प्रचलन नहीं था और सिर्फ विंध्यवासिनी देवी एक-दो गीत सुनने को मिलते थे, तो 1978 में शारदा सिन्हा ने पहली बार ”उगो हो सूरज देव भइल अरघ केर बेर” रिकॉर्ड किया था। वह कैसेट इतना छा गया कि खुद कंपनी वाले लगातार गीत रिकॉर्ड करने का अनुरोध करने लगे। छठ, विवाह, मुंडन, जनेऊ, विदाई, श्रद्धांजलि गीत के अलावा लोक उत्सव सामा चकेवा आदि केेेे गीत भी शारदा सिन्हा ने इतनी खूबसूरती से गाया है कि लोग बार-बार सुनते हैं।

अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में चर्चित गीत ”तार बिजली से पतले हमारे पिया, ओ री सासु बता तूने ये क्या किया” गाया। 1989 में शारदा सिन्हा ने हिन्दी फिल्म माई में एक्टिंग भी किया था। ”पिरितिया काहे ना लगवले, पटना से बैदा बोलाइ द, पनिया के जहाज से पलटनिया बनि अइह पिया, केकरा से कहां मिले जाल” जितना भी बार सुना जाए नया ही लगता है। भोजपुरी में पटना से बैदा बोलाई द, पनिया के जहाज से पलटनिया बनि अइह पिया, पिरितिया काहे ना लगवले और बताव चांद केकरा से कहां मिले जाला” आदि गाने खूब पसंद किए गए और इनके गानों ने बिहार के लोक गायन में क्रांति ला दी।

इनका श्रद्धांजलि नामक एलबम (कैसेट) काफी लोकप्रिय हुआ, जिसमें मैथिली कवि विद्यापति के गानों को आवाज दिया। बिहार की लोक संस्कृति को बनाए रखने के लिए 1991 में पद्मश्री से सम्मानित बिहार कोकिला को 1987 में बिहार गौरव, 1988 में बिहार रत्न, 2001 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2015 में बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार, 2005-06 में देवी अहिल्या सम्मान तथा 2018 में द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया जा चुका है।

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