सिवनी, 11 सितंबर (हि.स.)। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती आजादी के आंदोलन से लेकर राम मंदिर आंदोलन तक में लगातार सक्रिय रहे थे। स्वामी शंकराचार्य आजादी की लड़ाई में दो बार जेल भी गए थे।
जन्म सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामीजी का नाम पोथीराम था। महज नौ साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़कर धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। साल 1942 में महज 19 साल की उम्र में पोथीराम एक क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। पोथीराम ने उस समय देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया था। साल 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के ऐलान के बाद स्वामीजी भी सक्रिय हो गए थे। अगस्त 1942 में स्वामीजी ने देश की रक्षार्थ योजना बनाई थी। बाद में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सत्याग्रही छात्रों के साथ तार काटने के अभियोग में उन्हें बनारस की जेल में 9 माह की सज़ा काटनी पड़ी थी। वे उस समय के अंग्रेज शासन की दृष्टि में स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे अधिक खतरनाक आंदोलनकारियों में एक माने गये थे। स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में वे एक बार गिरफ्तार हुए और राजनैतिक बंदी के रूप में दो माह तक नरसिंहपुर जेल में रहे थे।